BHOPAL: मप्र सरकार 1 मार्च यानी आज अपना सालाना बजट पेश कर रही है। चुनावी साल है तो यकीनन ये चुनावी बजट ही होगा। बजट में होने वाली कई सारी लोक लुभावन घोषणाओं का अंदाजा तो पहले ही लग चुका है। मसलन लाड़ली बहना योजना तो सरकार लागू करने ही जा रही है, जिसमें 1 करोड़ महिलाओं के खाते में 1 हजार रु. हर महीने दिए जाएंगे। इस तरह से 1 हजार करोड़ रु. महीना, यानी सालभर में 12 हजार करोड़ की भारी भरकम राशि सरकार खर्च करेगी। और लाड़ली बहना जैसी योजनाएं जनमानस की भलाई से जयादा वोट पाने के इरादे से दी गई मुफ्त की रेवड़ी की कैटेगरी में ज्यादा आती हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि इस पैसे का रिटर्न नहीं है, यानी ये पैसा वापस सरकार के खाते में नहीं आने वाला है। और इसी तरह से सरकारी खर्च, फ्रीबीज, गैर जरूरी सब्सिडी और कर्ज लेकर सरकार ने अपने रेवेन्यू एक्पेंडिचर यानी राजस्व खर्च में भारी बढ़ोतरी कर ली है, जबकि पूंजीगत खर्च यानी कैपिटल एक्सपेंडिचर कम होता जा रहा है। मध्य प्रदेश के पिछले पांच साल के बजट को देखे तो उनमें एक बात काफी मिलती-जुलती है, और वह है बजट में पूंजीगत खर्च (कैपिटल एक्सपेंडिचर) के मुकाबले राजस्व खर्च (रेवेन्यू एक्सपेंडिचर) का अत्यधिक ऊंचा स्तर। जो किसी भी अर्थव्यवस्था के लिए सही नहीं कहा जा सकता। अब पूंजीगत खर्च के मुकाबले राजस्व खर्च इतना क्यों बढ़ रहा है और इसके आम आदमी को क्या नुकसान हो सकते हैं, पढ़िए इस रिपोर्ट में:
पहले समझिये क्या है पूंजीगत और राजस्व खर्च और इससे आम आदमी का सरोकार
राजस्व व्यय दरअसल, सरकार के खर्चे दो हिस्से में बंटे होते हैं- पूंजीगत व्यय (Capital Expenditure) और राजस्व व्यय (Revenue Expenditure)। राजस्व व्यय का मतलब ऐसे खर्चों से है, जिससे न सरकार की आय बढ़ती है और न ही उत्पादन क्षमता बढ़ती है, जैसे - सरकारी डिपार्टमेंट्स की पेंशन्स और वेतन पर, ब्याज आदायगी पर, और सरकार की ओर से दी जाने वाली सब्सिडी एवं सरकारी स्कीम्स पर, राज्य सरकारों के अंतर्गत आने वाली संस्थाओं को दिए जाने वाले अनुदान पर, और मौजूदा बुनियादी ढांचे के रखरखाव पर खर्च। इसलिए राजस्व व्यय इससे न तो देश में उत्पादकता बढ़ती है और न ही कभी सरकार को कमाई होती है। इस तरह राजस्व व्यय खर्च गैर-विकासात्मक होता है।
पूंजीगत व्यय तो वहीँ पूंजीगत व्यय से आम आदमी का सीधा फायदा तो होता ही है, साथ ही सरकार के लॉन्ग टर्म-एसेट्स यानी संपत्ति में इजाफा होता है। क्योंकि पूंजीगत व्यय के तहत सरकार आम आदमी से जुड़े निर्माण, विकास के काम जैसे बंदरगाह, हवाई हड्डे, उद्योग धंधों की स्थापना, अस्पताल, पुल, सड़कों आदि के निर्माण पर खर्चा करती है। पूंजीगत व्यय के तहत किये जाने वाले खर्चों से जो असेस्ट्स बनते हैं..उससे नए रोजगार के मौके बढ़ते हैं...