मध्यप्रदेश में सहकारिता की आड़ में गृह निर्माण सहकारी संस्थाओं की करतूत, 41 साल में एक भी संस्थापक सदस्य को नहीं मिला प्लॉट

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Rahul Garhwal
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मध्यप्रदेश में सहकारिता की आड़ में गृह निर्माण सहकारी संस्थाओं की करतूत, 41 साल में एक भी संस्थापक सदस्य को नहीं मिला प्लॉट

अंकुश मौर्य, BHOPAL. मध्यप्रदेश में सहकारिता की आड़ में गृह निर्माण सहकारी संस्थाओं में होने वाले जमीनों के घोटाले और इनमें प्लॉट खरीदकर अपना मकान बनाने का सपना पालने वाले लोगों के अंतहीन शोषण और संघर्ष की बात है। सरकार के तमाम दावों और घोषणाओं के बाद भी कोऑपरेटिव हाउसिंग सोसाइटी में प्लॉट खरीदने वाले सदस्यों को ताकतवर भूमाफिया और सहकारिता विभाग के अफसरों की मिलीभगत के चलते बरसों लड़ाई लड़ने के बाद भी प्लॉट नहीं मिल पा रहे हैं।



द सूत्र ने की गौरव गृह निर्माण सोसाइटी की पड़ताल



राजधानी की गौरव गृह निर्माण सहकारी समिति इसकी जीवंत मिसाल है। करीब 41 साल पहले वजूद में आई इस समिति के 44 प्राथमिक सदस्यों में से 22 एक अदद प्लॉट के लिए संघर्ष करते-करते दुनिया से ही रुखसत हो चुके हैं। बाकी बचे 22 में से 4 सदस्यों को ही प्लॉट मिल पाया है, 18 अभी भी दफ्तरों के चक्कर काटने को मजबूर हैं। जबकि उनके हक के प्लॉट बिल्डर को बेच देने वाले समिति के घोटालेबाज पदाधिकारी का एफआईआर दर्ज होने के बाद भी बेखौफ खुलेआम घूम रहे हैं।



सीएम ने 2021 में दिए थे न्याय दिलाने के निर्देश



6 जनवरी 2021 को मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने सहकारी गृह निर्माण समीतियों के पीड़ित सदस्यों को न्याय दिलाने के निर्देश दिए थे। इसमें अफसरों को 18 महीने का समय दिया गया था। लेकिन नतीजा वही हुआ, ढाक के तीन पात। बाद में खुलासा हुआ कि राजधानी में रजिस्टर्ड 580 सहकारी गृह निर्माण सोसाइटियों में से 117 की जानकारी ही विभाग के पास है। यानी ज्यादातर संस्थाओं के कर्ताधर्ता ऑडिट तक नहीं कराते। इन सोसाइटियों में प्रॉपर्टी की ऐसी बंदरबांट की गई कि 1 हजार 780 पीड़ित सदस्य सरकारी दफ्तरों के चक्कर काट रहे हैं। डेढ़ साल तक चली इस कवायद का नतीजा ये निकला कि सहकारिता विभाग के अधिकारी किसी भी गुनहगार के खिलाफ एफआईआर तक दर्ज नहीं करा सके और सिर्फ एक पीड़ित को ही उसका हक दिला सके।



सहकारी गृह निर्माण संस्थाओं में घोटाला



सहकारी गृह निर्माण संस्थाओं के घोटाले को गौरव गृह निर्माण संस्था में हुए फर्जीवाड़े के जरिए समझा जा सकता है। इस संस्था की संपत्ति भोपाल के पॉश इलाकों में शामिल बावड़िया कलां में स्थित है। 1981 में 44 लोगों ने मिलकर गौरव गृह निर्माण सोसाइटी बनाई थी। संस्थापक सदस्य एमके हाजरा ने बताया कि संस्था ने बाबड़िया कलां गांव में 5 एकड़ जमीन खरीदी। लेकिन 42 साल बाद भी इन्हें अपनी ही सोसाइटी में प्लॉट नहीं मिला। मौजूदा स्थिति में 44 में से 22 सदस्यों का निधन भी हो चुका है। बाकी सदस्यों को फरवरी 2016 में सोसाइटी से ही बाहर निकाल दिया गया। अब 70-80 साल की उम्र में भी सदस्यों को संघर्ष करना पड़ रहा है।



