ग्वालियर हाईकोर्ट बेंच का हिरासत में मौत पर बड़ा फैसला, जांच CBI को सौंपी और पुलिसवालों से 20 लाख वसूलकर पीड़ित को देने का आदेश

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Shivasheesh Tiwari
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ग्वालियर हाईकोर्ट बेंच का हिरासत में मौत पर बड़ा फैसला, जांच CBI को सौंपी और पुलिसवालों से 20 लाख वसूलकर पीड़ित को देने का आदेश

देव श्रीमाली, GWALIOR. मध्यप्रदेश हाईकोर्ट की ग्वालियर बेंच ने पुलिस कस्टडी में हुई मौत के मामले में दायर एक याचिका पर बड़ा फैसला सुनाया है। हाईकोर्ट ने आदेश देते हुए कहा कि इस केस की जांच अब सीबीआई करेगी। मामले में पुलिसकर्मियों और होमगार्ड पर 20 लाख रुपए का जुर्माना लगाया है। 2019 में ग्वालियर जिले के बेलगढ़ा थाने में पुलिस अभिरक्षा में एक किसान सुरेश रावत की मौत हो गई थी।



आपसी झगड़े में गिरफ्तार हुआ था मृतक



इस मामले में दायर याचिका में याची के वकील निर्मल शर्मा ने बताया कि 10 अगस्त 2019 को याचिकाकर्ता अशोक के पिता सुरेश का अपने पड़ोसी खेमू शाक्य से झगड़ा हो गया था। खेमू की शिकायत पर ग्वालियर के बेलगढ़ा थाना पुलिस ने सुरेश के खिलाफ केस दर्ज कर उसे हिरासत में ले लिया। इस दौरान सुरेश ने पुलिस से खेमू के खिलाफ भी क्रॉस केस दर्ज करने का आग्रह किया तो उल्टे पुलिस ने ही जमकर उसे पीटा। मृतक के बेटे का आरोप है कि पुलिस ने निर्ममतापूर्वक पिटाई की जिससे उसके पिता की मौत हो गई और पुलिस ने उसे खुदकुशी साबित करने की कहानी गढ़ ली।



पुलिस ने कहा - फांसी लगा ली



इस मामले में बेलगड़ा थाने की पुलिस का दावा था कि आरोपी ने लॉकअप में फांसी लगाकर जान दे दी। उसका यह भी कहना था कि आरोपी ने दो बार खुदकुशी का प्रयास किया। पहली बार तो अचानक आरक्षक विजय की निगाह पड़ गई तो वह दौड़कर पहुंचा और उसे तौलिए के फंदे से उतारकर बचा लिया गया। लेकिन शाम को उसने फिर फंदा लगाकर जान दे दी । 



सीसीटीवी कैमरा दस मिनट बंद रहा



पुलिस के अनुसार दूसरी बार फांसी लगाने पर भी आरक्षक विजय ने वहां पहुंचकर सुरेश को खोलने का प्रयास किया लेकिन आरोप है कि दस मिनट तक इसी दौरान थाने की बिजली गुल रही जो साजिशन था।



पुलिस ने गजेटेड ऑफिसर से जांच कराई



याचिका की सुनवाई के दौरान पुलिस ने अपना पक्ष रखते हुए हाईकोर्ट को बताया कि उसने मामले की निष्पक्ष जांच कराने के लिए इसकी जांच दूसरे यानी शिवपुरी जिले में करेरा के एसडीओपी को सौंपी। साथ ही मामले की मजिस्ट्रियल जांच भी शुरू हुई। पुलिस जांच में सीसीटीवी जांच से भी साबित हुआ कि सुरेश ने लॉक अप में फांसी लगाकर आत्महत्या ही की है।



मृतक के बेटे ने हाईकोर्ट में दायर की थी याचिका



मृतक सुरेश रावत का बेटा अशोक पुलिस और मजिस्ट्रियल जांच से सहमत नहीं था इसलिए उसने अपने पिता की हुई कस्टोडियल डेथ की जांच सीबीआई से कराने की मांग को लेकर हाईकोर्ट की ग्वालियर खंडपीठ में याचिका दायर की और कहा कि इस मामले में स्टेट पुलिस से निष्पक्ष जांच की उम्मीद नहीं है।



कोर्ट ने मामला सीबीआई को सौंपते हुए ये कहा



हाईकोर्ट की ग्वालियर खंडपीठ की सिंगल बेंच ने कहा कि ग्वालियर पुलिस घटना के बाद से ही इसकी जांच को प्रभावित करने में सक्रिय रही है। इसलिए इसकी जांच सीबीआई को सौंपी जाती है। साथ ही मामले से जुड़े सभी पांचों पुलिस कर्मियों की पद स्थापना ग्वालियर से 700 किलोमीटर दूर की जाए और जब तक मामले का ट्रायल पूरा नहीं हो जाता इनको निलंबित भी रखा जाए।



विवेचकों की भूमिका को भी माना संदेहास्पद



हाईकोर्ट ने इस मामले से जुड़े तीन विवेचना अधिकारी आत्माराम शर्मा, जीडी शर्मा और एस चतुर्वेदी की भूमिका को भी संदेहास्पद मानते हुए सवाल उठाए। कोर्ट ने एमपी के डीजीपी को निर्देश दिए कि वे बताएं कि तीनों पुलिस अधिकारियों का कृत्य किस श्रेणी में आता है? अगर वे चाहें तो तीनों अधिकारियों को मामले में आरोपी बनाने का आग्रह भी कर सकते हैं। कोर्ट ने विवेचना अधिकारी पर 50 हजार रुपए का जुर्माना लगाने और एसपी की भूमिका की जांच करने का भी आदेश दिया।



20 लाख क्षतिपूर्ति देने के आदेश 



कोर्ट ने मृतक के परिजनों को बीस लाख रुपए बतौर क्षतिपूर्ति देने के आदेश दिए और यह भी कहा कि यह क्षतिपूर्ति एक माह के भीतर हो जानी चाहिए। यह रकम मामले से जुड़े पुलिस अधिकारी और कर्मचारियों से बसूली जानी चाहिए। कोर्ट ने तत्कालीन थाना प्रभारी एएसआई विजय सिंह राजपूत से 10 लाख, प्रधान आरक्षक अरुण मिश्रा से 5 लाख, आरक्षक नीरज प्रजापति और विजय कुशवाह से एक -एक लाख रुपए और होमगार्ड सैनिक एहसान खान से एक लाख रुपए बसूलकर पीड़ित पक्ष को देने को कहा।


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