ग्वालियर में विकास के नाम पर 4 हजार से ज्यादा पेड़ काटे जा रहे, बचाने के लिए सड़क से लेकर अदालत तक लड़ाई लड़ रहे हैं बुजुर्ग

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Atul Tiwari
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ग्वालियर में विकास के नाम पर 4 हजार से ज्यादा पेड़ काटे जा रहे, बचाने के लिए सड़क से लेकर अदालत तक लड़ाई लड़ रहे हैं बुजुर्ग

देव श्रीमाली, GWALIOR. एक तरफ प्रदेश के मुखिया शिवराज सिंह चौहान रोज एक पेड़ लगाकर लोगों को वृक्षारोपण के लिए प्रेरित कर रहे है और वहीं उनके अधिकारी विकास के नाम पर 4 हजार से ज्यादा पुराने पेड़ों को काटने की जुगत में लगे हैं। इन बुजुर्ग पेड़ों की जान बचाने की लड़ाई कई महीनों से बुजर्ग ही सड़क से अदालत तक लड़ रहे है। उनकी पीड़ा है कि प्रशासन, कोर्ट के सामने भी झूठ बोल देता है और उसकी बात नहीं मानता। उनका कहना है कि यह लड़ाई सांसों को बचाने की लड़ाई है और इससे ग्वालियर की अनेक भावी पीढ़ियों की सांस खतरे में पड़ जाएगी।



लोगों का प्रदर्शन, पेड़ों से चिपककर कर रहे ना काटे जाने की गुहार



ग्वालियर के सबसे पॉश इलाके थाटीपुर में लोगों ने मानव शृंखला बनाकर प्रदर्शन किया था। ये लोग ना तो नेता है और ना ही किसी दल या संगठन के लोग। लोगों ने बुजुर्गों के आह्वान पर मानव शृंखला बनाई, इस क्षेत्र में पुनर्घनत्वीकरण (री-डेंसीफिकेशन) योजना के नाम पर बलि चढ़ाए जा रहे हजारों पेड़ो को बचाया जा सके। इन पेड़ों को बचाने की लड़ाई शहर के कुछ बुजुर्ग लड़ रहे है। इन पर्यावरण प्रेमियों ने 10 जनवरी को मानव शृंखला बनाई और फिर पेड़ों से चिपककर इनसे अपना जुड़ाव प्रकट कर इन्हें बचाने के संघर्ष में अपना संकल्प दिखाया। लोगों आरोप है कि सरकार विकास के नाम पर हजारों पेड़ों को काटने पर तुली है, जिससे यहां का पर्यावरण और भी खराब हो जाएगा। ग्वालियर देश और प्रदेश के सबसे खराब पर्यावरण वाले शहरों में शुमार किया जाता है।



क्या है थाटीपुर पुनर्घनत्वीकरण योजना? 



दरअसल थाटीपुर ग्वालियर का सबसे पॉश इलाका है। यहां सिंधिया स्टेट के समय उनकी सेना का डेरा रहता था। उनके किए क्वाटर की लेन भी बनी हुई थी। लेकिन 1972 से 75 के बीच जब राजेन्द्र सिंह, श्यामाचरण शुक्ल मंत्रिमंडल में लोक निर्माण मंत्री बने तो इस इलाके में शासकीय कमर्मचारियो और अधिकारियों के लिए सैकड़ों क्वाटर और बंगले बनाने का निर्णय लिया गया। तय हुआ कि इसमें एक भी पेड़ नहीं काटा जाएगा, उल्टे इनमें हजारों की संख्या में पेड़ लगाए गए। इसका नतीजा ये रहा कि हर क्वाटर और बंगले में आम, जामुन, नींबू,संतरा, सहजन,अमरूद जैसे फलदार पेड़ लगे थे। साथ ही सड़कों के दोनों तरफ नीम, पीपल, बरगद आदि के हजारों पेड़ लगे थे। इसमें खेलने और आयोजनों के लिए बड़े बड़े मैदान भी हैं। सरकार की निगाह इस बेशकीमती जमीन पर गई और उसने तय किया कि यहां के सभी पुराने आवास तोड़कर इस पर पुनर्घनत्वीकरण योजना के तहत काम किया जाए। यानी कुछ जगह पर शासकीय आवासों के ब्लॉक बनाए जाएं और कुछ जगह व्यावसायिक और आवासीय तैयार करके खुले बाजार में बेचकर पैसा जुटाया जाए। 



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ऐसे शुरू हुआ विवाद 



सरकार ने अपने मकानों को कंडम घोषित कर इन्हें गिराने का काम शुरू किया और यहां लगे पुराने पेड़ो की कटाई शुरू हुई तो राज चड्ढा सहित कुछ बुजुर्ग वहां पहुंचे और इस पर आपत्ति दर्ज कराई। यहां धरना भी दिया। ये लोग कलेक्टर से लेकर बाकी अफसरों से भी मिले और इन पेड़ों की बलि रोकने की अपील की, लेकिन प्रशासन अपना काम करता रहा। इस अभियान से जुड़े वरिष्ठ बीजेपी नेता, पर्यावरणप्रेमी और ग्वालियर व्यापार मेला प्राधिकरण के अध्यक्ष रह चुके राज चड्ढा कहते है कि गजब की बात ये है कि सारी दुनिया में प्रति व्यक्ति वृक्षों का औसत 600 है और भारत में यह चालीस से भी कम है। यानी हमें वृक्ष लगाना है और जो लगे हैं उन्हें बचाना है। फिर भी हम काटने में लगे है। फर्जी पौधरोपण हो रहा है। और यहां तो सैकड़ों साल पुराने पेड़ काटे जा रहे हैं। हमने अपनी पीढ़ियों की सांसों को बचाने हर अफसर का दरवाजा खटखटाया। हर तरफ निर्ममता मिली तो हम लोग हाईकोर्ट गए। हाईकोर्ट की ग्वालियर बेंच की डबल बेंच ने मध्यप्रदेश सरकार के विभिन्न विभागों को स्पष्ट निर्देश दिए है कि यहां पर्यावरण की पूरी रक्षा होनी चाहिए। इसमें जिला प्रशासन,वन विभाग,नगर निगम,हाउसिंग बोर्ड और टाउन एंड कंट्री प्लानिंग को इसके लिए साफ कहा है।



