मप्र में दिग्विजय की मुश्किल बढ़ने से कांग्रेस को कैसे होगा फायदा? पार्टी विक्टिम कार्ड खेलकर सिम्पैथी बटोर पाएगी? जुलाई में जवाब

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Harish Divekar
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मप्र में दिग्विजय की मुश्किल बढ़ने से कांग्रेस को कैसे होगा फायदा? पार्टी विक्टिम कार्ड खेलकर सिम्पैथी बटोर पाएगी? जुलाई में जवाब

BHOPAL. मध्यप्रदेश में चुनाव से कुछ दिन पहले कांग्रेस को बड़ा झटका लग सकता है। कांग्रेस के संकटमोचन ही खुद बड़े संकट में उलझते नजर आ रहे हैं। वो भी ऐसे वक्त पर जब न सिर्फ कांग्रेस बल्कि कमलनाथ को भी 2018 की जीत दोहराने के लिए उनकी जरूरत थी। ये संकटमोचन कोई और नहीं दिग्विजय सिंह हैं। जिन्हें बीजेपी चुनाव से पहले राहुल गांधी की तरह घेरने की पूरी तैयारी कर चुकी है। अब क्या राहुल गांधी की तरह दिग्विजय सिंह से भी संसद की सदस्यता छिन जाएगी। क्या दिग्विजय सिंह को भी अदालत के चक्कर काटने होंगे। क्या दिग्विजय सिंह को जेल की सलाखें नसीब होंगे। इन सारे सवालों का जवाब 1 जुलाई को मिल सकता है, लेकिन उन सबसे बड़ा सवाल है कि क्या कमलनाथ और दिग्विजय सिंह दोनों इस मुद्दे पर विक्टिम कार्ड खेलकर लोगों की सहानुभूति बटोर सकेंगे। दिग्विजय सिंह को उलझाने में कामयाब रही तो बीजेपी को कितना फायदा और कितना नुकसान हो सकता है। ये जान लेना भी जरूरी है।



दिग्विजय सिंह के खिलाफ आरोप तय



मध्यप्रदेश बीजेपी अध्यक्ष विष्णु दत्त शर्मा पर व्यापमं मामले को लेकर दिग्विजय सिंह ने गंभीर आरोप लगाए थे। इस मामले में पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के खिलाफ आरोप तय कर दिए गए हैं। अब इस पर अगली सुनवाई 1 जुलाई को होगी। और ये तय हो सकता है कि दिग्विजय सिंह किस अंजाम तक पहुंचेंगे। पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के आरोपों को विष्णु दत्त शर्मा ने झूठा करार दिया था और कानूनी नोटिस भेजा था। खेद व्यक्त न करने की स्थिति में ये मामला न्यायालय में मानहानि प्रकरण के रूप में दायर किया गया। शर्मा पर लगाए गए आरोपों के दिग्विजय सिंह प्रमाण प्रस्तुत नहीं कर पाए। इसलिए भोपाल कोर्ट ने धारा-500 के तहत आरोप तय कर दिए हैं। इस खबर के बाद से ये सवाल उठने लगे हैं कि क्या दिग्विजय सिंह का हाल भी वही होगा जो राहुल गांधी का हुआ है। मामला अभी अदालत में है। फिलहाल इस पर कुछ चर्चा नहीं हो सकती। लेकिन ये जरूर आकलन किया जा सकता है कि दिग्विजय सिंह अगर कानूनी पचड़े में बुरी तरह उलझे तो कांग्रेस को कितना नुकसान हो सकता है। शायद यही बीजेपी चाहती भी है। दिग्विजय सिंह को इस तरह घेर कर चुनावी मैदान में कमलनाथ को घेरना क्या बीजेपी के लिए आसान हो सकता है।



बीजेपी ने रचा चक्रव्यूह



मध्यप्रदेश की राजनीति के मौजूदा हालात देखकर महाभारत का एक दृश्य याद आता है। बीजेपी ने चक्रव्यूह रचा है। अर्जुन को दूर करने के लिए अलग रणनीति बनाई है, जिसके बाद अकेला अभिमन्यू चक्रव्यूह में घिर जाता है। प्रदेश का चुनावी समर भी कुछ उसी चक्रव्यूह में ढलता नजर आ रहा है जिसमें कमलनाथ को घेरने के लिए उनके अर्जुन यानी कि दिग्विजय सिंह को दूर करने की पूरी तैयार हो चुकी है, लेकिन एक फर्क है। अभिमन्यु के पास मौका नहीं था, लेकिन कांग्रेस के पास मौका है। वो चाहें तो इस नुकसान को फायदे में बदल ले या फिर राजनीतिक चालों में उलझ जाए।



आरोप तय होने के बाद बढ़ेंगीं मुश्किलें!



