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देव श्रीमाली, GWALIOR. आज (15 जनवरी) पूरा देश हर्षोल्लास के साथ मकर संक्रांति मना रहा है। यह ग्रहों और प्रकृति का मिला जुला उत्सव है और इसका तिल और गुड़ से खास रिश्ता है। तिल और गुड़ से बनी ग्वालियर की गजक पूरे देश मे प्रसिद्ध है और यहां से न केवल देश बल्कि दुनिया में भी इसके शौकीन रहते है, लेकिन कोरोना के बाद अब इसके ब्रांड्स भी बदल गए है। इस बार पहली बार कोरोना से बचाने में मदद करने वाली गजक बाजार में आई है। कहा जा रहा है कि इसके खाने आए इम्युनिटी बढ़ जाती है और इससे ही संक्रमण से लड़ने में मदद मिलती है। शुगर पेशेंट के लिए शुगर फ्री गजक भी खूब डिमांड है।
पूरी दुनिया मे सर्दी में होती है गजक की डिमांड
ठंड का सीजन शुरू होते ही ग्वालियर में जगह-जगह गजक की दुकानें सज जाती हैं। गजक वैसे तो मुरैना से निकला प्रोडक्ट है और ग्वालियर की दुकानों पर भी लिखा मिलता है कि मुरैना की प्रसिध्द गजक यहां मिलती है। लेकिन अब ग्वालियर की गजक की धाक ही देश दुनियां में है। इस मिठाई को सर्दी में हर कोई खाना पसंद करता है। यह स्वाद की वजह से अपनी पहचान देश में ही नहीं बल्कि विदेश तक बना चुकी है। यही वजह है कि मकर संक्रांति के त्यौहार पर चंबल से यह गजक सात समुंदर पार तक पहुंचती है। बीते दो साल में कोरोना के कहर के बाद गजक फिर लोगों के लिए उपलब्ध हुई तो वह भी बदलाव किए हुए है। अबकी बार इस त्यौहार पर इम्यूनिटी बूस्टर और शुगर फ्री गजक मार्केट में आई, जो लोगों को काफी पसंद आ रही है। यही कारण है कि लोग सबसे ज्यादा गजब की इन नए ब्रांड्स को पसंद कर रहे हैं। हम आपको बताते हैं कि ग्वालियर - चंबल की गजक की ऐसी क्या तासीर है, जिससे यह कहावत बन गयी कि गुड़ की गजक जिसके मुंह लग जाए फिर फिर छूटती नहीं।
इम्यूनिटी पावर बढ़ाने वाली गजक की मांग बढ़ी
सर्दी में गजक का उपयोग उपयोग किए जाने वाली सामग्री के कारण होता है, जो कड़ाके की ठंड में गर्मी देते है। इसका स्वाद तो लाजबाव होता ही है लेकिन वह सिर्फ स्वाद ही नहीं बल्कि अपनी उपयोगिता के कारण भी उपयोग होती है। इसे बनाने में उपयोग होने वाली तिल और गुड़ सर्दियों में शरीर के लिए औषधि का काम करता है। कोरोना के समय जहां लोग अपने शरीर की इम्युनिटी पावर बढ़ाने के लिए कई तरह की दवाइयां और महंगे खाद पदार्थ खा रहे थे। वहीं अब ऐसी गजक भी तैयार की गई है, जो कोरोना से बचाव में लोगों के लिए बेहद लाभकारी हो।सबसे खास बात यह है कि इसे बनाने में शुद्ध घी और तेल का उपयोग किया जाता है। इसके साथ ही अबकी बार बाजार में शुगर फ्री गजक भी उपलब्ध है। दावा है कि पूरी तरह लोगों के लिए शुगर फ्री है। इस गजब को वह मरीज भी खा सकते हैं, जिन्हें शुगर की बीमारी है। इस गजब को बनाने के लिए खास औषधि का उपयोग किया गया है। साथ ही इस गजक में शक्कर की बजाय पूरी तरह गुड़ का उपयोग किया गया है।
ग्वालियर चंबल मे शाही गजक की 56 तरह की वैरायटी बनती हैं
