संजय गुप्ता, INDORE. दुश्मनों के लिए हमारा शासन, प्रशासन वज्र की तरह कठोर है, भूमाफिया को 10 फीट जमीन में गाड़ देंगे, कोई नहीं बचेगा। ये जोशीली बात मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कई बार मंच से बोली है, लेकिन हकीकत में क्या हो रहा है? इंदौर के जाने-माने भूमाफिया चंपू उर्फ रितेश अजमेरा, नीलेश अजमेरा, चिराग शाह, हैप्पी धवन, योगिता अजमेरा इन सभी के खेल के आगे पूरा प्रशासन, अधिकारी असहाय साबित हो रहा है। पीड़ित कोर्ट से लेकर कलेक्ट्रेट तक भटक रहे हैं और भूमाफिया जमानत का मजा लेकर घूम रहे हैं। हालत ये है कि सालों से फरार चल रहे चिराग शाह एप्पल के फेसटाइम ऐप पर जॉनी नाम की आईडी के साथ सभी से संपर्क में हैं। और तो और वो लगातार इंदौर आता रहता है। वहीं 32 हजार का इनामी भूमाफिया नीलेश अजमेरा भी इंदौर से लगातार संपर्क में हैं और मुंबई में रहने की बात लगातार सामने आती रही है। इस सबके बाद भी यह पकड़ से दूर है। सैटेलाइट, फीनिक्स और कालिंदी गोल्ड में किस तरह से आपस में मिलकर ये खेल भूमाफियाओं ने खेला है, आइए समझते हैं...
सैटेलाइट कॉलोनी में बैंक लोन के नाम पर खेल
ये कॉलोनी एवलांच कंपनी, जो 2008 में नितेश चुघ और मोहन चुघ ने बनाई, लॉन्च की गई। इसके बाद इसमें ये दोनों हट गए और कैलाश गर्ग और सुरेश गर्ग आ गए। बाद में प्रेमलता गर्ग और भगवानदास होटलानी डायरेक्टर बन गए। इस गर्ग ने कुछ हिस्सा बैंक में गिरवी रख कर 110 करोड़ का बैंक लोन ले लिया। कंपनी ने 10 अप्रैल 2008 को एक प्रस्ताव पास किया और चंपू को डेवलपर्स बनाते हुए सभी सौदे करने के लिए पॉवर ऑफ अटार्नी दे दी। वहीं, नारायण एंड अंबिका साल्वेक्स इंफ्रास्ट्रक्चर कंपनी बनी जिसने कॉलोनी के डेवलपर्स का काम लिया। इस कंपनी में चंपू और उसकी पत्नी योगिता जून 2005 में डायरेक्टर बने, जो 2009-10 तक रहे। यानी कॉलोनी के सौदे और बिक्री चंपू अजमेरा ने की। अब चंपू प्लॉटधारकों को प्लॉट देने से ये कहकर बच रहा है कि ये कॉलोनी तो गर्ग की थी और उसने बैंक से लोन ले लिया। वहीं, गर्ग इसमें पीड़ितों को यह कहकर भगा रहा है कि मैंने उस जमीन को गिरवी नहीं रखा जो चंपू ने बेची, वह दूसरा हिस्सा था तो चंपू ही निपटाएगा। इस पूरे खेल में पीड़ित और अधिकारी उलझ कर रह गए। जिन्हें कब्जा देना भी बताया जा रहा है, वहां गर्ग एंड कंपनी भगा देती है।
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फीनिक्स कॉलोनी में 1 करोड़ लेकर कंपनी को डिफाल्टर बनाया
