देव श्रीमाली, GWALIOR. मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनावों में महज एक साल बचा है। अगले साल नवंबर-दिसंबर में यहां चुनाव होना है। लिहाजा राजनीतिक दल अपनी-अपनी चुनावी बिसात बिछाने में जुट गए हैं। 2018 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को सत्ता से दूर कर इसकी चाबी कांग्रेस के कमलनाथ को सौंपने का काम ग्वालियर-चंबल संभाग से ही हुआ था। हालांकि, इसके बाद चौथी बार बीजेपी के शिवराज सिंह चौहान की सत्ता में वापसी भी इसी अंचल के विधायकों ने दल बदलकर कराई। बीजेपी को पता है कि अभी भी इस अंचल का जातीय गणित और मूड बीजेपी के पक्ष में नहीं हैं । खासकर दलित और पिछड़े उससे छिटके हुए है, इसलिए अब बीजेपी सम्मेलनों के जरिए जातियों को साधने में लगी है।
इमरती का अंबेडकर मूर्ति एपिसोड
ग्वालियर जिले की दलित आरक्षित सीट डबरा में उपचुनाव में बीजेपी को करारी हार मिली। इमरती देवी यहां से कांग्रेस की अपराजेय विधायक थीं। वे तीन बार से तीस से पचास हजार वोटों के भारी अंतर से जीतती आ रही थीं और कमलनाथ सरकार में महिला एवं बाल विकास मंत्री भी थीं, लेकिन ज्योतिरादित्य सिंधिया के समर्थन में उन्होंने कांग्रेस छोड़ी और विधायक पद से इस्तीफा दिया। उपचुनाव में बीजेपी ने उन्हें प्रत्याशी बनाया, लेकिन उन्हें हार मिली। अब वे दलितों में फिर से अपनी जमीन बनाने के लिए खूब जोड़-तोड़ कर रहीं है, लेकिन हर जगह दलितों से ही उनका विवाद हो रहा है। अंबेडकर की मूर्तियों को लेकर उनके विवाद से साफ जाहिर है कि वे बौखलाहट में है। उनके एक वायरल वीडियो में वे सरकारी जमीन पर अंबेडकर की मूर्ति लगाने के लिए लोगो को भड़का रहीं है। वहीं, बिलौआ में उनकी मर्जी के बिना लगाई गई बाबा साहब की मूर्ति को उन्होंने प्रशासन से उखड़वा दिया।
बीजेपी ने बुलाई दलितों की बैठक
अंचल में दलितों की नाराजी को दूर करने के लिए बीजेपी लगातार प्रयास कर रही है। उसने अंचल के दलित नेता पूर्व मंत्री लाल सिंह आर्य को बीजेपी अनुसूचित जाति मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया। इसके अलावा संभागभर के अपने बड़े दलित नेताओ और कार्यकर्ताओं की एक बैठक ग्वालियर में बुलाई।
बीजेपी की रणनीति, बस्ती-बस्ती अभियान चलाएगी
बैठक में अनुसूचित जाति के राष्ट्रीय महामंत्री और बुलंदशहर के बीजेपी सांसद भोला सिंह मौजूद रहे। साथ ही ग्वालियर-चंबल अंचल की सभी अनुसूचित जाति के बड़े नेता भी शामिल रहे। इस सभा की बैठक के जरिए यह रणनीति तैयार हुई है कि बीजेपी अब आगामी विधानसभा चुनाव तक बस्ती-बस्ती अभियान चलाएगी। इस अभियान के जरिए केंद्र और प्रदेश सरकार की महत्वाकांक्षी योजनाओं की जानकारी अनुसूचित जाति वर्ग तक पहुंचाई जाएगी। इसकी जिम्मेदारी संभागीय बैठक में सभी मंडल अध्यक्ष और बूथ स्तर के पदाधिकारियों को दी गई है।
दलित वोट निर्णायक
अनुसूचित जाति वर्ग का वोट बीएसपी और कांग्रेस का माना जाता है, लेकिन अबकी बार वोट बैंक में सेंध लगाने के लिए बीजेपी पूरी ताकत लगा रही है। यही कारण है कि लगातार अनुसूचित जाति वर्ग की बैठक आयोजित की जा रही है। इसका सबसे बड़ा कारण यह भी है कि ग्वालियर-चंबल अंचल में अनुसूचित जाति का वोट बैंक निर्णायक भूमिका में रहता है। इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि 2018 के चुनाव के दौरान हुए दलित आंदोलन में सबसे ज्यादा नुकसान बीजेपी को उठाना पड़ा था। यही कारण रहा कि 2018 के चुनाव में शिवराज को अपनी कुर्सी गंवानी पड़ी थी। इस कारण आगामी विधानसभा चुनाव के लिए बीजेपी ने अभी से अनुसूचित जाति वर्ग के वोट बैंक में सेंध लगाना शुरू कर दिया है और लगातार हर जिले में बैठक आयोजित कर रही है।