संजय गुप्ता, INDORE. इंदौर में पूर्व सीएम और कांग्रेस के राज्यसभा सांसद दिग्विजय सिंह का 22 और 23 मई को इंदौर दौरा है। पहले दिन वह इंदौर में बीजेपी की गढ़ वाली विधासनभा सीट 2, 4 और 5 को लेकर रणनीति बनाएंगे और इसके लिए बैठक करेंगे। वहीं अगले दिन सांवेर सीट तो मूल रूप से 2018 में तो कांग्रेस के पास थी। लेकिन, तुलसी सिलावट में बीजेपी में जाने के बाद उपचुनाव में हार के बाद बीजेपी के कोटे में चली गई है। इसके लिए भी रणनीति बनाएंगे। सिंह इन दिनों प्रदेश की 66 विधानसभा सीटों के लिए सक्रिय है जो लंबे समय से बीजेपी के पास है। कांग्रेस की कोशिश है कि इसमें से कुछ सीटों पर भी यदि सेंध मारी जा सकी तो विधानसभा चुनाव में कांग्रेस अच्छे नंबरों में पहुंच सकती है। उधर गुरुवार को पीसीसी चीफ कमलनाथ भी इंदौर आ रहे हैं, वह यहां गणमान्य लोगों से मिलेंगे तो वहीं विधानसभा दो में चिटूं चौकसे के आयोजन में जाएंगे।
इंदौर के विधानसभा सीटों पर यह है लंबे समय से हाल-
- विधानसभा 1- यह सीट कांग्रेस के पास है, संजय शुक्ला विधायक है और इस बार फिर फिलहाल उनकी स्थिति मजबूत दिख रही है, वहीं बीजेपी को योग्य उम्मीदवार की तलाश है।
विधानसभा 2- यह सीट साल 1993 से ही बीजेपी के पास है, हालांकि पहले कांग्रेस की गढ़ हुआ करती थी। लेकिन, इसके बाद कैलाश विजयवर्गीय के चुनाव लड़ने से स्थिति ऐसी बदली कि यहां से प्रदेशभर में सबसे ज्यादा सीटों से बीजेपी के जीतने वाली सीट बन गई है। साल 1993, 1998 और 2003 में विजयवर्गीय जीते तो फिर 2008, 2013 और 2018 में उनके मित्र रमेश मेंदोला जीत रहे हैं। कांग्रेस को भी यहां योग्य उम्मीदवार की तलाश रहती है, हालांकि इस बार निगम नेता प्रतिपक्ष चिंटू चौकसे मैदान में उतरेंगे।
विधानसभा 3- इस सीट से पहले कांग्रेस मजबूत थी और अश्विन जोशी ने बीजेपी की हवा में भी साल 2003, 2008 में जीत हासिल की लेकिन इसके बाद 2013 में वह बीजेपी की उषा ठाकुर से और फिर 2018 में आकाश विजयवर्गीय से हार गए। यहां कांटे का मुकबला तय है।
विधानसभा 4- यह सीट साल 1990 से ही बीजेपी के पास है और अब बीजेपी की अयोध्या के नाम से ही जानी जाती है। सबसे पहले कैलाश विजयर्गीय इसी सीट से चुनाव जीते, इसके बाद 1993 से लक्ष्मण सिंह गौड़ लगातार जीते बाद में उनके निधन के बाद मालिनी गौड़ लगातार भारी वोट से जीत रही है। विधानसभा 2 के बाद इसी विधानसभा से बीजेपी सबसे ज्यादा वोट से जीत हासिल करती है। यहां से मालिनी गौड़ फिर से लगभग तय है, कांग्रेस के पास उम्मीदवार का संकट है हालांकि गोलू अग्निहोत्री तय है।
विधानसभा 5- यह विधानसभा कांग्रेस के लिए हाथ आया और मुंह को नहीं आया वाली है। कांग्रेस के समर्थक वोट बैंक होने के बाद भी साल 2003 से ही यह बीजेपी के पास है। एक-एक कर कई उम्मीदवार आजमा लिए गए हैं। बीते चुनाव में मात्र 1,132 वोट से कांग्रेस हारी। अब कांग्रेस की ओर से सत्यनारायण पटेल और स्वप्निल कोठारी के बीच टिकट की लड़ाई है। तो वहीं, बीजेपी भी नए युवा उम्मीदवार की तलाश में हैं। इसमें गौरव रणदिवे, नानुराम कुमावत के नाम चल रहे हैं।
महू विधानसभा- यहां से 2008 से ही बीजेपी जीत रही है, 2 बार विजयवर्गीय और फिर 2018 में उषा ठाकुर। लेकिन अब बीजेपी के अंदर ही बाहरी और स्थानीय उम्मीदवार की मांग जोर पकड़ रही है। इसके बाद यहां टिकट की दावेदारी अहम है, कांग्रेस भी नया उम्मीदवार तलाशेगी।
देपालपुर विधानसभा- यहां एक बार कांग्रेस और एक बार बीजेपी के जीतने की पंरपरा चल रही है। फिलहाल कांग्रेस से विशाल पटेल विधायक है। वह फिर से चुनाव लड़ेंगे। लेकिन, बीजेपी को उम्मीदवार तलाशना है, इसके लिए पूर्व विधायक मनोज पटेल के साथ ही चिंटू वर्मा व अन्य दावेदार हैं।
सांवेर विधानसभा- यहां से 1985 से ही तुलसी सिलावट चुनाव लड़ रहे हैं। बीजेपी और कांग्रेस के पास यह सीट आती-जाती रहती है। जैसे 2018 में कांग्रेस के पास गई तो फिर उपचुनाव में बीजेपी के पास गई भले ही उम्मीदवार एक ही सिलावट थे। बीजेपी से वह तय है, लेकिन कांग्रेस से उम्मीदवारी तय होना बाकी है। हालांकि प्रेमचंद गुड्डु की बेटी रीना सेतिया का लड़ना लगभग तय है।