Narsinghpur. वैशाख का महीना चल रहा है, भले ही इस साल मौसम की बेमिजाजी के चलते सूर्य देव तेज नहीं बरसा रहे, लेकिन इन दिनों पड़ने वाली गर्मी के कारण लोग परोपकार की परंपरा निभा रहे हैं। कहते हैं जिसे समाज सेवा या लोगों का भला करने का जज्बा हो या जो मानते हैं कि नर में ही नारायण है। जरूरतमंद व्यक्ति की सेवा ही नारायण सेवा है तो वह किसी न किसी तरह से परमार्थ करते ही रहते हैं। नरसिंहपुर जिले में एक साधारण किसान को भी तब जब समाज सेवा का ऐसा जज्बा रहता है कि वह किसी ना किसी तरह लोगों को लोगों का भला करने में आगे रहते हैं। यही कारण है कि किसान बाबू भाई को जो भी बच्चा, बुजुर्ग या युवा नंगे पैर दिखाई दे जाता है, वे उसे जूते-चप्पल दान कर रहे हैं।
वैशाख माह में परोपकार का है विधान
आमतौर पर हिंदी महीने वैशाख में पुण्य ,परोपकार के लिए लोग कई तरह के कार्य करते हैं। कोई प्यासे लोगों को पानी देने के लिए प्याऊ खुलवा देता है तो कोई किसी परिक्रमा वासियों को सदाव्रत या दान देता है। कोई किसी भूखे गरीब को भोजन खिलाता है, समाज में यह उदाहरण कई वर्षों से देखने सुनने को मिलते हैं। ऐसा ही एक परोपकारी का जज्बा एक साधारण किसान बाबूलाल पटेल को है। उन्होंने वैशाख माह में जरूरतमंद 1000 लोगों को जूते चप्पल पहनाने का संकल्प लिया है और इससे वह बखूबी कर रहे हैं।
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बाबू भाई नरसिंहपुर में रहते हैं पर खेती बाड़ी ग्राम समनापुर में है। लगभग 20 - 22 किमी दूर पर रोज आने जाने और आसपास के गांव में भ्रमण करने के दौरान उन्हें अगर कोई बच्चा तपती दुपहरी में या किसी वक्त ही नंगे पैर दिखता है तो वह अपनी गाड़ी रोकते हैं गाड़ी में स्टॉक करके रखे जूते या चप्पल उसके नाप की निकालते हैं और उसे पहना देते हैं। इसके अलावा, कभी किसी बच्चे को टॉफी दे देते हैं तो कभी किसी बुजुर्ग को बिस्किट का पैकेट पकड़ा देते हैं ,आगे बढ़ जाते हैं।
हाल ही में वह किसी गांव में एक जगह रुक कर आसपास के ऐसे बच्चों को बुला लेते हैं और उन्हें उनकी उम्र और उनके पैर की नाप के मुताबिक जूते चप्पल पहना रहे हैं, हालांकि यह सब गुमनामी में हो रहा है, वह किसी को इस तरह के कार्यों के बारे में बतलाते नहीं हैं। जानने वाले लोग जरूर यह कहते हैं कि वह हर साल इस तरह कोई न कोई नेक कार्य का व्रत या संकल्प रखते हैं।
अग्निवीरों की भी की थी खातिरदारी
कुछ वर्षों पहले जब नरसिंहपुर जिले में सेना की भर्ती चल रही थी तो मध्यप्रदेश के आने वाले कई युवकों को ठहरने और उन्हें भोजन देने का नेक कार्य भी उन्होंने कई हफ्ते यहां किया। उनकी नेकी ऐसे लोगों के लिए भी एक सीख है जो गाहे बगाहे थोड़े कार्यों या दान का बढ़-चढ़कर दिखावा करते हैं, पर बाबू भाई चुपचाप का नेकी का जज्बा निभा रहे हैं।