फीनिक्स कॉलोनी में एक अलग खेल हुआ। इस कॉलोनी के लिए फीनिक्स डेवकांस कंपनी बनाई गई। इसमें सभी के पास अलग-अलग शेयर थे और इसमें नीलेश अजमेरा और इसकी पत्नी सोनाली अजमेरा, चंपू अजमेरा और उसकी पत्नी योगिता अजमेरा, चंपू और नीलेश के पिता पवन अजमेरा, चिराग शाह पहले डायरेक्टर रहे। जब 90% से ज्यादा प्लॉट बेच दिए गए तो बाद में अपने नौकरों, कर्मचारियों एम पंवार, निकुल कपासी, रजत बोहरा, विकास सोनी इन्हें डायरेक्टर बना दिया। इसी दौरान चंपू की फीनिक्स डेवकांस कंपनी ने इंदौर की ड्रग कंपनी पेरेंटल ड्रग (इंडिया) लिमिटेड से एक करोड़ का लोन 2008 में लिया। खुद पेरेंटल ड्रग कंपनी ने भी फिनिक्स में कुछ प्लाट धारकों को रजिस्ट्री कराई है। बाद में लोन नहीं चुकाया गया और फिनिक्स ने खुद को दिवालिया घोषित कर लिया। ये केस आज भी हाईकोर्ट में चल रहा है।
अब यहां पर किसी पीड़ित को प्रशासन प्लाट का कब्जा दिलवा भी रहा है तो कोई मतलब का नहीं है, क्योंकि अब कंपनी तो ही है नहीं, फिर इन प्लॉट की नई रजिस्ट्री कराएगा कौन? पीड़ित केवल प्लॉट की जगह देखकर खुश है कि यहां पर कब्जा है, लेकिन वास्तव में कब्जा है ही नहीं, क्योंकि ना रजिस्ट्री है और ना ही वह प्लॉट बेच सकते हैं। इस तरह महज 1 करोड़ राशि के बदले में चंपू ने कंपनी को दिवालिया कराकर करोड़ों का खेल कर दिया। दूसरा खेल यहां पर यह कि टीएंडपीसी के नक्शे से ज्यादा प्लॉट हैं। वास्तव में किसान को बिना पूरा भुगतान किए ही उसकी जमीन को कॉलोनी में लेना बताकर प्लाट बता दिए और बेच भी दिए। एक फरियादी नीरज प्रजापत ने यहां प्लाट देने के बदले चंपू, योगिता और रजत बोहरा के खिलाफ 27 लाख 70 हजार रुपए लेकर धोखाधड़ी करने की शिकायत भी की हुई है।
कालिंदी गोल्ड में मिली जुली नूराकुश्ती
तीसरी कॉलोनी कालिंदी गोल्ड। इसकी शुरूआत नीलेश अजमेरा ने की, बाद में उसने अपने व्यक्ति महावीर जैन को डायरेक्टर बना दिया, संजय जैन भी आए, फिर चिराग ने अपने आदमी निकुल कपासी को भी जोड़ दिया और हैप्पी धवन भी इस कॉलोनी से जुड़ गए। अधिकांश डायरियां एचडी साइन यानी हैप्पी धवन के नाम की हैं , विविध शपथपत्रों में भी उसी के नाम है। यहां जिन पीड़ितों के प्लॉट की राशि चिराग ने खाई, उसे चिराग चंपू का बता कर बचने में लगा है, जहां चंपू का लेन-देन है वह चिराग और नीलेश पर उतार रहा है, इसी तरह सभी आपस में एक-दूसरे को ढोल रहे हैं। इस कॉलोनी से लगा एक हिस्सा योगिता अजमेरा के पास है, जहां सामुदायिक भवन और बगीचे की जमीन पर भी प्लॉट कटे हुए हैं। इस जमीन को प्रशासन ने अपने कब्जे में नहीं लिया है, जबकि यहां प्लॉट मौजूद हैं। योगिता ने 8 प्लॉट चिराग को बेचे हैं, जो चिराग ने दबाव के बाद आठ रजिस्ट्री वाले पीड़ितों को यहां प्लॉट दिए हैं। लेकिन जिस तरह से फीनिक्स में प्रशासन ने प्रमोद अग्रवाल (संदीप तेल के भाई) और उसकी कंपनी रजत रियल एस्टेट से जमीन वापस लेकर पीड़ितों को कब्जे दिलवाए, चाहते तो वह योगिता से भी जमीन लेकर यहां कब्जे दिला सकते थे, लेकिन यह सख्ती नहीं की गई। बाणगंगा थाने में हुए एक एफआईआर में इस कॉलोनी के घोटाले में नीलेश अजमेरा, चिराग शाह, चंपू अजमेरा, हैप्पी धवन और महावीर जैन सभी नामजद आरोपी हैं।
टीएंडसीपी प्लान से ज्यादा प्लॉट, खाली मैदान फिर एनओसी कैसे मिली?
