पूर्व सांसद फूलचंद वर्मा का निधन- सिंधिया परिवार को लेकर हुई बहस के बाद नहीं मिला टिकट, बड़े भैय्या के निधन पर फूटफूटकर रोये थे

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Vivek Sharma
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पूर्व सांसद फूलचंद वर्मा का निधन- सिंधिया परिवार को लेकर हुई बहस के बाद नहीं मिला टिकट, बड़े भैय्या के निधन पर फूटफूटकर रोये थे

संजय गुप्ता, INDORE, देवास-शाजापुर, उज्जैन से सांसद रहे फूलचंद वर्मा का निधन हो गया है। वह लंबे समय से अस्वस्थ थे और कुछ समय पहले उन्हें उपचार के लिए एयर एंबुलेंस से उपचार के लिए मुंबई ले जाया गया था। वहीं कोकिलाबेन अस्पताल में बुधवार शाम उनका निधन हुआ। अंतिम यात्रा गुरूवार 17 नवंबर को दोपहर तीन बजे बाणगंगा स्थित उनके निवास से कुम्हारखाड़ी मुक्तिधाम जाएगी। अगस्त मे ही उनके सबसे करीब मित्र पंडित विष्णप्रसाद शुक्ला (बडे भैय्या) का निधन हुआ था, तब वह उनके घर गए थे और अंतिम दर्शन करते हुए फूट-फूटकर रोए थे। उनकी दोस्ती जनसंघ के जमाने से चली आ रही थी। 




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विष्णु शुक्ला के निधन पर फूट-फूटकर रोए थे फूलचंद्र वर्मा




एक बहस से थम गई थी राजनीतिक यात्रा



देवास सीट (पहले शाजापुर नाम से थी) से चार बार और उज्जैन से एक बार सांसद रहे फूलचंद्र वर्मा पहले जनसंघ और फिर बीजेपी का एक बडा राजनीतिक चेहरा थे। लेकिन साल 1996 के दौरान संसद में एक बहस के बाद फिर उन्हें पार्टी ने कभी टिकट नहीं दिया। दरअसल उस बहस के दौरान सांसद माधवराज सिंधिया के खिलाफ बीजेपी के सांसद खड़े हो गए और किसी ने उन्हें गद्दारों के परिवार से होने औऱ् अंग्रेजों का साथ देने का आरोप लगाया। तब राजमाता सिंधिया भी बीजेपी में थी। इस घटना के बाद से पार्टी में काफी असंतोष रहा और फिर उन्हें चुनाव में टिकट नहीं मिला। पार्टी ने उनका टिकट काट कर साल 1996 में थावरचंद्र गेहलोत को टिकट दिया। इसके बाद गेहलोत चार बार सांसद रहे। वर्मा टिकट मांगते रहे लेकिन उन्हें दूसरा मौका नहीं मिला। हालांकि उन्होंने कुछ साल पहले एक बार कहा था कि इस बहस के कारण मेरा टिकट नहीं कटा होगा, पार्टी को लगा होगा कि पांच बार सांसद हो गए, अब अन्य को मौका मिलना चाहिए, वैसे भी संसद में मैं केवल खडा हुआ था मैंने कोई बयान नहीं दिया 



केवल एक बार हारे थे वर्मा



साल 1971 में फूलचंद्र वर्मा उज्जैन से पहली बार सांसद बने थे। तब उज्जैन जिले की सभी सीटों के अलावा सोनकच्छ, खातेगांव व हाटपिपल्या विधानसभा सीटें इसमें थीं। आपातकाल के बाद देवास-शाजापुर सीट में देवास, हाटपिपल्या और सोनकच्छ विधानसभा सीटें आ गईं। वर्मा 1977 में यहां से लड़ने लगे और चार बार जीते। इस बीच केवल एक बार इंदिरा गांधी जी की मौत के बाद चली कांग्रेस लहर में साल 1984 में चुनाव हारे।



बिगड़ी गाड़ी और आठ लोगों के साथ करते थे प्रचार



एक बार वर्मा ने बताया था जनसंघ जब नया बना तब पार्टी के पास काम करने के लिए कोई नहीं था, सुविधाओं की तो बात ही नहीं होती थी, वह ना के बराबर थी। मुश्किल से चार-पांच गाड़ियां किराए से होती थी, वह भी कई बार चलते-चलते बंद हो जाती थी। इसके चलते 70 के दशक में प्रचार करना दूभर था, साथ में आठ-दस लोग से ज्यादा नहीं होते थे। तब विरोधी दल जनसंघ को लेकर नारा देते थे कि-  बिगड़ी गाड़ी आठ जवान। 



टिकट आवंटन पर भी उठा दिए थे सवाल



 पूर्व भाजपा सांसद फूलचंद वर्मा ने साल 2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान टिकट आवंटन को लेकर भी सवाल खड़े कर दिए थे, जब पीएम पद के लिए नरेंद्र मोदी पहली बार चेहरा बने थे। उन्होंने तत्कालीन बीजेपी अध्यक्ष राजनाथ सिंह को पत्र लिखकर कहा था कि-  मैं जानना चाहता हूं कि लोकसभा चुनावों के लिए पार्टी में किस आधार पर टिकट बांटे गए हैं। बीजेपी ने अशोक अर्गल को मुरैना सीट से लोकसभा चुनाव का टिकट देने से मना कर दिया है, जबकि वह (अशोक) पांच बार सांसद रहे छबीराम अर्गल के बेटे हैं। उन्होंने बताया कि इस सीट पर टिकट ऐसे व्यक्ति को दिया गया, जिस पर प्रशासनिक अधिकारी रहते हुए कांग्रेस के इशारे पर संघ और भाजपा के कार्यकर्ताओं को प्रताड़ित करने का आरोप है।



1996 के बाद अचानक हाशिये पर चले गए



फूलचंद वर्मा देवास सीट (पहले शाजापुर नाम से थी) से 4 और उज्जैन से एक बार सांसद रहे थे। फूलचंद्र वर्मा का बड़ा नाम रहा लेकिन 1996 के बाद अचानक हाशिये पर चले गए। जनसंघ और फिर भाजपा से पांच बार के सांसद का टिकट ऐसा कटा कि दूसरी बार कभी मौका नहीं दिया गया। 


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