अजब-गजब ग्वालियर, घर-घर पीने पानी पहुंचाने के नाम खर्च कर दिए 430 करोड़, अब पौने दो करोड़ रूपए में टैंकर से पानी की करेंगे सप्लाई

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Neha Thakur
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अजब-गजब ग्वालियर, घर-घर पीने पानी पहुंचाने के नाम खर्च कर दिए 430 करोड़, अब पौने दो करोड़ रूपए में टैंकर से पानी की करेंगे सप्लाई

देव श्रीमाली, GWALIOR.  ग्वालियर मध्य प्रदेश का वह शहर है जहां घर-घर तिघरा का पानी पहुंचने के लिए अमृत योजना लागू की गई। दावा किया गया था कि यह योजना पूरी होते ही हर घर में नल का पानी पहुंचेगा और प्रेशर इतना तेज होगा कि बगैर मोटर के तीसरी मंजिल पर रखी टंकी भर जाएगी। योजना पूरी होकर हेंडओवर भी हो गई। लेकिन, शहर की पेयजल की समस्या जस की तस बनी रही। यह सिर्फ हम नहीं कह रहे नगर निगम की कार्रवाई बता रही है। नगर निगम को अमृत योजना लागू होने के पहले भी गर्मी के चार महीनों में टैंकर से पानी पहुंचाना पड़ता था और इस साल भी पौने 2 करोड़ रु. खर्च करके टैंकर से पानी पहुंचाने की तैयारी है। सबसे मजेदार तथ्य तो ये है कि नगर निगम बीते एक दशक से सुचारू पेयजल व्यवस्था के नाम पर थोड़े बहुत नहीं 430 करोड़ रुपए खर्च कर चुकी है, लेकिन हर साल टैंकर पर होने वाला खर्च बढ़ता ही जा रहा है।





एक नजर पेयजल इंफ्रास्ट्रक्चर पर 





नगर निगम में बीते एक दशक से पीने की पानी की समस्या के निराकरण के लिए जोर शोर से काम हुए है। इसके तहत एडीबी योजना पर पैसे खर्च हुए और फिर अमृत योजना पर। कुल मिलकर 430 करोड़ रूपए खर्च हो चुके हैं। इन दोनों योजनाओं से तैयार हुए इंफ्रास्ट्रक्चर के आंकड़े इस तरह हैं।





ग्वालियर शहर में 





-एडीबी योजना में  27  टंकी बनीं 





- अमृत योजना में 42  टंकियां बनीं 





- शहर में 2389 बोरवेल हैं 





- 1713  हेण्डपम्प हैं 





- लगभग एक हजार किलोमीटर लंबी पानी की लाइनें डाली गयीं हैं।





बावजूद इसके हर जगह पानी की किल्लत





इसके बावजूद भी शहर में एक भी ऐसा कोई कोना नहीं है जहां पानी की किल्लत नहीं है। अभी भी दीन दयाल नगर के सामने का इलाका, आदित्यपुर से लेकर जडेरुआ और मुरार इलाके की अनेक कालोनियों और गुढ़ा के आसपास की बस्तियों में पीने के पानी की कोई माकूल व्यवस्था नहीं है। सबसे बड़ी बिडंबना ये है कि इनमें से अनेक इलाकों में अमृत योजना में पानी की लाइने भी डल चुकीं है, लेकिन खिन टंकी अपूर्ण है तो कहीं इनका मिलान ही नहीं हुआ है। अनेक इलाकों में टेस्टिंग में ही पाइप लाइन फट चुकी है। इन इलाकों में लोगों का कहना है कि उन्हें तो अपने पैसे से ही टैंकर मंगवा कर काम चलाना पड़ रहा है।





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हर गर्मी में पानी के नाम पर बड़ा खेल





