INDORE. इंदौर में जहां चार-पांच सालें में ही जमीन (land) की कीमतें बढ़ जाती हैं, वहां एक जमीन की कीमत बढ़ने की जगह और घट गई। ये जमीन हुकमचंद मिल (Hukamchand Mill) की है। इस जमीन से कई लोगों को मुआवजे (compensation) की आस है। मजदूर इस आशा में बैठे हैं कि जमीन बिकें तो उन्हें उनका हक मिले। इस मामले की हाईकोर्ट (High Court) में सुनवाई चल रही है। डीआरटी यह बताने की स्थिति में नहीं है कि जिस 42 एकड़ जमीन की कीमत उसने छह साल पहले 400 करोड़ रुपए आंकी थी, वह लैंडयूज महंगी होने की जगह और सस्ती कैसे हो गई। डीआरटी ने इस जमीन को औद्योगिक की जगह आवासीय लैंडयूज होने के बाद, इसकी कीमत 385 करोड़ रुपए आंकी है।
हाईकोर्ट से डीआरटी ने मांगा समय
डीआरटी (DRT) ने इसका जवाब देने के लिए एक बार फिर हाईकोर्ट से समय मांग है। 6 साल पहले जमीन की नीलामी के लिए निकाले गए टेंडर में 400 करोड़ रुपए जमीन का मूल्य बताया गया था। इसके बाद हाल ही में निकाले टेंडर में यह न्यूनतम कीमत तय हुई है। इसको लेकर लगी आपत्ति पर हाईकोर्ट ने मिल की नीलामी पर 25 जुलाई तक रोक लगा रखी है।
1991 से परेशान है मजदूर
मिल को प्रबंधन ने दिसंबर 1991 में बंद कर दिया था। तभी से 5895 मजदूर अपने बकाया और ग्रेजुएटी भुगतान के लिए भटक रहे हैं। साल 2007 में मिल की जमीन बेचकर यह भुगतान करने के निर्देश कोर्ट ने दिए थे लेकिन तभी से जमीन बिकने में अड़चनें आ रहीं हैं। अब बिकने की प्रक्रिया शुरू हुई तो कम वैल्यूशन ने समस्या पैदा कर दी।