BHOPAL. चुनावी वैतरणी पार करने के लिए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान हर पैंतरा आजमा रहे हैं। सरकार मंदिर और मूर्तियों पर जमकर जनधन लुटा रही है। चुनावी बेड़ा पार लगाने के लिए शिवराज, भगवान और महापुरुषों को अपना खेवनहार बना रहे हैं। क्या इससे बीजेपी का चुनावी बेड़ा पार हो पाएगा, ये देखना बहुत दिलचस्प है। महाकाल लोक के बाद अब ओंकारेश्वर में शंकराचार्य की 108 फीट की मूर्ति लगेगी। अगले 2 सालों में प्रदेश के प्रमुख मंदिर मठों के विस्तार और स्मारकों की स्थापना पर सरकार 7 हजार करोड़ से ज्यादा का फंड खर्च कर रही है।
महापुरुषों की मूर्तियों पर सियासत
छिंदवाड़ा के सौंसर में शिवाजी की आदमकद प्रतिमा के अनावरण के समय मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ पर राजनीतिक हमले किए। इस घटना के बाद से एक बार फिर महापुरुषों की मूर्तियों की सियासत पर बहस शुरु हो गई। एक और घटनाक्रम सागर में हुआ। यहां पर सीएम ने रविदास महाकुंभ में संत रविदास के भव्य और बड़े मंदिर निर्माण का ऐलान किया। हाल ही में हुए इन 2 घटनाक्रमों ने एक बार फिर मंदिर और मूर्ति की सियासत को गरमा दिया है। चुनावी साल में सरकार मंदिर और मूर्तियों पर 7 हजार करोड़ से ज्यादा का खर्च कर रही है। यहां पर सवाल खड़ा होता है कि क्या इसका चुनावी फायदा बीजेपी को मिल पाएगा क्योंकि जाहिर तौर पर ये आस्था से जुड़ा विषय है और ये रास्ता मूर्ति और मंदिर के सहारे लोगों के दिलों तक जाता है जो चुनाव में बीजेपी का बेड़ा लगाने के लिए काम आ सकता है।
मठ-मंदिरों के विस्तार पर 3 हजार 475 करोड़ खर्च करने का प्लान
हाल ही में सीएम ने घोषणा की है कि सागर में 100 करोड़ की लागत से रविदास मंदिर का निर्माण किया जाएगा जो उनकी विचारधारा और दर्शन को लोगों तक पहुंचाएगा। सरकार ने अगले 2 साल में प्रदेश के प्रमुख मठ-मंदिरों के विस्तार पर 3 हजार 475 करोड़ खर्च करने का प्लान तैयार किया है। ओंकारेश्वर में 108 फीट की प्रतिमा की स्थापना प्रोजेक्ट पर 2161 करोड़ का खर्च है। मंत्रालय में 1 करोड़ की लागत से 13 पूर्व मुख्यमंत्रियों की प्रतिमा लगाई जाएगी। इसके अलावा पूर्व मुख्यमंत्री सुंदरलाल पटवा की भोपाल और कैलाश जोशी की प्रतिमा बागली में स्थापित की जा रही है। पूर्व प्रधानमंत्री भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी का स्मारक ग्वालियर में बनने जा रहा है। इस प्रोजेक्ट पर 4 हजार हेक्टेयर जमीन पर 300 करोड़ खर्च किए जाएंगे। सलकनपुर मंदिर के विस्तार पर 45 करोड़, मैहर में देवी मंदिर पर 30 करोड़, दतिया के बगलामुखी मंदिर पर 25 करोड़ और शनिचरा मंदिर मुरैना पर 850 करोड़ रुपए खर्च किए जा रहे हैं। राम वन पथ गमन पर 100 करोड़ और उज्जैन के महाकाल लोक के दूसरे चरण में विस्तार 850 करोड़ खर्च करने की योजना है। सौंसर में 32 लाख से शिवाजी की आदमकद मेटल की प्रतिमा का अनावरण किया गया है। वहीं हेमू कालानी की यादव में 218 करोड़ खर्च करने का ऐलान किया गया है। भोपाल में साल 1018 के चुनाव के पहले 50 करोड़ का शौर्य स्मारक बनाया जा चुका है। अब भिंड में 50 लाख की लागत से शौर्य स्मारक का निर्माण किया जाएगा।
कांग्रेस क्या कहती है?
