Bhopal.
सरकार खेती को लाभ का धंधा बनाने बड़े—बड़े बाते तो करती है, पर सच्चाई इसके उलट है। पैदावार बढ़ाने और उन्नत खेती में किसानों की सहायता के लिए मध्यप्रदेश बीज निगम की स्थापना नवंबर 1980 में की गई। आईएसओ प्रमाणित इस निगम की अब माली हालत यह है कि उसके पास बीज खरीदने तक के पैसे नहीं है। बीज निगम ने आगामी रबी सीजन में प्रदेश के किसानों को बीज विक्रय करने में अपने हाथ खड़े कर दिए हैं। दरअसल बीज निगम किसानों को एक निर्धारित दर पर बीज का उत्पादन करने संबंधित फसल का बीज देता है और फिर निगम ही उन किसानों से वह बीज खरीदकर प्रदेश के अन्य किसानों को बेचता है। पिछले रबी सीजन रबी फसल के बीज का उत्पादन लक्ष्य 1.5 लाख क्विंटल रखा था, जिसमें से मात्र 70 हजार क्विंटल यानी आधा ही बीज निगम को मिला। इस बीज उत्पादन का करीब 16 करोड़ रूपए किसानों को देना है, जो अब तक नहीं दिया गया है। मध्यप्रदेश के बीज निगम अध्यक्ष मुन्नालाल गोयल खुद इस बात को स्वीकार कर चुके हैं कि बीज निगम घाटे में है और निर्धारित लक्ष्य जितना उत्पादन भी नहीं कर पा रहा है। रबी सीजन में बोई जाने वाली फसल गेहूं, जौं, चना, मसूर जैसे बीज किसानों को देने के लिए निगम के पास उपलब्ध ही नहीं है। इधर किसान जागृति संगठन के संस्थापक अध्यक्ष इरफान जाफरी ने कहा कि बीज निगम यदि आगामी सीजन पर किसानों को बीज नहीं देगा तो प्राइवेट कंपनी अपने बीजों की कीमत को बढ़ा देगी।
डिमांड 4 लाख की, सोयाबीन बीज उपलब्ध मात्र 8 हजार क्विंटल
प्रदेश के किसानों को खरीफ सीजन में 4 लाख क्विंटल सोयाबीन बीज की डिमांड रहती है, पर आगामी खरीफ सीजन के लिए निगम के पास बीज मात्र 8 हजार क्विंटल ही है। यानी डिमांड से मात्र 2 प्रतिशत की ही उपलब्धता है। इसी तरह खरीफ सीजन में बोवने जाने वाले अन्य बीज अरहर, धान, उड़द के बीज भी लगभग नगण्य ही है।
किसानों को समय पर भुगतान नहीं होने से उत्पादन घटा
बीज निगम के अध्यक्ष मुन्नालाल गोयल ने कहा कि बीज निगम निर्धारित लक्ष्य जितना भी बीज का उत्पादन नहीं कर पा रहा है। जब द सूत्र ने इसकी पड़ताल की तो पता चला कि किसानों को लंबे समय तक भुगतान नहीं होने से निगम को लेकर उनका मोह भंग हुआ। किसान नेता समीर शर्मा ने बताया कि किसानों को बीज पर भुगतान के अलावा 10 फीसदी बोनस भी मिलता है। निगम ने कई किसानों को यह 3 साल से नहीं दिया है। बोनस को छोड़ दें तब भी बीज का भुगतान भी निगम 5 से 6 महीने में देता है, वहीं प्राइवेट कंपनी को बीज देने पर तुरंत और नगद भुगतान हो जाता है।
महंगा पड़ता है बीज उत्पादन, इसलिए तुरंत होती है पैसों की जरूरत
शाहपुरा जबलपुर के कृषक विजय गोंटिया बताते हैं कि किसान के लिए बीज का उत्पादन करना एक महंगा सौदा होता है। जिस क्षेत्र की फसल बीज के लिए आरक्षित होती है, वहां खरपतवार को समय—समय पर निकालना होता है। फसल भी हाथ से कटवाना पड़ता है, क्योंकि हार्वेस्टर से कटवाने पर दाना टूटने का खतरा रहता है। इससे फसल के मुकाबले उसी का बीज उत्पादन करने में 25 प्रतिशत अतिरिक्त लागत लग जाती है। जब किसान यह बीज निगम या किसी कंपनी को देता है तो प्रोसेसिंग के बाद 15 प्रतिशत दाना अलग कर दिया जाता है। ऐसे में किसान को बीज उत्पादन एक महंगा सौदा पड़ता है, बीज बेचने के बाद किसान को अगली फसल के लिए तुरंत ही पैसों की जरूरत होती है।
कहीं बीज निगम में न लग जाए ताला!
6 साल में बीज निगम की वित्तीय स्थिति लगभग खत्म ही हो गई है। जबकि 2015—16 तक बीज निगम के पास लगभग 132 करोड़ की अंश पूंजी थी। बीज निगम के पास 42 फार्म हाउस और 54 प्रक्षेत्र केंद्र यानी फील्ड सेंटर होने के बावजूद यह हालात खड़े हो गए हैं। यही स्थिति रही तो वह दिन दूर नहीं जब बीज निगम में ताला लगाने की स्थिति खड़ी हो जाए। किसान समीर शर्मा ने कहा कि कंपनियों से निगम के अधिकारियों का कमीशन सेट होने से यह स्थिति बनी। किसान नेता इरफान जाफरी ने कहा कि मंत्री क्या कर रहे थे, उन्हें इस्तीफा दे देना चाहिए।