संजय गुप्ता, INDORE. शांत, सौम्य इंदौर के महापौर पुष्यमित्र भार्गव अब गुस्सा होने लगे हैं। सफाई देखने के लिए बुधवार(10 मई) सुबह औचक दौरे पर निकले महापौर को जब गंदगी दिखी तो उनके सब्र का बांध टूट गया। गुस्से में कर्मचारियों को बोला कि प्रेम-मोहब्बत की भाषा आप नहीं समझते हैं, हमने समझा कर देख लिया। अब तो डंडा लेकर ही निकलना पड़ेगा। इस तरह के शत्रु बनने वाला वाक्य मित्र महापौर के मुंह से सुनकर सभी को हैरानी हुई। इसके पहले एक बार वह पार्षदों की बैठक में विकास यात्रा की समीक्षा के दौरान भड़के थे। जब कहा था कि लालफीताशाही नहीं चलेगी, जहां भी यह संदेश पहुंचाना हो पहुंचा देना।
सफाई का तमगे पर आंच आई तो महापौर की छवि हो जाएगी दागदार
बीते साल सफाई का छक्का मारने का श्रेय भले ही महापौर के खाते में गया हो, लेकिन वह भी जानते हैं कि सफाई सर्वेक्षण के समय तो वह महापौर पद पर भी नहीं थे। लेकिन इस बार निगमायुक्त बदल गई हैं, सफाई सर्वेक्षण के दौरान यदि किसी भी कारण से एक पायदान भी इंदौर फिसला तो पूरी गाज महापौर पर आएगी और छवि दागदार हो जाएगी। उनकी राजनीति के लिए यह काफी घातक साबित होगा, क्योंकि वह राजनीतिक रूप से पहले से ही सभी के निशाने पर है।
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आखिर गुस्सा क्यों हुए महापौर?
महापौर को अपनी इसी छवि और शहर की चिंता है, बीते कुछ माह के कार्यकाल से उन्हें यह लगने लगा है कि राजनीतिक तौर पर और साथ ही अंदरूनी निगम में भी उन्हें असहयोग का रवैया तेजी से बढ़ता जा रहा है। राजनीति में अभी भी कई लोगों को पच नहीं रहा है कि वह एकदम से महापौर कैसे बन गए, जबकि वह सालों से राजनीति में सक्रिय हैं। ऐसे में उन्हें फेल साबित करने की अलग कहानी शहर में महसूस की जा रही है। इसके साथ ही उनके महापौर टिकट की दौड़ में चलने, शपथ लेने से लेकर अभी तक के समय में यही संदेश आया है कि भोपाल से प्रदेश के मुखिया का उतना आशीर्वाद उन्हें नहीं मिल रहा है, जिसकी मंशा उन्हें थी। इसकी राजनीतिक वजह उनके प्रदेशाध्यक्ष वीडी शर्मा और बीजेपी राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय के अधिक करीबी होने का संदेश है। ऐसे में वह समझ गए हैं कि अकेले ही किला लड़ाना होगा और कुछ करके दिखाना होगा।
निगमायुक्त मन का नहीं दिया, हुकमचंद प्लान भी नहीं चला
जब प्रतिभा पाल के निगमायुक्त से ट्रांसफर होने की बात चल रही थी तब महापौर ने अपनी पसंद के कुछ अधिकारियों के नाम दिए सरकार को सुझाए थे, इसमें स्मार्ट सिटी सीईओ दिव्यांक सिंह का भी नाम था, क्योंकि वह उनके साथ कंफर्ट थे और दिव्यांक सिंह का व्यवहार भी सौम्य है। लेकिन प्रदेश सरकार ने उनके मन की बात नहीं मानते हुए प्रतिभा पाल की ही बैच की आईएएस हर्षिका सिंह को पद सौंप दिया। निगम में यदि निगमायुक्त नहीं चाहे तो कोई भी अधिकारी, कर्मचारी महापौर के खेमे में जा ही नहीं सकता, क्योंकि सारी कागजी कार्रवाई निगमायुक्त के ही हस्ताक्षर से होती है। ऐसे में महापौर के हाथ फिर से बंध गए। हुकमचंद जमीन का विवाद सुलझाने के लिए महापौर ने मास्टर स्ट्रोक खेला था, यहां की जमीन पर आईटी पार्क बनाने का प्रस्ताव पास किया और शासन को भेजा। लेकिन वहां से यह प्रस्ताव ठंड़े बस्ते में चला गया और हाउसिंग बोर्ड का टाउनशिप बनाने का प्रस्ताव आ गया। इन सभी के चलते महापौर खुलकर बल्लेबाजी नहीं कर पा रहे हैं और शहर के राजनीतिक और प्रशासनिक गलियारा में उनकी झुंझलाहट की वजह भी यही मानी जा रही है।