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नरसिंहपुर में सरकारी गेहूं खरीदी से किसानों का मोहभंग, भुगतान में लेटलतीफी के चलते मंडी का कर रहे हैं रुख  

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Rajeev Upadhyay
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नरसिंहपुर में सरकारी गेहूं खरीदी से किसानों का मोहभंग, भुगतान में लेटलतीफी के चलते मंडी का कर रहे हैं रुख  

Narsinghpur, बृजेश शर्मा. गेहूं की इस बार बंपर आवक है, किसान अब खरीदी कर रही समितियों में अपना अनाज बेचने की बजाय मंडी में ही बेचने में अपना भला समझ रहा है। दाम कम जरूर मिल रहे हैं लेकिन किसान समितियों में हो रही दलाली और पैसे मिलने की लेटलतीफी से खुले बाजार में अपना अनाज बेचने को मुनासिब मानते हैं। इस बार गेहूं बेचने के लिए पंजीकृत 36 हज़ार से ज्यादा किसानों में से गेहूं बेचने के लिए 29 हज़ार 999 किसानों ने समितियों में अपना पंजीयन कराया। इनमें से 24 अप्रैल तक 13 हजार 208 किसानों ने अपने स्लॉट बुक कराए पर स्थिति यह है कि सिर्फ 6397 किसान ही करीब 49000 क्विंटल गेहूं बेचने पहुंचे। 





इस बार मार्केटिंग सोसायटी जिले में खरीदी एजेंसी है, उसके सामने लगभग 11लाख क्विंटल गेहूं खरीदने का लक्ष्य है, पर उसके लिए अब यह लक्ष्य दूर की कौड़ी लग रहा है। वजह है कि किसान समितियों में अपना गेहूं देना पसंद नहीं कर रहा है। कम दाम मिलने के बावजूद खुले बाजार में अपना अनाज बेच रहा ह।  गेहूं की आवक जिले की सभी कृषि उपज मंडियों नरसिंहपुर, गोटेगांव, करेली, गाडरवारा और अन्य मंडियों में भरपूर है। हर मंडी में करीब 4 से 5000 क्विंटल गेहूं रोजाना पहुंच रहा है। जबकि सहकारी समिति के जिले भर में 69 खरीदी केंद्र और स्लॉट बुक कराने के बाद भी किसान गेहूं देने नहीं पहुंच रहे हैं।







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    मंगलवार को नरसिंहपुर मंडी में करीब 35 - 40 क्विंटल गेहूं देने पहुंचे किसान लोचन सिंह से जब पूछा गया कि गेहूं के रेट इस बार कैसे मिल रहे हैं तो उनका कहना है कि साल भर खेती-बाड़ी करके पसीना बहाते हैं।हर एकड़ में 10 से 15000 रु का खर्च होता है, पर जब दाम मिलने की बात आती है तो दाम उन्नीस सौ ,दो हजार  प्रति क्विंटल से ज्यादा नहीं बढ़ रहे, जबकि दाम अब 2500 से 3000 रु प्रति क्विंटल तक होना चाहिए। महंगाई जिस दर से बढ़ी है उस दर से गेहूं के दाम नहीं मिलना   अच्छी बात नहीं है। वह कहते हैं कि खेती को लाभ का धंधा बनाने वाले नेता सिर्फ बातें कर रहे हैं जबकि अब खेती-बाड़ी घाटे का सौदा है।





    ग्राम बरेली के किसान नारायण पटेल का कहना है कि उनका गेहूं 2062 रु क्विंटल में गया है, जबकि समितियों में 100 रु प्रति क्विंटल पैसा मांगा जाता है। पैसे मिलने का समय भी निश्चित नहीं है इसलिए वह खुले बाजार में गेहूं देना पसंद कर रहे हैं। एक और किसान इमरत कुछ गेहूं और कुछ चना लेकर मंडी पहुंचे, उनका गेहूं 1925 रुपए प्रति कुंटल मंडी में बिका यानी सहकारी समिति से 100 रु प्रति क्विंटल कम, फिर भी वह मंडी आने में अपनी भलाई समझते हैं। कहते हैं कि वहां एक तो हर क्विंटल में पैसा मांगा जाता है और फिर अनाज बेचने के बाद पैसा कब मिलेगा यह निश्चित नहीं है, जबकि जरूरत उनको पैसे की अभी है।



     



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