खंडवा. 30 जनवरी को वन विभाग (forest team) की टीम ने दुर्लभ बार्न प्रजाति के उल्लू (Barn owl) का रेस्क्यू किया। ये उल्लू चाइनीज मांझे में उलझकर पेड़ पर ही फंस गया था। वन विभाग की टीम ने उल्लू को रेस्क्यू करके निकाला। इलाज के बाद इसे पुनासा वन क्षेत्र के जंगलों में छोड़ा जाएगा।
ये उल्लू जहरीला होता है: नगर निगम (Khandwa nagar nigam) के कल्लनगंज स्थित भंडारगृह के पेड़ पर ये दुर्लभ प्रजाति का उल्लू फंस गया था। वन अफसर के अनुसार, इस प्रजाति के उल्लू मांसाहारी होते हैं। इंसान को यदि घायल कर दे तो इंफेक्शन का खतरा बना रहता है। इसकी उम्र करीब डेढ़ से 2 साल के बीच में है। बड़े और हरे-भरे पेड़ों पर यह घने जंगलों की ओर से आते हैं। देश के कई हिस्सों में इसे बेहद पवित्र माना जाता है।
शर्मीला और शांत होता है: बार्न उल्लू 20 साल तक जिंदा रह सकते हैं। प्राकृतिक अवस्था में जंगलों में 70 प्रतिशत बार्न उल्लू अपने जन्म के पहले साल में ही प्रतिकूल परिस्थितियों के चलते अकाल मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं। देश के विभिन्न भागों में ग्रामीण अंचल में ऐसी मान्यता है कि बार्न उल्लू को पवित्र मानते हैं, जिससे घर तथा गांव में तरक्की, खुशहाली तथा उन्नति होती है। स्वभाव से बार्न उल्लू बेहद शर्मीला और शांत होता है। इसकी आवाज सामान्य उल्लू के जैसी नहीं होती है। इसकी आवाज काफी कर्कश होती है।
जोड़े में ही रहते हैं: ये उल्लू अनाज खाने वाले जीव-जंतुओं का शिकार करता है। इस प्रजाति के उल्लू अक्सर जोड़े में ही रहते हैं। ये सूखी जगह, पीपल, खंडहर और पुराने किलों में ही रहना पंसद करते हैं। सालाना चार से सात सफेद चिकने गोलाकार अंडे देते हैं। ऐसी स्थिति में नर ही भोजन की व्यवस्था करता है। जबकि मादा अंडो की रक्षा करती है।