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योगेश राठौर, INDORE.यूनिवर्सल सॉलीडेटरी मूवमेंट के फाउंडर फादर वर्गीस आलेंगाडन का 71 वर्ष की आयु में 26 मार्च, रविवार को निधन हो गया था। 28 मार्च, मंगलवार शाम को उनका अंतिम संस्कार रामबाग मुक्तिधाम के विद्युत शव दाह गृह में हुआ। शहर में संभवतः यह पहला मौका है, जब ईसाई समाज के फादर का इस तरीके से अंतिम संस्कार हुआ।
क्या थी फादर की इच्छा?
दरअसल, फादर की इच्छा यही थी कि मेरी मृत्यु के बाद क्यों छह फीट जमीन पर कब्जा किया। उनका मानना था कि धरती का आदर करना और उसके संसाधनों की सुरक्षा करना मनुष्य का कर्तव्य है। यही सोच उनकी लकड़ी को लेकर रही, जिसके चलते दाह संस्कार भी न करते हुए 5 बजे विद्युत शव दाह गृह में उनका अंतिम संस्कार किया गया, जिसमें कई धर्म के लोग शामिल हुए। कुछ दिन पहले चार मार्च को उनकी बाइपास सर्जरी हुई थी। इसके बाद तबीयत ठीक नहीं हुई और निधन हो गया। वह 30 साल तक इंदौर के यूनिवर्सल सॉलीडेटरी मूवमेंट में फादर रहे। वे गृहस्थ जीवन त्याग चुके थे। उनकी मौत की खबर सुनकर त्रिशूर (केरल) से उनके बड़े भाई जानी अलेंगाडन का परिवार इंदौर पहुंच गया था।
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मुक्ति धाम पर हुए मंत्रोच्चार
इस दौरान रामबाग मुक्तिधाम पर हिंदू रीति रिवाज से मंत्रोच्चार भी हुए। क्रिश्चियन कम्युनिटी के कई लोग मौजूद थे। फादर जैकब ने बताया कि वे गांधीवादी विचारों के थे। उनके पास कोई संपत्ति, जमीन, मकान, बैंक अकाउंट नहीं था। वे अपने लिए कोई भी चीज यहां तक कि मृत्यु के बाद छह फीट जमीन भी अपने लिए नहीं रखना चाहते थे। यही कारण है कि वे मृत्यु के बाद खुद को दफनाने के पक्षधर नहीं थे। दूसरे धर्म के लोग भी उनका आदर भी करते थे। उनका हमेशा यही मानना रहा कि दूसरे धर्म में जो अच्छी बातें या प्रथाएं हैं, वे हमें मानना चाहिए।
अंगदान की मंशा थी, लेकिन इन्फेक्शन कारण नहीं हो सका
उन्होंने बीमार रहने के दौरान अपने अंगदान की भी बात कही थी। तब डॉक्टरों ने कहा था कि उनकी एक आंख खराब हो चुकी है, जबकि बाइपास के बाद उन्हें कई तरह का इन्फेक्शन था। इसलिए मृत्यु के बाद उनका कोई भी अंग दान नहीं किया जा सका। उनकी यह इच्छा पूरी नहीं हो सकी। वे अपने जीवन का बहुत मूल्यांकन करते थे। वे दूसरे धर्म की किताबों का अध्ययन व अलग-अलग क्षेत्रों के महान लोगों को फॉलो करते थे। उनका शिक्षा देने का तरीका भी मूल्य आधारित था। उनका कहना था कि जहां मेरी मृत्यु हो उसी शहर में मेरा अंतिम संस्कार किया जाए। इसके लिए जरूरी नहीं है कि मेरे पार्थिव शरीर को पैतृक स्थान या कहीं और ले जाया जाए।
अंतिम संस्कार के पहले सर्वधर्म प्रार्थना सभा हुई
फादर वर्गीस 1972 से सागर प्रांत से जुड़े रहे। वे सागर में 20 साल तक अलग-अलग चर्च में पेरिश प्रीस्ट, बिशप, चैप्लिन आदि रहे। फिर 1992 में इंदौर प्रांत से जुड़े। तब साकेत नगर में दो कमरे से यूनिवर्सल सॉलीडेटरी मूवमेंट का संचालन होता था। कुछ साल बाद इसका संचालन महालक्ष्मी नगर से शुरू हुआ और अंत तक वे यही फादर के रूप रहे। उनके निधन पर पद्मश्री जनक पलटा, आईपीएस अनुराधा शंकर सहित कई गणमान्य नागरिकों ने गहरा शोक जताया है। खास बात यह कि उनकी अंतिम क्रिया के लिए इंदौर प्रांत के चाको बिशप व डॉ. जेम्स अतिकलम (फादर, सागर प्रांत) ने भी सहमति दी। रेड चर्च पर पहले शोक सभा स्वरूप पहले ईसाई प्रार्थना हुई। इसके बाद चर्च में ही सर्वधर्म प्रार्थना सभा भी हुई और उन्हें श्रद्धांजलि दी गई। शाम 5 बजे विद्युत शवदाह गृह में उनका अंतिम संस्कार किया गया।