संजय गुप्ता, INDORE. भूमाफिया चंपू उर्फ रितेश अजमेरा, हैप्पी धवन 14 माह से सुप्रीम कोर्ट से मिली सशर्त जमानत के आधार पर बाहर घूम रहे हैं। जमानत की शर्त यही थी कि वह कॉलोनियों के पीड़ितों को उनका हक वापस देंगे। जिला प्रशासन की कमेटी भी बनी लेकिन आधे से ज्यादा को आज तक ना प्लाट मिला और ना ही राशि मिली। इस पूरे मसले ने जिला प्रशासन की चली भूमाफिया अभियान की पोल खोलकर रख दी है। वहीं पीडितों का साफ कहना है कि हम भटकते रहे, लेकिन अधिकारी मिले ही नहीं और मिले भी तो दबाव यही बनाया कि जो मिल रहा है ले लो, दस साल पहले दी गई राशि ही ले लो, जबकि जमीन के भाव तीन गुना हो चुके हैं, ना बैकं ब्याज मिल रहा था ना ही प्लाट। अब इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के आदेश से हाईकोर्ट की इंदौर बैंच में दो फरवरी को सुनवाई होना है। इसमें जिला प्रशासन की ओर से अपर कलेक्टर डॉ.अभय बेडेकर को कोर्ट आने के लिए कहा गया है।
पहले समझते हैं क्या है मामला
भूमाफिया चंपू अजमेरा और उसकी पत्नी योगिता अजमेरा, भाई नीलेश अजमेरा और पत्नी सोनाली अजमेरा, चिराग शाह, हैप्पी धवन और अन्य ने 12-15 साल पहले कई कॉलोनियां काटी। इसमें कालिंदी गोल्ड, सेटेलाइट हिल्स और फिनिक्स टाउनशिप मुख्य विवादित रही। इसमें एक ही प्लाट कई लोगों को बेचा जाना, जो प्लाट है ही नहीं उसके सौदे करना, किसानों को भुगतान किए बिना ही उसकी जमीन पर प्लाट कटे बताना, रसीद देकर प्लाट बुकिंग की राशि लेने जैसे मामले थे। कई पीड़ितों ने थानों मे केस कराया, इसमें चंपू अजमेरा, हैप्पी धवन गिरफ्तार हुए, वहीं चिराग शाह, नीलेश अजमेरा आज तक फरार है। हालांकि वह मोबाइल पर सभी अपने लोगों से संपर्क में रहते हैं। सुप्रीम कोर्ट में मामला पहुंचा, जहां 26 नवंबर 2021 में सशर्त सभी को जमानत मिली की वह पीड़ितों को हक दिलाएंगे। जिला प्रशासन को नोडल बनाया गया। तत्कालीन कलेक्टर मनीष सिंह और अन्य अधिकारी सभी जेल में भी गए और भूमाफियाओं ने वादा किया कि पीड़ितों को उनका हक देंगे। इसी आधार पर जमानत हुई। करीब ढाई सौ पीड़ित प्रशासन के सामने आए, इसमें कुछ लोग रजिस्ट्री वाले थे बाकी अधिकांश रसीद पर प्लाट बुक करने वाले थे, जिन्होंने पेमेंट कर दिया था। बाद में सुप्रीम कोर्ट में कई लोगों के सीधे पहुंचने के बाद कि उन्हें न्याय नहीं मिला, मामला हाईकोर्ट इंदौर बैंच को सौंपा गया कि वह डील करे। सभी व्यक्तिगत पीड़ितों को देखें, जरूरी लगे तो रिटायर हाईकोर्ट जज की अध्यक्षता में कमेटी बनाएं और यदि आरोपी सहयोग नहीं करें तो जमानत रद्द करने पर फैसला करें। इसी आधार पर अब इंदौर हाईकोर्ट में सुनवाई हो रही है, जिसमे कई पीडित भी पार्टी बनकर वहां पहुंच गए हैं।
पीड़ितों को चेक नंबर और राशि लिख निराकरण बताया, उन्हें मिले ही नहीं
द सूत्र के पास कालिंदी गोल्ड के पीड़ितों के कुछ लोगों की सूची आई है। इस सूची में पीड़ित के नाम के आगे उसे दिए गए चेक नंबर, राशि का जिक्र लिखकर केस का निराकरण होना बताया गया है। लेकिन जब इस सूची के लोगों से बात की गई तो उन्हें आज तक कोई चेक नहीं मिला है। उन्होंने चेक देखा तक नहीं, फिर यह चेक कहां चले गए? यह चेक इंदौर स्वयंसिद्ध महिला कोआपरेटिव बैंक से जारी हुए हैं, जो मुख्य रूप से हैप्पी धवन द्वारा जारी हुए हैं। सूत्रों के अनुसार यह चेक केवल कागजों पर जारी हुए हैं। इसी आधार पर पीड़ितों के निराकरण बता दिए गए, जबकि खाते से एक राशि भी पीड़ितों के खाते में नहीं गई, उनके हाथ में तो यह चेक भी नहीं पहुंचे हैं।