यूं तो ग्वालियर मुरैना में गुड़ और शक्कर की गजक काफी प्रसिद्ध है। लेकिन अब अंचल में कई वैरायटी की गजक बनाई जा रही है, जिसमें सादा गुड़ और तिल्ली की गजक, गजक की पट्टी, मूंगफली वाली गजक, तिलकुट गुड़, खस्ता गजब, ड्राई फ्रूट रोल गजक, ड्राई फ्रूट गजक, काजू गजक,गुड पट्टी और गजक के समोसे सहित विभिन्न प्रकार की गजक उपलब्ध है। उन्होंने बताया कि मकर संक्रांति पर लोग गजक के साथ ही गुड़ के लड्डू को भी खासा पसंद कर रहे हैं। वह पार्सल करा कर अपने रिश्तेदारों को भेज रहे हैं। साथ ही दुकानदार का कहना है कि इस समय उनके पास 56 तरह की गजक की वैरायटी है। मकर संक्रांति के बाहर पर लोग भारी संख्या में गजक अपने घर ले जाते हैं या फिर पार्सल करा कर अपने दूर के रिश्तेदारों को भेजते हैं। संक्रांति पर गजक दान करने का रिवाज होने से इन दिन सबसे अधिक गजक की खपत होती है और होली तक इसका सीजन चलता है।
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ठंड की शुरूआत होते ही चंबल अंचल में गजक बनने की होती है शुरुआत
ग्वालियर चंबल अंचल की गजक ठंड की प्रसिद्ध मिठाई है। यही कारण है कि ठंड के मौसम की शुरुआत होते ही इनके घरेलू कारखाने खुल जाते हैं और गजक बनना शुरू हो जाती है। दिसंबर के महीने से गजक बनने की शुरुआत हो जाती है। उसके बाद फरवरी महीने के अंत तक इसका यहां पर कारोबार जमकर होता है। ग्वालियर चंबल अंचल में लगभग 5000 से अधिक ऐसी दुकान है, जहां पर गजक बनाई और बेची जाती है। इसके साथ ही चंबल में गजक बनाने वाले कारीगर अलग-अलग राज्यों में जाकर गजब का निर्माण करते हैं, लेकिन कहा जाता है कि चंबल के मुरैना और ग्वालियर में बनने वाली गजक शाही होती है और यहां की गजक ही विश्व भर में प्रसिद्ध है। गजक देशभर के अलग-अलग राज्यों में सप्लाई की जाती है। चंबल में गजक बनाने का इतिहास लगभग 90 साल पुराना है यह सबसे ज्यादा प्रसिद्ध गजक है।
चंबल का पानी का है गजक के स्वाद का रिश्ता
माना जाता है कि चंबल के पानी में ऐसी तासीर है, जो गजक को शाही और स्वादिष्ट बनाता है। यहां बनने वाली गजक बेहद खस्ता और शरीर के लिए लाभकारी होती है। वैसे तो गजक ग्वालियर चंबल अंचल के हर जिलों में तैयार की जाती है, लेकिन असल में चंबल के मुरैना और ग्वालियर में बनने बाली गजक का जो स्वाद है कहीं दूसरी जगह की गजक में नहीं पाया जाता है। इसकी वजह यहां का पानी है। यही कारण है कि दूर-दूर बैठे लोग अपने रिश्तेदारों या परिचितों के माध्यम से शाही गजक मंगवाते हैं या फिर वह सीधे दुकानों पर ऑर्डर देकर पार्सल के जरिए गजब उपलब्ध करते हैं।
ऐसे बनाई जाती है गुड़- तिल की यह मिठाई
गजक बनाने के लिए देसी शुद्ध घी और साफ तेल चाहिए होता है। इसे बनाने के लिए सबसे पहले एक तरफ कढ़ाई में साफ और स्वच्छ तिल को धीमी आंच पर सेकते हैं। लेकिन यह ध्यान रखना आवश्यक है कि तिल सेंकने के दौरान जलना नहीं चाहिए। तिल सेंकने के दौरान उसे अलग रख देते हैं। उसके बाद पानी को गर्म कर उसमें साफ गुड़ मिलाया जाता है। इससे गुड़ की चाशनी तैयार की जाती है 20 मिनट बाद चासनी को बड़ी प्लेट में ठंडा किया जाता है। इसे ठंडा करने के बाद लेयर बनाई जाती है और उस लेयर को दीवाल पर टांग कर लकड़ी के सहारे खींचा जाता है। उसे तब तक खींचते हैं जब तक चासनी का रंग पूरी तरह सफेद ना हो जाए। ऐसा करने में गजक खस्ता होती है। यह विधि लगभग 20 से 25 मिनट तक चलती है उसके बाद चासनी को भुने हुए तिल में मिलाते हैं और उसके बाद उसकी जमकर पिटाई करते हैं। यह विधि लगभग 10 से 15 मिनट तक अच्छे से मिलाते है ताकि तिल पूरी तरह मिल जाए। अच्छी तरह मिलने के बाद उसे किसी बड़ी पत्थर के पाट पर रखा जाता है और इसके बाद फिर साइज के हिसाब से गजक को काटते हैं। गजक बनकर तैयार हो जाती है। शक्कर की गजक बनाने के लिए भी यही विधि अपनाई जाती है।