सरकार बदली तो जागी उम्मीद



गौरव गृह निर्माण संस्था के एक और संस्थापक सदस्य गिरीश चंद्र दुबे ने बताया कि जब सूबे में 15 साल बाद सरकार बदली तो एक बार फिर गौरव गृह निर्माण संस्था के संस्थापक सदस्यों ने लड़ाई शुरू की। भ्रष्टाचार की सहकारिता के खिलाफ तमाम शिकायतों पर कमलनाथ सरकार ने जांच शुरू की थी। जिसका असर ये हुआ कि गौरव गृह निर्माण सोसाइटी में घोटाला करने वालों के खिलाफ शाहपुरा थाने में 2 एफआईआर दर्ज की गई थी। इस मामले में सबसे ज्यादा हैरानी की बात तो ये है कि फ्रॉड की धाराओं में मामले दर्ज होने के बाद भी पुलिस के हाथ आरोपियों के गिरेबान तक नहीं पहुंचे। किसी भी आरोपी की गिरफ्तारी नहीं हुई। सूत्र बताते हैं कि सहकारिता विभाग के अफसरों ने पुलिस जांच में सहयोग ही नहीं किया। जरूरी दस्तावेज भी नहीं सौंपे, लिहाजा खात्मा लगाने की नौबत आ गई।



2 पर FIR लेकिन किसी को भी नहीं किया गिरफ्तार



जनवरी 2020 में गौरव गृह निर्माण के पूर्व अध्यक्ष संतोष जैन, तत्कालीन अध्यक्ष अनीता बिष्ट, अंजली कुकरेजा, प्रेम सिंह जायसवाल, बिल्डर शिशिर खरे और मनोज सिंह मीक के खिलाफ 2 एफआईआर दर्ज की गई थीं लेकिन पुलिस ने किसी को भी गिरफ्तार नहीं किया। गिरीश चंद्र दुबे ने बताया कि डेवलपमेंट के नाम पर साल 1999 से 2010 तक गौरव गृह निर्माण के अध्यक्ष रहे। संतोष जैन ने बिल्डर मनोज सिंह मीक और शिशिर खरे के साथ अनुबंध किया था। इसी अनुबंध को आधार बनाकर बिल्डर ने गौरव गृह निर्माण समिति की आधी जमीन पर डुप्लेक्स बनाकर बेच दिए और दूसरी तरफ संस्थापक सदस्यों के प्लॉट नगर निगम में गिरवी रख दिए।



त्रिसदस्यीय जांच कमेटी में हुआ खुलासा, ऐसे बेचे गए प्लॉट



वर्ष 2007 से लेकर 2019 तक गौरव गृह निर्माण सोसाइटी के कुल 74 प्लॉटों की रजिस्ट्रियां की गईं। इनमें से महज 4 संस्थापक सदस्यों के नाम पर रजिस्ट्री की गई। बाकी प्लॉट 70 नए सदस्य बनाकर बेच दिए गए। इन प्लॉट्स की बिक्री से प्राप्त हुए करीब ढाई करोड़ रुपए भी सोसाइटी के खाते में जमा नहीं किए गए। उस राशि का भी तत्कालीन अध्यक्षों और बिल्डर ने गबन कर लिया। वर्ष 2016 से 2019 तक अनीता बिष्ट सोसाइटी की अध्यक्ष रहीं। इनके कार्यकाल में भी सोसाइटी के 16 प्लॉटों की रजिस्ट्रियां नए सदस्यों को करा दी गई और इससे अर्जित राशि का अनीता बिष्ट ने गबन कर दिया।



सहकारिता विभाग के उपायुक्त का जवाब



गौरव गृह निर्माण सोसाइटी के खिलाफ हुई तमाम शिकायतों पर तीन सदस्यीय जांच कमेटी से जांच कराई गई थी। इस जांच कमेटी में सीएसपी अनिल त्रिपाठी, एसडीएम राजेश श्रीवास्तव और सहकारिता के संयुक्त आयुक्त आरआर सिंह शामिल थे। यानी पुलिस, प्रशासन और विभाग के अधिकारियों की जांच रिपोर्ट सामने आने के बाद भी आरोपियों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हो सकी। पुलिस ने आरोपियों को गिरफ्तार नहीं किया, पुलिस जांच में सहकारिता विभाग के अधिकारियों ने ही दस्तावेज नहीं सौंपे, जिला प्रशासन रजिस्ट्रियां कैंसिल नहीं करा सका। एक तरफ जमापूंजी लगाकर प्रापर्टी के लिए ये बुजुर्ग जीवनभर से संघर्ष कर रहे हैं। दूसरी तरफ सहकारिता विभाग के उपायुक्त विनोद सिंह का कहना है कि ये कोई ज्वलंत मुद्दा नहीं है। उन्होंने रटा रटाया सा जवाब देते हुए कहा कि आवेदनों पर कार्रवाई की जाती है। 


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