और इस लिहाज से ज्यादा पूंजीगत व्यय का नतीजा यह होता है कि देर-सबेर राज्यों की राजस्व सृजन क्षमता भी बढ़ती है। खुद केंद्र सरकार के बजट में भी वित्तमंत्री निर्मला सीथारमन ने पूंजीगत व्यय को बढ़ाने पर ये कहते हुए जोर दिया था कि पूनकीगत व्यय बढ़ने से उच्च आर्थिक विकास और रोजगार सृजन होता है। इसी वजह से केंद्र भी लगातार राज्यों को अपने पूंजीगत व्यय को बढ़ाने के लिए जोर दे रहा है, विशेष रूप से वैश्विक महामारी के बाद। इसके अलावा, राज्यों के पूंजीगत व्यय का विकास पर असर केंद्र के पूंजीगत व्यय के मुकाबले ज्यादा होता है क्योंकि यह लोकल समुदाय से सीधा जुड़ा होता है।
पिछले चार सालों में MP के बजट में पूंजीगत व्यय के मुकाबले राजस्व व्यय बेहद ज्यादा
28 फरवरी, 2023 को मध्य प्रदेश का आर्थिक सर्वेक्षण प्रस्तुत करते सरकार ने आंकड़ें देते हुए कहा कि राज्य की आर्थिक स्थिति बेहतर हो रही है। लेकिन इन्ही आंकड़ों में गहरा जाएं तो एक महत्वपूर्ण बात पता चलती है - और वो ये कि पिछले चार सालों में राजस्व खर्च और पूंजीगत खर्च की तुलना की जाए तो, पूंजीगत खर्च की बजाए राजस्व खर्च में अधिक इजाफा हुआ है। देखें:
साल 2018-19
- बजट-2 लाख 04 हजार 642 करोड़
साल 2019-20
- बजट- 2 लाख 33 हजार 606 करोड़
साल 2020-21 में कोविड के चलते बजट नहीं आया बल्कि लेखानुदान पेश किया गया था
साल 2021-22
- बजट-2 लाख 41 हजार 375 करोड़
साल 2022-23
- बजट- 2 लाख 79 हजार 237 करोड़
इस तरह से देखें तो 4 सालों में:
- कुल बजट: 9 लाख 58 हजार 860 करोड़ रुपए
GSDP का पूंजीगत खर्च देश में बढ़ा, मप्र में घटा
देश में कैपिटल एक्सपेंडिचर कोरोना काल में भी बढ़ा, लेकिन मप्र में यह पिछले दस साल में सबसे कम रहा। अभी 2021-22 में GSDP (सकल राज्य घरेलू उत्पाद) की तुलना में कैपिटल एक्सपेंडिचर 4.9% है जो पूर्व के वर्ष 2014-15 में 6.1%, 2016-17 में 5.7% और 2017-18 में 5.3% से कम है। अटल बिहारी वाजपेयी सुशासन एवं नीति विश्लेषण संस्थान द्वारा सरकार, वित्त विभाग और अर्थशास्त्रियों की बैठक में बताए आंकड़ों अनुसार:
वर्ष प्रदेश देश
- 2012-13 5.4 --
मतलब पिछले कुछ वर्षों में GSDP यानी राज्य की GDP का साइज बढ़ने से विकास कार्यों के लिए पैसा तो आया, लेकिन वित्तीय बजटों में पूर्व के वर्षों की तरह कैपिटल एक्सपेंडिचर का प्रतिशत ज्यादा नहीं रखा गया। यानी मध्यप्रदेश में विकास कार्यों में निवेश में सरकार का निवेश पिछले 7 सालों में कम होता गया हैं। मध्यप्रदेश सरकार चाहती है कि आने वाले वित्तीय वर्ष में देश की GDP में मप्र 2026 तक 550 अरब डॉलर (लगभग 41 लाख करोड़) का योगदान दे। पर अर्थशास्त्री कहते हैं कि ऐसा तभी संभव है जब राज्य सरकार अचल संपत्तियां/एसेट्स बनाने पर ध्यान दे, क्योंकि इससे आर्थिक गतिविधियां बढ़ती हैं और रोजगार मिलता है।
