इंदौर कलेक्टर के लिए दो और नामों पर हुई थी चर्चा, आखिर में राजा को ही क्यों मिली कमान? जानें अंदर की खबर

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Shivasheesh Tiwari
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इंदौर कलेक्टर के लिए दो और नामों पर हुई थी चर्चा, आखिर में राजा को ही क्यों मिली कमान? जानें अंदर की खबर

संजय गुप्ता, INDORE. इंदौर कलेक्टर के लिए साल 2009 बैच के आईएएस डॉ. इलैया राजा टी का नाम सभी को चौंकाने वाला लग रहा है, लेकिन सरकार ने यह फैसला लंबी चर्चा के बाद लिया है। तत्कालीन कांग्रेस सरकार के समय मुख्यमंत्री कमलनाथ के साथ उपसचिव तौर पर काम करने वाले राजा को आखिरकार बीजेपी सरकार के सीएम शिवराज सिंह चौहान ने क्यों इंदौर कलेक्टर जैसी पदस्थापना दी, और तीन नाम की रेस में वह सबसे आगे कैसे आए, इसकी यह रही वजह। 



इन नामों पर भी हुई चर्चा



सूत्रों के अनुसार सीएम और मुख्य सचिव के बीच इंदौर कलेक्टर को लेकर चर्चा हुई। इसमें पहले तो यह तय हो गया कि अब प्रमोटी आईएएस की जगह रेगुलर आईएएस को जिम्मा देंगे, इसके चलते सभी प्रमोटी आईएएस का पत्ता कट गया। इसके पद बैच 2009 और 2010 के अधिकारियों पर नजर डाली गई क्योंकि इसके बाद बैच के अधिकारी काफी जूनियर होते, इंदौर कलेक्टर पद सीनियर आईएएस को ही देते हैं। आखिर में बैच साल 2010 के कौशलेंद्र सिंह ग्वालियर कलेक्टर और इसी बैच के आशीष सिंह उज्जैन कलेक्टर दो नाम चर्चा में आए। लेकिन जब इन नामों पर चर्चा हुई तो बात आई कि कौशलेंद्र ने ग्वालियर में राजनीतिक मोर्चे को काफी बेहतर संभाला है, यह नरेंद्र तोमर, ज्योतिरादित्य सिंधिया, डॉ. नरोत्तम मिश्रा इन सभी का क्षेत्र है, ऐसे में उन्हें बदलकर बेवजह तनाव नहीं बढाना है, क्योंकि अभी सभी उनसे संतुष्ट है। फिर बात आशीष सिंह की हुई, लेकिन दो बातें आई पहली कि उज्जैन में महाकाल लोक का काम ठीक चल रहा है और दूसरी यह कि यह संदेश अधिकारियों में जा रहा है कि इंदौर में नौकरी करने वालों को ही फिर इंदौर कलेक्टर बनाया जाता है, इसलिए इस छवि को तोडना चाहिए। इसके चलते यह दोनों नाम कट गए। 



