भोपाल। क्या प्राइवेट हॉस्पिटल एवं नर्सिंग होम संचालक जरूरतमंद मरीजों को इलाज के लिए मुख्यमंत्री स्वेच्छानुदान (cm swecha anudan) से मंजूर की जाने वाली सहायता राशि में गोलमाल कर रहे हैं? यह सवाल इसलिए खड़ा हो रहा है क्योंकि 523 मरीजों के इलाज के लिए मंजूर 2 करोड़ रुपए की राशि के खर्च का हिसाब-किताब न देने पर भोपाल कलेक्टर ने सरकार से शहर के तीन निजी अस्पतालों को ब्लैकलिस्ट (3 Private hospital Blacklist) करने की सिफारिश की है। आपको बता दें कि पिछले साल राजधानी में मुख्यमंत्री स्वेच्छानुदान से एक फर्जी मरीज के नाम पर 98 हजार रुपए का एस्टीमेट मंजूर कराने का केस सामने आ चुका है। हैरानी की बात यह है कि इस मामले में मुख्यमंत्री सचिवालय के निर्देश पर एफआईआर दर्ज कराए जाने के बाद भी पुलिस अब तक आरोपी अस्पताल संचालक और दो डॉक्टर्स को गिरफ्तार नहीं कर पाई है।
ऐसे मंजूर होती है इलाज के लिए सीएम स्वेच्छानुदान से सहायता राशि: मुख्यमंत्री स्वेच्छानुदान से प्रदेश के जरूरतमंद मरीजों के आवेदन पर इलाज के लिए आर्थिक सहायता राशि मंजूर (financial aid for treatment) की जाती है। इसके तहत इलाज के लिए हॉस्पिटल मैनेजमेंट एक तय फॉर्मेट में एस्टीमेट बनाकर देते हैं। इसे मरीज के परिजन मुख्यमंत्री निवास या मंत्रालय में जमा कराते हैं। एस्टीमेट के साथ जरूरी दस्तावेजों की जांच कराने के बाद इलाज के लिए सहायता राशि जारी कर दी जाती है। मंजूर की गई राशि सीधे हॉस्पिटल के अकाउंट में जमा होती है। हॉस्पिटल मैनेजमेंट को इस राशि का हिसाब (उपयोगिता प्रमाणपत्र) संबंधित जिला कलेक्टर कार्यालय को भेजना होता है। यानि स्वेच्छानुदान से मिली राशि से क्या इलाज और किस तरह की सर्जरी की गई, इस पर कितना खर्च हुआ। इसका ब्यौरा उपयोगिता प्रमाण पत्र के रूप में कलेक्टर कार्यालय में जमा कराना होता है।
3 साल से इलाज के खर्च का हिसाब नहीं दे रहे हॉस्पिटल संचालक: मरीज के इलाज के बाद सहायता राशि का उपयोगिता प्रमाणपत्र देने की अनिवार्यता के बाद भी प्रदेश के कई प्राइवेट अस्पताल संचालक इस नियम का गंभीरता से पालन नहीं कर रहे हैं। राजधानी भोपाल (Bhopal Private hospital) में ही ऐसे तीन निजी अस्पताल संचालकों ने पिछले तीन साल से मुख्यमंत्री स्वेच्छानुदान से इलाज के लिए मंजूर राशि का हिसाब-किताब देना मुनासिब नहीं समझा है। इस बारे में कई रिमाइंडर दिए जाने के बाद भी उपयोगिता प्रमाणपत्र जमा नहीं कराने पर भोपाल कलेक्टर अविनाश लवानिया (Avinash lavania) ने 20 दिसंबर 2021 को संबंधित तीनों अस्पतालों को मुख्यमंत्री स्वेच्छानुदान के लिए ब्लैकलिस्ट करने के लिए सामान्य प्रशासन विभाग (GAD) के सचिव को लिखित सिफारिश की है।
1. आपको बता दें कि भोपाल में मालवीय नगर स्थित पीपुल्स जनरल हॉस्पिटल (Peoples general hospital) को बीते तीन साल 2018-19, 2019-20 और 2020-21 में 293 मरीजों के इलाज के लिए करीब 1 करोड़ 34 लाख रुपए मंजूर किए गए। लेकिन हॉस्पिटल मैनेजमेंट ने जिला प्रशासन को अब तक उपयोगिता प्रमाण पत्र नहीं दिया है।
2. भोपाल में मोतिया तालाब रोड पर स्थित एबीएम मल्टी स्पेशियलिटी हॉस्पिटल को बीते दो सालों 2018-19 और 2019-20 में 151 मरीजों के इलाज के लिए करीब 53 लाख रुपए दिए गए। लेकिन हॉस्पिटल मैनेजमेंट ने कलेक्टर कार्यालय को इस राशि का उपयोगिता प्रमाण नहीं दिया है।