अब बड़ा सवाल ये है कि आखिर वो क्या कारण है जिनकी वजह से सरकार राजस्व खर्च को कण्ट्रोल नहीं कर पा रही है...तो आपको बता दे कि एक्सपर्ट्स के अनुसार राजस्व खर्च के बढ़ने की मुख्य वजहें हैं:
1. सरकार द्वारा लिए जाने वाले कर्ज़ों पर ब्याज
ब्याज-आदायगी राजस्व खर्च बढ़ने का एक बड़ा कारण है। आपको बतादें कि राज्य सरकार फिलहाल लगभग 20,000 करोड़ रुपये ब्याज चुकाने में ही खर्च कर दे रही है। ये राज्य के कुल बजट (₹241,375 करोड़) 8.29 प्रतिशत और राजस्व व्यय का करीब-करीब 10.05 प्रतिशत है! साल 2003 तक राज्य पर 20,000 करोड़ रुपये का कर्ज था। यानी मध्य प्रदेश के प्रति व्यक्ति पर लगभग 3,300 रुपये का कर्ज। लेकिन यह कर्ज समय के साथ-साथ दिन दोगुना और रात चौगुना बढ़ता चला गया। वर्तमान में सरकार पर 3.32 लाख करोड़ रुपये का कर्ज है। और सरकार लगभग 20,000 करोड़ रुपये ब्याज चुका रही है।
वर्ष कुल कर्ज व दायित्व ब्याज राशि
- 2017-18 1 लाख 54 हजार करोड़ 11 हजार करोड़
2. सरकार द्वारा दी जाने वाली अलग-अलग तरह की सब्सिडी, कर्ज़ माफी, प्रोत्साहन पैकेज, लोक लुभावन योजनाओं का वित्त पोषण
अब सरकार भले ही नियमों के तहत कर्ज लेती है लेकिन मूल कारण हैं लोकलुभावन वादों की राजनीति का हावी होना। कर्ज में डूबी मध्य प्रदेश सरकार जनता के टैक्स की कमाई से सत्ता तक पहुंचने का रास्ता आसान बनाने के लिए लगातार सब्सिडी बढ़ा रही है। ये सब तब है जबकि केंद्र सरकार धीरे-धीरे सब्सिडी खत्म कर रही है। वोट को सुरक्षित करने के लिये आए दिन मुफ्त बिजली/पानी की आपूर्त्ति, बेरोज़गारों, दैनिक वेतनभोगी श्रमिकों और महिलाओं को भत्ता, साथ-साथ गैजेट जैसे लैपटॉप, स्मार्टफोन आदि की पेशकश होती ही रहती है। इससे जो हो रहा है वह यह है कि पहले से ही भरी क़र्ज़ तले दबी राज्य सरकार इन मुफ्त सुविधाओं को लागू करने के लिए उधार लेती हैं, जो बदले में उनके कर्ज के बोझ को बढ़ाती हैं। बीते वर्ष राज्य सरकार का कुल बजट 2 लाख 41 हजार 375 हजार करोड़ का रहा, जिसका करीब एक तिहाई बजट यानी 82 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा सरकार ने सब्सिडी के नाम पर खर्च करने की बात की। सबसे ज्यादा राशि का प्रावधान घरेलू बिजली उपभोक्ताओं, किसानों, उद्योगों, उच्च शिक्षा ऋण सहित विभिन्न योजनाओं पर किया गया है। इसमें अकेले बिजली पर ही सरकार द्वारा 22,500 करोड़ की सब्सिडी दी जा रही है।
2022- 23 के बजट में कौन सी योजना में कितनी सब्सिडी
- 88 लाख घरेलू बिजली उपभोक्ताओं के 6400 करोड़ रुपए सरकार ने भरने की बात की
3. मध्य प्रदेश का रेवेन्यू डेफिसिट राज्य होना