इलैया राजा क्यों आए



तत्कालीन सीएम कमलनाथ के साथ उपसचिव के बाद और जबलपुर में जिस तरह उनकी बीजेपी नेताओं से पटरी नहीं बैठ रही थी, इसके बाद भी इंदौर कलेक्टर पद पर आखिर राजा क्यों आए इसकी वजह यह है कि कमलनाथ के साथ उनकी वर्किंग को न्यूट्रल रूप में देखा गया क्योंकि कमलनाथ ने उन्हें इसलिए अपने पास नहीं लिया था कि वह उनके खास है, बल्कि क्योंकि कमलनाथ की पूरी वर्किंग अंग्रेजी में होती है और राजा व शेलवेंद्रम आईएएस दोनों इसमें माहिर थे, इसलिए उन्हें कमलनाथ ने जोडा था। इसलिए उनके कांग्रेस के करीब होने के तर्क को खारिज किया गया। फिर सीएम उनकी वर्किंग से काफी इंप्रेस थे, खासकर भिंड में जिस तरह से काम किया, उनकी साफ छवि, आम लोगों से जुडने की काबिलियत और फिर सीनियरिटी; वह मनीष सिंह से भी सीनियर है, क्योंकि एक ही बैच 2009 होने के बाद भी वह रेगलुर यानि डायरेक्टर आईएएस है तो सिंह प्रमोटीद्ध भी थी। वहीं वह इंदौर में भी नहीं रहे, ऐसे में संदेश जाएगा कि सभी अधिकारियों के लिए इंदौर कलेक्टर बनने का रास्ता खुला है। इसलिए उनका नाम फिर फाइनल किया गया। इसी बैच के एक और अधिकारी है अविनाश लवानिया, भोपाल कलेक्टर, जो गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा के रिश्तेदार है, लेकिन उनके नाम पर चर्चा ही नहीं हुई, कारण है कि कुछ माह बाद विधानसभा चुनाव है, ऐसे में आयोग किसी भी दल के रिश्तेदार को फील्ड अधिकारी नहीं रहने देगा। 



मनीष सिंह मेट्रो क्यों गए



मनीष सिंह के नौकरी में आने से लेकर अभी तक जितनी भी पोस्टिंग हुई उन सभी पर नजर डालेंगे तो देखेंगे कि उन्हें फर्क नहीं पडता कि वह क्रीमी पद है या लूपलाइन का, वह यह देखते हैं कि किस पद पर रहकर सीधे सीएम और भोपाल से लिंक रह सकते हैं। मुख्य सचिव इकबाल सिंह बैंस को भी जाना है, ऐसे में नई पोस्टिंग में देरी होने पर संभव है कि वह पद नहीं मिले जिस पर वह काम करके दिखा सकते हैं। वहीं सरकार का विधानसभा चुनाव 2023 को लेकर ड्रीम प्रोजेक्ट है कि इंदौर और भोपाल में मेट्रो चलाकर दिखाई जाएए यह पूरा प्रोजेक्ट अभी डिरेल है। सिंह इंदौर और भोपाल दोनों जगह निगमायुक्त रहे हैं और पूरे शहर से वाकिफ है, मैदानी मेहनती तो वह शुरू से हैं। ऐसे में सरकार के साथ ही उन्हें भी मेट्रो कंपनी के एमडी पद पर आने से कोई गुरेज नहीं था। रही बात एमपीआईडीसी एमडी की तो समिट कोई बडा इश्यू नहीं है। एकेवीएन एमडी के अनुभव के साथ ही उन्हें दो ग्लोबल समिट कराने का भी अनुभव है तो वह इसे आसानी से संभाल सकते हैं। 



अब नजर आशीष, कौशलेंद्र, प्रतिभा और अविनाश पर



अब बात आती है सबसे काबिल अधिकारी के तौर पर माने जाने वाले आशीष सिंह की। माना जा रहा है कि ग्वालियर कलेक्टर कौशलेंद्र सिंह के साथ उनके पद की अदला.बदली की जा सकती है। दोनों आपस में मित्र भी है और दोनों की कार्यशैली बेहतर है। ऐसे में अगले फेरबदल के दौरान आशीष सिंह ग्वालियर कलेक्टर के तौर प दिख सकते हैं और कौशलेंद्र सिंह उज्जैन कलेक्टर। एक यह भी है कि कुछ माह में भोपाल कलेक्टर पद भी खाली होगा क्योंकि बीजेपी नेता के रिश्तेदार होने के चलते अविनाश लवानिया फील्ड पोस्टिंग से हटकर वल्लभ भवन जाएंगे, ऐसे में दोनों ही सिंह के लिए भोपाल कलेक्टर पद का भी दरवाजा खुलेगा। वहीं अभी बडे जिले की कलेक्टर की दावेदारी में निगमायुक्त प्रतिभा पाल भी है, इन्हें भी अगली सूची में कोई बडा जिला मिल सकता है। इसलिए अगली सूची में नजर इन्हीं अधिकारियों पर सबसे ज्यादा है।

 


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