जबलपुर में बरसात भी आकर चली गई, बादल भी गरजकर बरस गए, लेकिन मगरमच्छ नहीं हुए टस से मस

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Rajeev Upadhyay
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जबलपुर में बरसात भी आकर चली गई, बादल भी गरजकर बरस गए, लेकिन मगरमच्छ नहीं हुए टस से मस

Jabalpur. जबलपुर में परियट जलाशय और नदी से सटे खमरिया, घाना, मटामर इलाकों की कई रहवासी कॉलोनियां अब भी मगरमच्छों की दहशत के बीच गुजर-बसर कर रही हैं। अब तो यह हाल हैं कि लोगों ने भी परवाह करना छोड़ दिया है, बस छोटे बच्चों पर काफी बंदिशें लगी हुई हैं। वन विभाग है कि नियमों का हवाला देकर अपना पल्ला झाड़ लेता है। वहीं नगर निगम और जिला प्रशासन शिकायतों और सूचनाओं के बाद भी ध्यान नहीं दे रहा। हालात अब ऐसे हैं कि इन क्षेत्रों में दिन ढलते ही अघोषित लॉकडाउन लग जाता है। 



स्थानीय लोगों को महज वन्य प्राणी विशेषज्ञ शंकनेंदुनाथ का सहारा है, जो मगरमच्छ दिखाई दे जाने पर उसका रेस्क्यू कर नदी में छोड़ देते हैं। हाल ही में घाना की बस्ती में एक मोटा ताजा मगरमच्छ खुलकर ताव दिखाने लगा। वन विभाग को इत्तला दी गई लेकिन आखिर में शंकरेंदुनाथ को ही क्षेत्रीय युवकों की मदद से मगरमच्छ को पकड़ना पड़ा। इस बार वे मगर को पकड़कर नदी के बजाय थाने पहुंच गए। लोगों का आरोप था कि रेस्क्यू तो दूर पकड़े गए मगरमच्छ को लेने तक वन विभाग की टीम नहीं पहुंची इसलिए उसे थाने में जमा कराऐंगे। पुलिस ने भी बिना देर किए मगरमच्छ को कब्जे में ले लिया। 



क्रोकोडायल सेंचुरी है प्रस्तावित



शंकरेंदु नाथ ने बताया कि परियट जलाशय, बिलपुरा और फगुआ नाले में सालों से मगरमच्छ रह रहे हैं। ये उनके प्राकृतिक आवास हैं। कई सालों से क्रोकोडायल सेंचुरी के लिए प्रयास चल रहे हैं लेकिन राजनैतिक उदासीनता के चलते यह साकार नहीं हो पा रहा। मामला हाईकोर्ट में लंबित है। 



नालों पर की जाए फेंसिंग



लोगों ने मांग की है कि नालों की फेंसिंग करा दी जाए तो मगरमच्छ सड़कों पर नहीं घूमेंगे। वन विभाग और नगर निगम को पत्राचार किया जा चुका है। इसके बावजूद इस ओर कोई ध्यान नहीं दिया जाता। 


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