दरअसल, सरकार हर वित्तीय वर्ष में अपने आमदनी और खर्च का लक्ष्य तय करती है। अगर रेवेन्यू यानी राजस्व प्राप्ति राजस्व खर्च से कम होता है तो इसे रेवेन्यू डेफिसिट यानी राजस्व घाटा कहते हैं। इसका मतलब है कि सरकार ने जरूरी खर्च के बराबर कमाई नहीं की। कोरोना काल के वक़्त से ही राज्य रेवेन्यू डेफिसिट मोड में चला गया है। 2022-23 के लिए अनुमानित रेवेन्यू डेफिसिट 3,736 करोड़ रुपए रहा। यानी सरकार की जितनी कमाई हुई उससे 3,736 करोड़ रुपए ज्यादा खर्च हुए। इन खर्चो को पूरा करने के लिए सरकार लोन्स लेने का सहारा लेती है।
4. सरकारी खर्च में अत्यधिक बढ़ोतरी और सरकारी उपक्रमों का घाटा
सरकार के सामने सबसे बड़ी समस्या अपने खर्चे कम करने की है। इसे लेकर जोड़-तोड़ भी की जा रही है। सीएम, मंत्री और अधिकारी भी इसे लेकर प्लान बनानें में जुटे हैं कि कैसे सरकार की आमदानी में इजाफा किया जाए और खर्चों को कैसे कम किए जाए। सरकार की कमाई का आधा से ज्यादा हिस्सा 3 मदों, वेतन-भत्तों, पेंशन और ब्याज के भुगतान में ही चला जाता है। बजट में से करीब 90 हजार करोड़ रुपए की राशि वेतन-भत्तों और पेंशन पर खर्च हो रही है!
- साल 2011-12 में सरकार वेतन-भत्तों पर 22.86 फीसदी खर्च करती थी, जो 2021-22 में बढ़कर 28.93 फीसदी हो गया है
5. बढ़ता राजकोषीय घाटा
मध्य प्रदेश सरकार का बीते साल का राजकोषीय घाटा 55 हजार 111 करोड़ का है। राजकोषीय घाटे की पूर्ति के लिये सरकार देश की जनता, बैंकों तथा वित्तीय संस्थानों से क़र्ज़ लेती है, जिन पर सरकार को भारी ब्याज चुकाना पड़ता है। सरकार जब बैंकों से ऋण लेती है, तो निजी क्षेत्र के लिये ऋण की मात्रा कम होने से औद्योगिक विकास और विदेशी निवेश प्रभावित होते हैं। इस घाटे के बोझ को कम करने के लिये नए टैक्स लगाए जाते हैं, जिससे महँगाई बढ़ती है और आम लोगों को कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।
उपरोक्त सभी कारणों ---- सरकार द्वारा लिए जाने वाले कर्ज़ों पर ब्याज, दी जाने वाली अलग-अलग तरह की सब्सिडी, कर्ज़ माफी, प्रोत्साहन पैकेज, लोक लुभावन योजनाओं का वित्त पोषण, अनुचित सरकारी खर्च और सरकारी उपक्रमों का घाटा, सरकार का बढ़ता राजकोषीय घाटा ---- की वजह से सिर्फ राजस्व खर्चा ही नहीं बढ़ता, बल्कि ये ही वो कारण भी है जिनकी छतिपूर्ति करने के लिए सरकार पूंजीगत खर्चों में कटौती करती है, जिससे देश का विकास बाधित हो जाता है। अब वित्त विशेषज्ञों की माने तो यी हालात किसी भी स्टेट की सेहत के लिए ठीक नहीं है, लेकिन वित्त मंत्री कहते हैं कि सरकार की कुछ जिम्मेदारियां होती हैं....
योजनाओं और स्कीम्स में जो खर्चा करती है, वो लोगो की भलाई के लिए: जगदीश देवड़ा, वित्त मंत्री, मध्य प्रदेश
"सरकार योजनाओं और स्कीम्स में जो खर्चा करती है, वो लोगो की भलाई के लिए करती है। लाड़ली बहना योजना उन्ही में से एक है। और रही बात सरकार पर लगने वाले बढ़ते कर्ज के बोझ की, तो सरकार क़र्ज़ नियमों के तहत लेती है और उसे चुकाती भी है।" कम पूंजीगत व्यय के बारे में पूछने पर वित्तमंत्री ने कहा की आने वाले बजट में सभी बातों का ध्यान रखा गया है।
हल क्या हैं?
