संजय गुप्ता, INDORE. इंदौर हाईकोर्ट बेंच ने भूमाफियाओं से 255 पीड़ितों को न्याय दिलाने के लिए हाईकोर्ट के रिटायर जज ईश्वर सिंह श्रीवास्तव की अध्यक्षता में कमेटी गठित कर दी है। इस कमेटी को कालिंदी गोल्ड, सेटेलाइट और फीनिक्स तीनों ही कॉलोनियों के पीड़ितों को सुनकर उनके लिए उचित निराकरण की जिम्मेदारी मिली है। भूमाफिया चंपू, हैप्पी, नीलेश, चिराग सहित अन्य से करीब 90 करोड़ का हिसाब करना है (255 पीड़ितो के प्लाट का मामला है, प्लाट की साइज एक हजार से 1500 रुपए प्रति वर्गफीट है और दाम औसतन 35 लाख रुपए प्रति प्लाट है। इस हिसाब से करीब 90 करोड़ का मामला बनता है)। इसमें सबसे ज्यादा उलझन सेटेलाइट और फिनिक्स को लेकर है और दोनों ही कॉलोनियों में किंगपिन चंपू अजमेरा है, जिसने दोनों जगह मामला कानूनी तौर पर उलझा रखा है। इनके रास्ते भी कमेटी को तलाशना है। कमेटी 9 मई को दोपहर 12 बजे हाईकोर्ट के कांफ्रेंस हॉल में पहली सुनवाई करेगी। हाईकोर्ट में इस केस की अब सुनवाई 21 जून लगी है। माना जा रहा है कि तब तक कमेटी अपनी रिपोर्ट पुटअप कर देगी।
इस तरह है तीनों कॉलोनियों के मामले
- कालिंदी में कुल 96 शिकायतें हैं, जिसमें से 34 रिजिस्ट्री वाले और 62 रसीद वाले हैं, जिसमें से रजिस्ट्री में 19 केस और रसीद में 8 केस निपटे हैं, कुल 27 केस निपटे हैं।
इस तरह कुल 255 शिकायतें हैं, जिसमें से 139 रजिस्ट्री वाले और 116 रसीद वाले हैं, इसमें से 72 रजिस्ट्री वाले और 28 रसीद वाले निपटे हैं। यानि सौ केस निपटे हैं और 155 केस बचे हुए हैं।
कमेटी के सामने इन कानूनी समस्याओं की भी चुनौती
कालिंदी गोल्ड- कालिंदी गोल्ड में बहुत तकनीकी समस्याएं नहीं है। अगर भूमाफियाओं द्वारा हाईकोर्ट में पेश किए गए शपथपत्र सही है तो फिर 72 केस निराकृत हो चुके हैं और ज्यादा केस नहीं बचे हैं। लेकिन इसमें पर्दे के पीछे लेन-देन करने वाला चंपू खुद को अलग कर निराकरण करने से मना कर रहा है, जबकि चार करोड़ का लेन-देन किया है। ऐसे में सभी भूमाफिया अपने केस एक-दूसरे पर ढोल रहे हैं। हैप्पी ने यहां जमकर डायरियों पर प्लाट बेचे हैं। वहीं चिराग ने भी कई प्लाट बेचे हैं, जिसे लेकर शपथपत्र पेश किए गए हैं कि अधिकांश केस निराकृत कर दिए हैं। कमेटी इसमें थोड़ी भी सख्ती करेगी तो यह कॉलोनी के पीड़ित निपट सकते हैं।
सेटेलाइट- इस कॉलोनी में तकनीकी तौर पर कई पेंच है। यह जमीन कई बार बिकी और दूसरों के पास गई। इसमें कैलाश गर्ग और चंपू के बीच विवाद चल रहा है, गर्ग ने यहां की जमीन के एक हिस्से पर बैंक से करोड़ों का लोन लिया है। वहीं हाईकोर्ट में किसान बोल चुके हैं कि हमारी जमीन पर सौदा पूरा किए बिना ही चंपू ने नक्शा पास कराया और चंपू व उनकी पत्नी योगिता ने धोखाधड़ी की है। बाद में प्लाट बेच दिए, जो जमीन मूल रूप से किसान की ही है क्योंकि रजिस्ट्री तो हुई ही नहीं, ऐसे में यदि प्लाट यहां लोगों को दिए भी जाते हैं तो उसका मतलब नहीं निकलेगा क्योंकि किसान से लेकर गर्ग और बैंक तक इस जमीन के स्वामित्व को लेकर सवाल खड़े करेंगे। वहीं किसान के अनुसार तो फिर टीएंडसीपी से पास नक्शा ही गलत है। ऐसे में किसी को प्लाट भी मिलेगा तो वह स्वामित्व के विवाद में उलझ जाएगा।
फिनिक्स- इसमें चंपू ने एक अलग पेंच फंसाया है। यहां भी जमीन को लेकर विवाद तो है ही, संदीप तेल (अग्रवाल) के भाई प्रदीप अग्रवाल से जमीन का विवाद है, जो प्रशासन ने कब्जे में ली थी ताकि प्लाट मिल सके लेकिन उन्होंने अब आपत्ति लगा दी है। वहीं फिनिक्स कंपनी को पेंरेटल ड्रग्स से एक करोड़ का लोन नहीं चुकाने के चलते दिवालिया घोषित किया जा चुका है, जिसका केस भी हाईकोर्ट इंदौर में चल ही रहा है। ऐसे में जब कंपनी दिवालिया हो गई है तो फिर जब तक इस केस का कानूनी निराकरण नहीं होता है, मामला उलझा रहेगा। कुल मिलाकर चंपू ने एक करोड़ का लोन उठाकर और दिवालिया होकर पीड़ितों के करोड़ों रुपए उलझा दिए हैं।
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ब्याज की दर भी कमेटी को तय करना होगी
कमेटी के सामने जिनके डायरी, रसीद पर सौदे हैं, उन्हें यदि प्लाट नहीं मिल रहा है तो कैसे राशि चुकाई जाएगी, इसे भी देखना है। जब 2010-12 के दौरान सौदे हुए तब यहां 400 से 600 रुपए प्रति वर्गफीट में सौदे हुए यानी एक हजार वर्गफीट करीप पांच-छह लाख में बिका। यही राशि अधिकांश डायरी, सौदे में दर्ज है। आज यहां प्लाट औसतन तीन हजार वर्गफीट के बाजार भाव में हैं। यानि यहां प्लाट 30-35 लाख रुपए का हो चुका है। यदि इन्हें इस पर सात से आठ फीसदी पीपीएफ की ब्याज दर से भी राशि चुकाई जाती है तो यह अधिकतम 10 से 12 लाख रुपए ही होगा। वहीं पीड़ित 12 साल से लड़ाई लड़ रहे हैं। वह अलग, जिसमें कानूनी लड़ाई में ही उनके लाखों रुपए लग चुके हैं, ऐसे में पीड़ितों को कोई लाभ नहीं होगा। इसलिए वह इस सौदे के बदले प्लाट मांग रहे हैं या बाजार मूल्य से राशि वापसी। अब कमेटी को तय करना है कि इनका किस तरह से विधिक अधिकार बनता है कि इन्हें प्लाट दिया जाए या किस मूल्यांकन से राशि लौटाई जाए। अभी तो भूमाफिया केवल मूल राशि पर छह फीसदी ब्याज चुकाकर ही पिंड छुड़ाने में लगे हुए हैं। ऐसे में पीड़ित को ब्याज सहित राशि भी उनके जख्म को भर नहीं पाएगी।