कांग्रेस कहती है कि प्रदेश की जनता शिवराज सरकार के इस तरह के पॉलिटिकल स्टंट को समझ चुकी है। चुनावी फायदा उठाने के लिए घोषणावीर मुख्यमंत्री घोषणा पर घोषणा किए जा रहे हैं। धर्म पर अकेले बीजेपी का कॉपीराइट नहीं है, लेकिन बीजेपी धर्म का राजनीतिक इस्तेमाल करती है लेकिन उसका असर जनता पर नहीं होने वाला है।
ये कितना उचित है सीएम शिवराज
ये सवाल हमारा नहीं उस आम आदमी का है जो ईमानदारी से टैक्स भरता है। आपने देखा कि किस तरह मठ-मंदिरों और मूर्तियों पर 7 हजार करोड़ से ज्यादा खर्च हो रहा है, लेकिन क्या इतनी बड़ी रकम उन जरूरतों पर खर्च नहीं जा सकती जिनको बुनियादी कहा जाता है। सरकार पर बजट से ज्यादा कर्ज है, बेरोजगार युवा काम मांग रहा है, स्कूलों में शिक्षकों की और अस्पतालों में डॉक्टरों की कमी है। इस रकम से प्रदेश की जरूरत के एक हिस्से की पूर्ति नहीं हो सकती। विचार कीजिए हुजूर इस तरह से हम प्रदेश को कहां ले जा रहे हैं। आस्था का सम्मान होना चाहिए, लेकिन क्या इसके लिए सोच विचार, आवश्यकता, उपयोगिता और अनिवार्यता के पैमाने नहीं देखे जाने चाहिए।
मध्यप्रदेश के खजाने की हालत खस्ता
मध्यप्रदेश सरकार के खजाने की हालत खस्ता है। लगातार कर्ज का बोझ बढ़ता जा रहा है। ऐसे में चुनावी साल में एक बड़ी रकम का बेतरतीब खर्च होना सवाल खड़े करता है। चुनाव कोई जीते-हारे, लेकिन इसका असर तो प्रदेश की जनता पर पड़ेगा। सरकार का इस साल 3 लाख करोड़ रुपए का बजट आने वाला है, लेकिन इस बजट से ज्यादा यानी 3 लाख करोड़ का सरकार पर कर्ज है। प्रदेश में 1 करोड़ से ज्यादा युवा बेरोजगार घूम रहे हैं। कारण है कि प्रदेश के पास उनको देने के लिए फंड नहीं है। 1 लाख 14 हजार सरकारी पद खाली हैं। यदि ये पैसा रोजगार पर खर्च होता तो बेरोजगारों को रोजगार मिल पाता। इस फंड को स्कूल शिक्षा पर खर्च किया जाता तो शिक्षकों की नियुक्ति हो पाती। स्कूलों में 50 हजार शिक्षकों की कमी है, लेकिन फंड नहीं होने से शिक्षकों की नियुक्ति नहीं हो पा रही। यही हाल स्वास्थ्य सेवाओं का है। अस्पतालों में डॉक्टर नहीं हैं। ग्रामीण स्वास्थ्य सेवाएं खुद बीमार हैं। मेडिकल में 95 फीसदी पद खाली हैं। यदि ये पैसा यहां लगाया जाता तो लोगों को बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं मिल पातीं।
सरकार पर 3 लाख करोड़ से ज्यादा का कर्ज
- रूरल हेल्थ स्टैटिक्स की 2021-22 की रिपोर्ट में इसका खुलासा हुआ है। ग्रामीण स्वास्थ्य सेवाओं के मामले में मध्यप्रदेश देश में सबसे खराब स्थान पर है। यहां स्पेशलिस्ट डॉक्टरों के 95 फीसदी पद खाली हैं। 3 हजार से ज्यादा डॉक्टरों के पद खाली हैं।