- सरकार को क़र्ज़ पर लगाम लगाने की जरुरत: अर्थशास्त्रियों का कहना हैं कि सरकार जिस रफ्तार से कर्ज लेने लगी है, इस पर कंट्रोल जरूरी है। जैसे-जैसे कर्ज बढ़ेगा, वैसे-वैसे बुनियादी ढांचे और विकास के संसाधन कम होते जाएंगे। हम कोरोना की चुनौतियों से निकल चुके हैं। रूस-यूक्रेन युद्ध का असर मप्र पर कम है पर है। ऐसे में वित्तीय संसाधन जुटाने और कम से कम कर्ज लेने की नीति पर आगे बढ़ने की जरूरत है।
इन सभी मुद्दों पर द सूत्र ने वित्त विशेषज्ञ नितिन नन्दगांवकर से बात की...
सब्सिडी और योजनाओं में लगने वाली राशि को बेहतर मैनेज करे तो राजस्व खर्च कम: नितिन नन्दगाओंकर, एक्सपर्ट
"बीते वक़्त में कोरोना महामारी और रूस-यूक्रेन युद्ध की वजह से कीमतों में आए उछाल और बढ़ती महंगाई की वजह से राज्य ने पूंजीगत व्यय में कटौती की... पर अगर हम सब्सीडीस को थोड़ा कम करें और योजनाओं में लगने वाली राशि को बेहतर मैनेज करे तो राजस्व खर्च को कम किया जा सकता है। हालांकि, सरकार इसके लिए ऑस्टेरिटी मैसर्स अपनाती रहती है। साथ ही केंद्र ने राज्यों में पूंजीगत खर्च बढ़ाने के मकसद से विशेष सहायता स्कीम की भी घोषणा अप्रैल, 2021 में की थी। विशेष सहायता स्कीम के तहत केंद्र सरकार आठ राज्यों - बिहार, छत्तीसगढ़, हिमाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, पंजाब, सिक्किम व तेलंगाना - को पूंजीगत खर्च के लिए वर्ष में 15000 करोड़ रुपये कर्ज के रूप में देने की बात कही है। इस कर्ज पर केंद्र सरकार राज्यों से कोई ब्याज नहीं लेगी और यह कर्ज 50 वर्षों के लिए दिया जा रहा है। इस विशेष सहायता से सरकार का मकसद राज्यों की इन्फ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं को बढ़ावा देना है। इसका असर हमें आने वाले 4-5 सालों में पूंजीगत खर्च पर देखने को मिलेगा।"
बड़े बुजुर्ग कह गए हैं कि जितनी चादर हो उतने पैर पसारने चाहिए, यानी आपकी जितनी कमाई है उतना या उससे कम खर्च करना चाहिए। चादर से बाहर पैर निकलते हैं तो फिर आर्थिक मामला गड़बड़ा जाता है। ये कहावत परिवारों के साथ साथ सरकारों के लिए भी होती है, मगर सरकारों के पास पैसा तो जनता से ही आता है इसलिए जनता के पैसे की बंदरबांट करने में सरकारें कोई कमी नहीं करती। और इसलिए पूरी आर्थिक स्थिति गड़बड़ा जाती है। उस सरकार को बेहतर सरकार कहा जाता है जिसका खर्च और कमाई में बेहद मामूली अंतर हो। जब आपके हाथ में पैसा होगा तो आप बेहतर तरीके से योजनाएं चला पाएंगे। और अर्थशास्त्री मानते हैं कि जिस सरकार की कमाई ज्यादा खर्च कम हो उसे ही फ्री बिज यानी मुफ्त की रेवड़ियां बांटना चाहिए। पर मध्य प्रदेश की कुल मिलाकर कहानी ये है कि सरकार कहती है कि वो जो भी कर रही है वो बेहतर है, और एक्सपर्ट मानते हैं कि कंट्रोल करने की जरूरत है। अब 1 मार्च यानी आज जो बजट पेश होगा वो पूरी कहानी खुद-ब-खुद बयां कर ही देगा।