3. इसी तरह भोपाल एयरपोर्ट रोड स्थित सेंट्रल हॉस्पिटल को 81 मरीजों के इलाज के लिए बीते दो सालों 2018-19 और 2019-20 में करीब 24 लाख रुपए दिए गए।इस तरह इन तीनों अस्पतालों को मुख्यमंत्री स्वेच्छानुदान से 523 मरीजों के लिए इलाज के लिए मुख्यमंत्री स्वेच्छानुदान से करीब 2 करोड़ रुपए मिले। लेकिन इस राशि से मरीजों का क्या इलाज किया गया, कौन सा ऑपरेशन किया गया, इसकी जानकारी नहीं दी।
हॉस्पिटल संचालकों के अजीबो-गरीब तर्क: सरकार से इलाज के लिए मिले पैसों का उपयोगिता प्रमाणपत्र देने की अनिवार्यता का प्राइवेट अस्पताल संचालक कितनी गंभीरता से पालन कर रहे हैं इसका अंदाजा उनके जवाब से लगाया जा सकता है। द सूत्र के रिपोर्टर ने जब इस मामले में सेंट्रल हॉस्पिटल के संचालक कमलेश मीणा और पीपुल्स हॉस्पिटल के मैनेजर उदय शंकर से बात की तो उन्होंने अजीब तर्क दिए। उन्होंने बताया कि उपयोगिता प्रमाण पत्र बनाने वाले कर्मचारियों ने नौकरी छोड़ दी इसीलिए जानकारी नहीं भेज पाए। वहीं एबीएम हॉस्पिटल (MBM Hospital) के मैनेजर नदीम खान का कहना है कि सभी उपयोगिता प्रमाण पत्र समय पर कलेक्टर ऑफिस भेज दिए गए हैं। जिला प्रशासन के अधिकारियों को कुछ गलतफहमी हुई होगी। इसी के चलते उन्होंने हमें वसूली के नोटिस जारी कर दिया।
उपयोगिता प्रमाणपत्र नहीं दिया तो राशि वसूल करेंगे: भोपाल के कलेक्टर अविनाश लवानिया ने बताया कि बार-बार स्मरण पत्र भेजने के बाद भी संबंधित निजी हॉस्पिटल का मैनेजमेंट जानकारी नहीं दे रहा था। इसलिए तहसीलदारों को उनसे राशि की वसूली के आदेश जारी किए गए। यदि वे उपयोगिता प्रमाण पत्र जमा करा देंगे तो उन्हें दी गई राशि की वसूली नहीं की जाएगी।
इस मामले से समझिए, ऐसे किया जाता है गोलमाल: फरवरी 2021 में बावड़िया कला इलाके में रहने वाले रिटायर्ड अधिकारी डीसी जोशी के नाम पर एक निजी अस्पताल ने फर्जीवाड़ा (Private Hospital Fraud) किया था। परवलिया सड़क इलाके में संचालित सफलता हॉस्पिटल के मैनेजमेंट ने डीसी जोशी के नाम पर 98 हजार रुपए का एस्टीमेट बनाकर मुख्यमंत्री स्वेच्छानुदान से पैसा मंजूर करा लिया था। एस्टीमेट में लिखा गया कि एक्सीडेंट में जोशी के दोनों पैर टूट गए हैं। जबकि जोशी ने पूछताछ में बताया कि उनका तो कभी एक्सीडेंट हुआ ही नहीं। न ही वे कभी सफलता हॉस्पिटल में भर्ती हुए थे।
कन्फर्मेशन कॉल ने खोल दी फर्जीवाड़े की पोल: सफलता अस्पताल के 98 हजार रुपए के एस्टीमेट पर मरीज के रूप में डीसी जोशी के नाम पर सीएम स्वेच्छानुदान से 15 हजार रुपए मंजूर किए गए थे। जब मंत्रालय से राशि की मंजूर होने की जानकारी डीसी जोशी को फोन कॉल से दी गई। इससे सफलता हॉस्पिटल संचालक के कारनामे की पोल खुल गई। इसके बाद डीसी जोशी ने मुख्यमंत्री के प्रमुख सचिव मनीष रस्तोगी से मुलाकात कर फर्जीवाड़े का पूरा खुलासा किया। प्रमुख सचिव के निर्देश पर भोपाल के शाहपुरा थाने में सफलता हॉस्पिटल के संचालक डॉ. रजनी मालवीय, डॉ. आशीष आनंद राव और डॉ. सुरेश उइके के खिलाफ धारा 420, 467, 468, 506, 34 के तहत एफआईआर दर्ज की गई।
FIR के 11 महीने बाद भी आरोपियों तक नहीं पहुंच सकी पुलिस: सफलता हॉस्पिटल के फर्जीवाड़े के खिलाफ डीसी जोशी की शिकायत पर शाहपुरा थाने (Shahpura Thana) में फरवरी 2021 में एफआईआर दर्ज की गई थी। लेकिन अब 11 महीने बीतने के बाद भी पुलिस इस धोखाधड़ी के आरोपियों को गिरफ्तार नहीं कर सकी है। जबकि एक आरोपी तो सरकारी मुलाजिम हैं। डॉ. सुरेश उइके हमीदिया हॉस्पिटल में पदस्थ हैं। हैरत की बात है कि वे रोज ड्यूटी पर अस्पताल आते हैं लेकिन शाहपुरा पुलिस उन तक नहीं पहुंच पा रही है।
(द सूत्र के लिए अंकुश मौर्य की रिपोर्ट।)