कमलनाथ और दिग्विजय  सिंह दोनों कांग्रेस के तजुर्बेकार नेता हैं। उनकी उम्र और उनकी समझ से ये साबित भी होता है, लेकिन अब उनके तजुर्बे का असल इम्तिहान शुरू हुआ है। बीजेपी ने कांग्रेस के इन दोनों चतुर सुजानों को दो तरफ से घेरने की तैयारी शुरू कर दी है। एक तरफ दिग्विजय सिंह पर कानूनी शिकंजा कस रहा है। दूसरी तरफ बीजेपी  ने कमलनाथ के गढ़ में सेंध लगाने की तैयारी शुरू कर दी है। हालात ये है कि कमलनाथ को प्रदेश के साथ-साथ अपना गढ़ भी बचाना है। अब तक दिग्विजय सिंह का साथ था। तमाम मतभेदों के बावजूद दोनों नेता अब तक कांग्रेस संगठन को मजबूत करने में जुटे हुए थे। दिग्विजय सिंह के कंधों पर भारी जिम्मेदारी भी सौंपी गई थी। कांग्रेस ने पिछले चुनाव में जितनी कम अंतरों से हारीं उन पर संगठन को मजबूत करने के लिए दिग्विजय सिंह प्रदेशभर का दौरा कर रहे थे। कार्यकर्ताओं के बीच बैठकर वक्त बिताना, उनकी सुनना और बदलाव का आश्वासन देना उनकी कार्यशैली का हिस्सा बन चुका था। पर अब आरोप तय होने के बाद क्या दिग्विजय सिंह सहित कांग्रेस की मुश्किलें नहीं बढ़ेंगी।



दिग्विजय सिंह के तेवरों में कोई कमी नहीं



हालांकि अब तक दिग्विजय सिंह के तेवरों में कहीं कोई कमी नहीं आई है। उनके तीखे बयानों का सिलसिला जारी है। जिस दिन मीडिया उन पर आरोप तय होने की खबरों से भरा हुआ था यानी कि 27 अप्रैल को। उसी दिन उन्होंने ये बयान दिया कि मैं बीजेपी और आरएसएस के लिए कोरोना वायरस की तरह हूं। दरअसल ये तुलसीराम सिलावट के एक बयान पर पलटवार था। लेकिन इसकी टाइमिंग को देखते हुए लगता है कि दिग्विजय सिंह कम से कम ये जताने की कोशिश तो कर ही रहे हैं कि वो शांत बैठने वाले नहीं है। ये कानूनी कार्रवाई आखिर उन्हें और कांग्रेस को कितना नुकसान पहुंचा सकती है।



दिग्विजय सिंह को हल्के में नहीं ले सकती बीजेपी



आने वाला कल क्या फरमान लेकर आएगा। ये कहा नहीं जा सकता, लेकिन बीजेपी खूब समझती है कि दिग्विजय सिंह को हल्के में आंकना उसे एक बार फिर भारी पड़ सकता है। 2018 के नतीजों से इसे आसानी से समझा जा सकता है। जब चुनाव से कई महीने पहले उन्होंने 192 दिनों तक, यानी 6 महीने से भी लंबे समय तक नर्मदा परिक्रमा पदयात्रा करके राज्य में कांग्रेसी कार्यकर्ताओं को नए उत्साह से भर दिया था। 3 हजार 300 किलोमीटर की यात्रा के दौरान करीब 140 विधानसभा क्षेत्रों में दिग्विजय सिंह ने कवर किया था। इस दौरान वो पंगत में संगत करते थे। जहां मौजूद होते उस क्षेत्र के नाराज और उदासीन नेताओं के साथ एक साथ खाने पर बैठते। कांग्रेस नेताओं का दावा है कि पंगत में संगत की वजह से 10 से 15 सीटों पर कांग्रेस भीतराघात से बच सकी। अपने बयानों से अक्सर पार्टी का संकट मोचक बनने वाले दिग्विजय सिंह नेपथ्य में रहते हुए संगठन को जोड़ने में जुटे हुए हैं। 20-20 घंटे जनसंपर्क करना उनकी बड़ी ताकत है। बीजेपी इसी ताकत को तोड़ने में लगी है। अब इस कोशिश से कमलनाथ चुनावी समर में अकेले पड़ जाते हैं। या दोनों मिलकर इस मुश्किल को सहानुभूति में बदल सकते हैं। जिसका फायदा कांग्रेस को मिल सकता है।



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परदे के पीछे से एक्टिव हैं दिग्विजय सिंह



हर बार की तरह दिग्विजय सिंह इस बार भी परदे के पीछे से एक्टिव हैं। देखना ये है कि 1 जुलाई के बाद ये सक्रियता बरकरार रह पाती है या नहीं। कांग्रेस पर एक बार फिर संकट के बादल घिरे हैं। संकट गहरा इसलिए है क्योंकि चुनाव में वक्त बहुत कम है और काम बहुत ज्यादा। ऐसे समय में दिग्विजय सिंह का दूसरे मामले में उलझना कांग्रेस शायद ही अफोर्ड कर सकती है। कमलनाथ के साथ दिग्विजय नहीं तो फिर कौन का सवाल कांग्रेस के लिए बहुत बड़ा है। हालांकि बाजी अब भी हाथ से निकली नहीं है। राष्ट्रीय स्तर पर राहुल गांधी खुद पर हुए हमलों और कार्रवाई को सिंपेथी में बदलने की पुरजोर कोशिश में लगे हैं। प्रदेश में भी कांग्रेस यही कोशिश कर सकती है। कामयबी मिली तो ये भी हो सकता है कि जिस जाल में बीजेपी कांग्रेस को फंसाना चाहती है। उस जाल में खुद ही उलझकर रह जाए।


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