दरअसल ग्वालियर नगर निगम में गर्मी का सीजन पानी विभाग से जुड़े अधिकारियों के लिए कमाने का अवसर लेकर आता है और इसमें सबसे बड़ी और आसान मद है टैंकर से पानी की सप्लाई करना। सबसे विडंबना भरी किन्तु मजेदार बात ये है कि पानी की समस्या के निराकरण जैसे-जैसे करोड़ों रूपए हर साल खर्च हो रहे हैं वैसे-वैसे टैंकरों से सप्लाई का खर्च भी बढ़ता जा रहा है। अगर हम तीन सालों के आंकड़े ही देखें तो इसका चौंकाने वाला आंकड़ा सामने आता है। आंकड़े बताते हैं कि 2020 में नगर निगम ने 103 टैंकर किराए पर लिए थे और इस पर 90 लाख रूपए खर्च किया था। अगले साल यानी 2022 में एडीबी का भी इंफ्रा जुड़ गया, लेकिन टैंकर से सप्लाई कम नहीं हुई। अधिकारियों साल 115 टैंकर लेकर 96 लाख रूपए खर्च कर दिए। अब इस वर्ष जबकि 430 करोड़ की महत्वाकांक्षी अमृत योजना पूरी हो चुकी है, लेकिन अफसरों को लगता है इस वर्ष और भी ज्यादा टैंकर लगाकर लोगों को पानी की सप्लाई करनी पड़ेगी। वर्ष 2023 के लिए अधिकारियों ने माना कि उन्हें 135  टैंकरों पर पिछले साल से दुगने यानी 1 करोड़  71 लाख रूपए से ज्यादा रूपए  खर्च करना पडे़गा। यानी हर टैंकर पर हर महीने 31,158 रूपए का खर्चा आएगा और प्लान ये है कि वार्ड 1 से 60 तक दो-दो टैंकर पानी रोज लोगों के घरो तक पहुंचाया जाएगा, जबकि वार्ड 61 से 66 तक ग्रामीण वार्डों में 3-3 टैंकर पानी पहुंचाया जाएगा। खास बात ये भी है कि नगर निगम के पास अपने भी 34 टैंकर हैं। बावजूद लोग परेशान है।





एडीबी में ठीक से काम नहीं हुआ-मेयर डॉ. सिकरवार





सवाल यही है कि जब इतनी बड़ी धनराशि प्रोजेक्ट्स पर खर्च हो चुकी है फिर भी टैंकर से पानी देने पर करोड़ों खर्च क्यों करना पड़ रहा है। दरअसल यह हर वर्ष ठेकेदार और निगम के अधिकारियों और कमाने-खाने की आसान योजना है, क्योंकि इसका सत्यापन करना संभव नहीं होता है। इस मामले को लेकर निगम में जान प्रतिनिधि और अफसर अपनी ढफली अपना राग अलापते हैं। मेयर डॉ. शोभा सिकरवार इसका ठीकरा अमृत योजना के खराब और अपूर्ण काम के सर पर फोड़ती हैं। मेयर कहती हैं पहले एडीबी में ठीक से काम नहीं हुआ और फिर अमृत योजना में भी लोगों की जरूरतों को ध्यान में रखकर काम नहीं किया गया। जहां उनका मन आया वहां लाइन बिछाई। कई जगह तो ऐसा हुआ है कि आधी जगह लाइन डाली और आधी जगह छोड़ दी। इससे लोगों को भी परेशानी हो रही है और हमें भी भुगतना पड़ रहा है। मेयर स्वीकार करती है कि अभी भी हमें ज्यादातर जगह पानी टैंकरों से भेजना पड़ता है। हम कोशिश में हैं की जल्द से जल्द इस समस्या का निराकरण करें।





अभी सिर्फ टेंडर किया, जहां जरूरत पड़ेगी वहां टैंकर सप्लाई करेंगे





नगर निगम में एमआईसी के सदस्य अवधेश कौरव भी इतनी धनराशि खर्च करने के बावजूद पानी के लिए टैंकर लगाने का ठीकरा योजनाओं के ठीक से क्रियान्वयन न पाने पर फोड़ते हैं। वहीं नगर निगम के आयुक्त हर्ष सिंह का दावा है कि हमने अभी सिर्फ टेंडर किया है कि जहां जरूरत पड़ेगी वहां टैंकर मंगवाकर सप्लाई करेंगे। हमने टैंकर खरीदे नहीं है, बल्कि सिर्फ टेंडर किए हैं। ताकि दरें तय हो जाए। आयुक्त इस मामले में भ्रष्टाचार की बात को भी नकारते हैं। उनका कहना है कि हम लोग इसकी लॉग बुक भी मेंटेन करवाते हैं। उनकी संख्या और जरूरत के सत्यापन की भी आंतरिक व्यवस्था रखते हैं। सूत्रों की मानें तो अधिकारी, इंजीनियर और ठेकेदार मिलकर हर साल टैंकर से पानी सप्लाई के नाम पर स्वीकृत धनराशि में से आधी तो सीधे ही डकार जाते हैं और यही रैकेट टैंकर की जरूरत को खत्म नहीं होने दे रहा हैं।



 



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