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पेड़ काटने को लेकर क्या है अदालत का आदेश



राज चड्ढा कहते हैं कि उच्च न्यायालय की ग्वालियर खंडपीठ की डीबी ने साफ आदेश दिया था कि आपको सिर्फ 79 पेड़ काटने का अधिकार है और उसके बदले में पहले इसी क्षेत्र में 790 पेड़ लगाना होंगे। लेकिन इन्होंने अंधाधुंध पेड़ काटे और एक भी पेड़ कहीं नहीं लगाया। न ही इस क्षेत्र में कहीं किसी पेड़ का रीप्लांटेशन किया गया।



पेड़ों की संख्या को लेकर भी विवाद



इस मामले में कानूनी लड़ाई लड़ रहे एक अन्य सीनियर सिटीजन मनीष काले का कहना है कि हमने पहले पेड़ों को कत्लेआम से बचाने के लिए अफसरों से गुहार लगाई जब वे सुनने को तैयार नहीं हुए तो हम लोगों ने हाईकोर्ट की ग्वालियर खण्डपीठ में याचिका लगाई कि विकास और रीडेंसिफिकेशन के नाम पर 30 हेक्टेयर में साढ़े हजार पेड़ है जिन्हें काटा जा रहा है। इससे इस क्षेत्र में ऑक्सीजन की गम्भीर समस्या पैदा हो जाएगी लेकिन अफसर कहते रहे कि 1 हजार से 1400 ही पेड़ हैं लेकिन हमारे आग्रह पर कोर्ट ने कंजरवेटर फॉरेस्ट को ऑर्डर हुआ कि तब पेड़ों की फिजिकली गिनती की गई जिसमें लगभग साढ़े 4 हजार पेड़ निकले। इसके बाद फॉरेस्ट वाले जिन्हें छोड़ गए थे हमने वह भी पर्सनली काउंट किए। सब पर नम्बरिंग कर वीडियोग्राफी की। कोर्ट ने हमारी जानकारी भी शामिल कीं।



हाईकोर्ट ने ये दिया था आदेश



हाईकोर्ट की डीबी ने आदेश दिया कि आप अपने डिक्लेरेशन के अनुसार 13 हेक्टेयर में डेवलपमेंट करोगे। इसमें 1400 पेड़ आएंगे तो इनमें से 79 को काटने की अनुमति देते हैं लेकिन इसके बदले इसी क्षेत्र में 79 पेड़ लगाओगे और 329 ट्रांसप्लांट करोगे तो उनकी जगह 3290 पेड़ लगाओगे और 500 नए लगाओगे लेकिन ऐसा हुआ नहीं। उनका आरोप है कि रात को चुपचाप पेड़ काटकर ले जाते हैं और कहीं एक पेड़ भी नहीं लग रहा। ट्रांसप्लांट की बात कर रहे हैं लेकिन इसके लिए न तो कोई टेंडर कॉल हुए हैं, न कोई इंफ्रास्ट्रक्चर है और न कोई कम्पनी है। ट्रांसप्लांट सफल होता ही नहीं है लेकिन ये अदालत के सामने सारी बातें झूठी रखते हैं और गुमराह करते हैं। ट्रांसप्लांटेशन के नाम पर पेड़ों को घसीटा जा रहा है ताकि पेड़ मर जाएं।



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अफसरों का क्या कहना है ?



इस मामले में ग्वालियर के डीएफओ बृजेंद्र श्रीवास्तव का कहना है कि ट्रांसप्लांटेशन की एक प्रक्रिया है तभी पेड़ सर्वाइव करता है अगर इसे घसीटकर लाने की कोई शिकायत है तो हम इसे दिखवाएंगे जबकि हाउसिंग बोर्ड की कार्यपालन यंत्री का कहना है, अभी तो हमने पेड़ काटे ही नहीं है सिर्फ पांच पेड़ रीप्लान्ट किए हैं जो हमारे ब्लॉक में आ रहे थे जिन्हें हमने एक विशेषज्ञ एजेंसी से ये काम कराया जो दिल्ली और उत्तराखंड में काम कर चुकी है। इसके एवज में हमें जो 4 हजार पेड़ लगाना थे वे वन विभाग के माध्यम से हम लगा चुके हैं। वे कहती हैं कि इसमें 400 पेड़ आ रहे है और इनके बदले हमने पेड़ यहीं लगाए हैं ताकि इनकी देखरेख अच्छे से हो जाएगी। इनके अलावा वन विभाग की मदद से उपयुक्त जगह लगाए जाएंगे।


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