INDORE. इंदौर-5 विधानसभा सीट वो क्षेत्र है जहां से न केवल इंदौर की जनता बल्कि इंदौर के नेता भी अपने शुभ काम की शुरुआत करते हैं। दरअसल विश्व प्रसिद्ध खजराना गणेश मंदिर इसी विधानसभा सीट में आता है। इंदौर-5 विधानसभा क्षेत्र पूर्वी इंदौर का वो इलाका है जो सबसे आधुनिक है। इसे आप पब और मॉल का शहर भी कह सकते हैं। खाने-पीने के लिए फेमस छप्पन दुकान भी इंदौर-5 का हिस्सा है। सबसे ज्यादा ब्रिज कहीं हैं तो वो इसी इलाके में हैं।
सियासी मिजाज
इंदौर-5 विधानसभा सीट 1977 में अस्तित्व में आई। इससे पहले ये इंदौर पूर्व और इंदौर सीट का हिस्सा थी। उस समय इंदौर की आबादी उतनी नहीं थी जितनी आज है। जैसे-जैसे इंदौर का विस्तार हुआ विधानसभा सीटें भी बढ़ती चली गईं। 1977 में यहां से सुरेश सेठ ने कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ा और जीत दर्ज की। इसके बाद हुए दो चुनाव यानी 1980 और 1985 का चुनाव भी सुरेश सेठ जीते। हालांकि 1985 का चुनाव वो निर्दलीय जीते थे। 1990 के चुनाव में फिर कांग्रेस के आलोक शुक्ला जीते लेकिन 1993 में पहली बार बीजेपी के भंवर सिंह शेखावत ने यहां से जीत दर्ज की। 1998 में कांग्रेस के सत्यनारायण पटेल ने फिर से ये सीट छीन ली लेकिन 2003 के चुनाव में महेंद्र हार्डिया ने यहां से पहली बार चुनाव जीतकर बीजेपी की जीत का जो सिलसिला शुरू किया वो 2018 तक जारी है।
जातिगत समीकरण
बीजेपी भले ही 20 साल से चुनाव जीत रही है लेकिन जीत का अंतर सांसें अटकाने वाला होता है उसकी वजह है जातिगत समीकरण। इस सीट पर 70 हजार मुस्लिम मतदाता है। जो कहीं न कहीं कांग्रेस उम्मीदवार के पक्ष में मतदान करते हैं। बाकी समुदाय जिसमें ब्राह्मण करीब 30 हजार जैन करीब 20 हजार और एससी-एसटी 70 हजार मतदाता है वो बीजेपी और कांग्रेस दोनों के बीच बंट जाते हैं। इसलिए इस सीट पर हार-जीत का अंतर मामूली वोटों से होता है। खास बात ये है कि पूरे प्रदेश में सबसे ज्यादा करीब 4 लाख मतदाता इंदौर-5 से है।
टिकट के लिए जोर-आजमाइश कर रहे नए चेहरे
बीजेपी और कांग्रेस के नए चेहरे इसलिए कहा जा रहा है क्योंकि महेंद्र हार्डिया 4 बार चुनाव जीत चुके हैं। हार्डिया अब उम्र के उस क्राइटेरिया में शामिल हो रहे हैं जहां बीजेपी टिकट देने से परहेज करती है और हार्डिया का स्वास्थ्य भी अब उन्हें चुनाव लड़ने की इजाजत नहीं दे रहा है। दूसरी तरफ कांग्रेस के सत्यनारायण पटेल भी यहां से 3 बार चुनाव लड़ चुके हैं लेकिन हर बार उन्हें हार का सामना करना पड़ता है। इसलिए इस बार कुछ नए चेहरे भी जोर-आजमाइश कर रहे हैं। उनमें से एक चेहरा स्वप्निल कोठारी का है। पेशे से एजुकेशनिस्ट स्वप्निल कोठारी कांग्रेस के प्रदेश उपाध्यक्ष हैं और क्षेत्र में सक्रिय हैं। हालांकि दोनों ही नेता टिकट देने या न देने का फैसला पार्टी पर छोड़ते हैं।
इंदौर-5 विधानसभा क्षेत्र के मुद्दे
इंदौर-5 विधानसभा सीट को आधुनिक इंदौर कहा जाता है लेकिन आधुनिकता के साथ साथ अवैध कॉलोनियों की भी यहां भरमार है। सहकारी सोसाइटियों के फर्जीवाड़े की जितनी कहानियां हैं वो सब इंदौर-5 में ही समाई हुई हैं।
- इंदौर विधानसभा-5 में अवैध कॉलोनियों की भरमार
पानी और ड्रेनेज की बड़ी समस्या
इसके अलावा ट्रैफिक की समस्या यहां हुआ करती थी लेकिन इस बार शायद ये मुद्दा नहीं उठे क्योंकि यहां ओवर ब्रिज की वजह से ट्रैफिक का दबाव कम हो चुका है। वहीं पानी और ड्रेनेज की समस्या भी एक बड़ी समस्या है। इन तमाम समस्याओं को लेकर बीजेपी और कांग्रेस के जनप्रतिनिधियों की अपनी अपनी दलीलें हैं।
- हमने साफ-सफाई को लेकर काम किया-बीजेपी
द सूत्र ने जब इस क्षेत्र के लोगों, गणमान्य नागरिकों और हारे हुए उम्मीदवारों से मुद्दों के बारे में पूछा तो कुछ ये मुद्दे निकलकर सामने आए।
- 2018 से लेकर 2022 तक कौन से बड़े विकास काम हुए ?
द सूत्र ने यहां से चुनाव लड़ने की संभावना तलाश रहे स्वप्निल कोठारी से बात की तो उन्होंने भी कहा कि काम हुआ है लेकिन गुजांइश बहुत है। इन मुद्दों को लेकर जब द सूत्र ने विधायक महेंद्र हार्डिया से बात की तो उन्होंने सिलसिलेवार इन सवालों का जवाब दिया।
- विधायक महेंद्र हार्डिया ने गिनाए अपने काम
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