खुद प्रशासन ने हाईकोर्ट में बताया है कि मौके पर खेत के मैदान है, आरोपियों ने फर्जी साइन के जरिए शासन से मंजूरी ली। यहां तक बोला गया कि ऑन रिकॉर्ड कि आरोपियों ने सरकार के साथ भी धोखाधड़ी की है। फिर सवाल यही है कि प्रशासन ने उनके साथ हुई धोखाधड़ी में खुद एफआईआर इन पर क्यों नहीं कराई, जिस तरह से फरवरी 2021 में भूमाफिया अभियान के तहत दीपक मद्दा और सुरेंद्र संघवी मामले में प्रशासन ने खुद ही आधा दर्जन एफआईआर कराई थी। इन्हें इतनी रियायत क्यों मिली? वहीं, 2008-09 के दौरान फीनिक्स को मात्र 45 दिन में एनओसी दी गई, बंधक प्लाट भी मुक्त हो गए, तब अधिकारी क्यों चुप्पी साधे हुए थे, जिसका खामियाजा आज सैकड़ों पीड़ित उठा रहे हैं, तब एनओसी देने वाले एक अधिकारी प्रमोट होकर आईएएस भी हो गए और तीन-तीन जिलों की कलेक्टरी संभाल चुके हैं और अभी भी कलेक्टर हैं।
हाईकोर्ट में संपत्तियां भी नहीं बताई, कैसे देंगे न्याय?
हाईकोर्ट ने इस सुनवाई के दौरान टिप्पणी भी कि जब खेत के मैदान है प्लॉट नहीं है तो फिर पीड़ितों को कैसे प्लॉट देंगे, क्या इनकी संपत्ति देखी? जिस पर कोई ठोस जवाब नहीं दिया गया, बस यही कहा गया कि यह किसानों की राशि दे दें तो वो अपनी सौदे की जमीन दे देंगे, तो प्लॉट दे सकेंगे। चंपू, चिराग, नीलेश, योगिता, हैप्पी सभी की इंदौर में अकूत अचल संपत्तियां है। जानकारों का कहना है कि यदि ये प्लॉट नहीं देते हैं तो प्रशासन को चाहिए कि पूरी संपत्ति की सूची हाईकोर्ट में पुटअप करे और यदि भू-माफिया प्लाट नहीं देते हैं तो संपत्ति बेचकर किसानों को भुगतान कर जमीन लेकर प्लॉट दिए जाएं या फिर पीड़ितों को ब्याज समेत राशि लौटाई जाए। लेकिन इस मामले में भी प्रशासन के पास कोई ठोस प्लान नहीं है।
जब तक प्लॉट की रजिस्ट्री नहीं, कोई मतलब का नहीं
जिन मामलों में प्रशासन लोगों को प्लाट के कब्जे देना बता रहा है, दरअसल वो खाली कब्जे हैं, उससे कोई विधिक अधिकार नहीं होगा, तब तक कि नए सिरे से उन प्लॉट की रजिस्ट्री पीडितों के पक्ष में नहीं होती है। वहीं, रसीद पर सौदै करने वालों को मय ब्याज के एक तय फार्मूले से रकम लौटाना होगी, जिसके लिए भूमाफियाओं की संपत्ति की कुर्की जरूरी है।