Jabalpur. बक्सवाहा में प्रकृति द्वारा प्रदत्त वनों की कटाई को रोकने के लिए दायर याचिका पर एनजीटी में सुनवाई हुई जिसमें याचिकाकर्ता डॉ पी जी नाजपांडे और रजत भार्गव की ओर से यह कथन प्रस्तुत किया गया कि लाखों पेड़ काटकर हीरों की खदान को स्वीकृति देने के पूर्व सरकार द्वारा कई अनदेखियां की गईं। जिसमें वर्तमान पेड़ों की न तो वैज्ञानिक गिनती कराई गई और न ही वन्यप्राणियों की असल तादाद बताई गई। याचिकाकर्ताओं द्वारा अदालत में बताया गया कि छतरपुर कलेक्टर ने क्षतिपूर्ति वन हेतु भूमि प्रदान की और मुख्य वनसंरक्षक ने क्षतिपूर्ति वन के प्लान की अनुमति भी प्रदान की है। इन तथ्यों पर गौर करने के बाद अदालत ने फाइनल हियरिंग के लिए 16 दिसंबर की तारीख नियत की है।
याचिकाकर्ता के वकील एडवोकेट प्रभात यादव ने बताया कि यह याचिका सस्टेनेबल विकास और पूर्व सावधानी के सिद्धांतों पर आधारित है जैसा एनजीटी के एक्ट की धारा 20 में प्रस्तुत किया गया है। लेकिन इन सिद्धांतों की सिरे से अनदेखी हुई है, प्रोजेक्ट शुरू करने की कार्रवाई सुप्रीम कोर्ट और एनजीटी के आदेशों के खिलाफ है।
बता दें कि बक्सवाहा में घने जंगलों को काटकर हीरे के खनन के लिए प्रदेश सरकार ने मंजूरी दी थी। जिसके खिलाफ अनेक पर्यावरणविद और वन्यप्राणी प्रेमी मुखर हो गए थे, जिन्हें व्यापक जनसमर्थन भी मिला। जिसके बाद यह मामला एनजीटी में भी उठाया गया, जिस पर अब अंतिम सुनवाई होना है। बता दें कि बक्सवाहा में ऑस्ट्रेलिया की कंपनी रियो टिंटो ने हीरे होने की खोज की थी जिसके बाद बिरला ग्रुप की एस्सेल कंपनी को यहां खनन करने की परमिट दी गई है।