पीड़ितों के नाम, चेक नंबर जो उन्हें मिले ही नहीं
- विनीत- चेक राशि 15.75 लाख रुपए, चेक नंबर 301227
पीड़ितों ने द सूत्र से यह कहा-
- विनीत बताते हैं कि 90 फीसदी राशि चेक से दी थी, एनआरआई खाते से। तीन प्लॉट थे। हैप्पी धवन, चिराग, नीलेश अजमेरा शामिल थे इस बिक्री में। 12 साल हो गए, एक रुपए भी नहीं मिला।
यह तीन कॉलोनियां थी, जिसमें सामने आए थे पीड़ित
- कालिंदी गोल्ड- यह इंदौर और उज्जैन रोड पर भांग्या गांव के पास स्थित है। यह मुख्य रूप से चिराग शाह और हैप्पी धवन से जुड़ी रही है। इसमें 96 पीड़ित सामने आए थे। इसमें 34 के पास रजिस्ट्री भी थी।
फोनिक्स डेवकांस कंपनी का डायरेक्टर चार्ट बताता है सभी भूमाफिया एक ही थैली के चट्ठे है
द सूत्र के पास हाथ आए फोनिक्स डेवकांस प्रालि के चार्ट से साफ है कि क्या चंपू, क्या चिराग और क्या नीलेश अजमेरा, सभी भूमाफिया एक ही थैली के चट्ठे-पट्ठे हैं। कंपनी में नीलेश अजमेरा 24 सितंबर 2007 में डायरेक्टर बने। उनकी पत्नी सोनाली भी इसी दिन डायरेक्टर बनी, चंपू अजमेरा, उसकी पत्नी योगिता और पिता पवन अजमेरा तीनों 30 सितंबर 2008 को कंपनी में डायरेक्टर बने। चिराग शाह भी इसी दिन डायरेक्टर नियुक्त हुए। निकुल कपासी फरवरी 2013 में डायरेक्टर बने।
तीनों कॉलोनियों में पीड़ितों को कुछ हाथ नहीं आया
कालिंदी गोल्ड- मामले में पीडितों को पता ही नहीं और उनके नाम पर चेक जारी होकर मामला निराकृत होना बताया जा रहा है। वहीं राशि भी जो दी जा रही है, वह 12 साल पुरानी ही राशि देने की बात कही जा रही है। कुछ पीड़ितों को चेक मिले भी तो या तो वह बाउंस हो गए या फिर उनके पेमेंट को ही स्टाप करा दिए गए। एक पीड़ित को कालिंदी गोल्ड में 11 लाख रुपए देना तय हुआ, चेक दिया लेकिन स्टाप करा दिया गया। उसे साढ़े तीन लाख रुपए नकद दिए गए, बाकि राशी के लिए वह अभी तक भटक रहे हैं।
फोनिक्स टाउनशपि- इसमें कुछ लोगों को नपती कर प्लाट पर कब्जा दिया गया, लेकिन केवल कब्जा दिया गया, नए सिरे से रजिस्ट्री नहीं हुई। वहीं कुछ लोगों को राशि मिली, लेकिन वही राशि थी जो उन्होंने बुकिंग के समय दी थी, बैंक ब्याज भी नहीं मिला, लेकिन राशि मिल गई। यही सोचकर उन्होंने विवाद खत्म कर निराकृत होने का पत्र प्रशासन को सौंप दिया। इस कॉलोनी में भी बैंक का विवाद है लिक्विडेटर है, इसकी मंजूरी के बाद ही प्लाट की रजिस्ट्री होगी।
सेटेलाइट हिल्स- यहां अलग कहानी चल रही है। इस जमीन के कुछ हिस्से पर कैलाश चंद गर्ग ने 40 करोड़ का लोन लिया (हालांकि बैंक लोन ज्यादा राशि है लेकिन जानकारों के अनुसार सेटेलाइट की पूरी जमीन गिरवी नहीं रखकर केवल कुछ हिस्सा ही रखा गया बाकि गर्ग की अन्य संपत्ति के पेठे लोन था)। चंपू और गर्ग के इस विवाद के चलते पीड़ितों के हाथ में कुछ नहीं आया। वहीं सूत्रों के अनुसार यहां चंपू ने नए सिरे से रिलांच कर इसमें पीडितों को प्लाट दिए बिना ही यहां नए सिरे से प्लाट कि बुकिंग और बिक्री शुरू कर दी है।