राजीव उपाध्याय, Jabalpur. मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने पिछले चार साल से विचाराधीन ओबीसी आरक्षण मामले में अंतिम सुनवाई शुरू कर दी है। पहले दिन 27 प्रतिशत ओबीसी आरक्षण के विरोध में बहस हुई। अब इस मामले में नियमित सुनवाई होगी। जस्टिस शील नागू और जस्टिस डीडी बंसल की डबल बेंच ने कहा कि मामले के पेंडिंग रहने से प्रदेशभर के हजारों स्टूडेंट्स असमंजस में हैं। उनका भविष्य दांव पर लगा है। कोर्ट को रोज 100 से ज्यादा पत्र मिल रहे हैं। अब इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में लंबित मामलों के अंतिम फैसले का इंतजार नहीं कर सकते। इसलिए यह मामला डे-टू-डे बेसिस पर सुना जाएगा। कोर्ट ने सरकार की केस बढ़ाने की मांग को भी नामंजूर कर दिया। सरकार की ओर से अतिरिक्त महाधिवक्ता आशीष बर्नाड ने कहा कि समान मुद्दे को लेकर सुप्रीम कोर्ट में मामला लंबित है, जिसके अंतिम निर्णय का इंतजार करना चाहिए।
आरक्षण से जुड़ी याचिकाओं के लिए विशेष बेंच
जबलपुर हाईकोर्ट ने प्रदेश में ओबीसी के आरक्षण से जुड़ी करीब 66 याचिकाओं पर सुनवाई के लिए विशेष बेंच गठित की है। आशिता दुबे और अन्य की ओर से सबसे पहले 2019 में याचिका दायर की गई थी। हाईकोर्ट ने कई मामलों में ओबीसी को 27% आरक्षण देने पर रोक लगाई है, जो अभी लागू है। याचिकाकर्ताओं की ओर से वकील आदित्य संघी ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने इंदिरा साहनी मामले में स्पष्ट दिशा निर्देश दिए हैं कि किसी भी स्थिति में कुल आरक्षण 50% से ज्यादा नहीं होना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने 2021 में मराठा आरक्षण के मामले में भी कुल आरक्षण की सीमा 50 प्रतिशत ही निर्धारित की है। जबकि मध्य प्रदेश में ओबीसी को 27और ईडब्ल्यूएस को 10 प्रतिशत मिलाकर कुल आरक्षण 73 प्रतिशत हो रहा है।
हाईकोर्ट की मुख्यपीठ में सुना जाएगा उज्जैन के अतिथि विद्वानों का मामला
जस्टिस शील नागू और जस्टिस डीडी बंसल की डबल बेंच ने उज्जैन के अतिथि विद्वानों के मामले की सुनवाई मुख्यपीठ जबलपुर में किए जाने की व्यवस्था दी है। यह व्यवस्था उस आपत्ति को दरकिनार करते हुए दी गई, जिसमें ये दलील दी गई थी कि उज्जैन के याचिकाकर्ताओं को इंदौर बेंच में याचिका दायर करने का विकल्प है। याचिकाकर्ता (जबलपुर निवासी) अतिथि विद्वान विष्णु प्रसाद झारिया के अलावा उज्जैन निवासी 11अन्य अतिथि विद्वानों का पक्ष एडवोकेट विनायक प्रसाद शाह ने रखा। उन्होंने दलील दी कि याचिकाकर्ताओं को अतिथि विद्वान के रूप में हर पीरियड के लिए केवल 400 रुपए का वेतन दिया जा रहा है। इस कारण एक माह में करीब 10 हजार ही सैलरी बन पाती है। जबकि जिन अतिथि विद्वानों की नई नियुक्ति हुई है, उन्हें 30 हजार रु. मंथली सैलरी दी जा रही है। तकनीकी शिक्षा विभाग द्वारा निर्धारित पोर्टल में भी याचिकाकर्ता अतिथि विद्वानों को दर्ज नहीं किया गया। यह भेदभाव है। यह दलील भी दी गई कि सैलरी निर्धारण का काम केंद्र का है, राज्य शासन को इसका अधिकार नहीं है। इस सिलसिले में ऑल इंडिया काउंसिल फॉर टेक्नीकल एजूकेशन को दखल देना चाहिए।