संजय गुप्ता, INDORE. बीजेपी में चल रही उथल-पुथल के दौरान पार्टी के अंदर कई लोगों का दर्द धीरे-धीरे बाहर आ रहा है। विधानसभा तीन के विधायक आकाश विजयवर्गीय कहते हैं कि बीजेपी कार्यकर्ताओं की पार्टी है, लेकिन उन्हें जिस तरह पार्टी में 5 साल काम करके विधायकी का टिकट मिला, ऐसा इंदौर में कितने लोगों को टिकट मिला? पूर्व प्रदेश प्रवक्ता उमेश शर्मा ने जिंदगी खपा दी और पार्टी से पद, सम्मान मिलने की आरजू लिए हुए ही दुनिया से विदा हो गए। उधर कई नेता ऐसे हैं जिनके पास केवल एक बड़े नेता के परिवार से होने के चलते टिकट आ गया, चाहे इसमें आकाश का नाम हो, या फिर खुद मालिनी गौड़ का जो पति लखन दादा के निधन के बाद राजनीति में आई। इसी तरह मनोज पटेल की बात करें तो देपालपुर से वह साल 2003 से ही लगातार लड़ रहे हैं, इसके पहले उनके पिता निर्भय सिंह पटेल इस सीट से बीजेपी से लड़ रहे थे, जनसंघ के समय से एक मैदानी नेता रहे।
इन पार्टी नेताओं को नहीं मिला बड़ा पद
उमेश शर्मा- बीजेपी में प्रवक्ता और वक्ता रहे, लेकिन पार्टी ने उन्हें कभी बड़ा पद नहीं दिया और ना ही विधायकी के टिकट के योग्य समझा गया। गुजरात चुनाव प्रचार से लौटे ही थे कि सितंबर माह 2022 में हार्ट अटैक से निधन हो गया।
कैलाश शर्मा- बीजेपी में नगराध्यक्ष और नगर निगम में पूर्व सभापति भी रहे। हिंदूवादी नेता के रूप में मजबूत छवि रही। लेकिन पार्टी ने कभी विधानसभा का टिकट नहीं दिया। कर्मठ नेता के रूप में माने जाते हैं।
बाबूसिंह रघुवंशी- सालों से पार्टी के लिए, एक बार लघु उद्योग निगम के अध्यक्ष रहे, लेकिन कभी इन्हें टिकट नहीं दिया गया। कई बार टिकट के लिए इन्होंने दावेदारी की, लेकिन सफलता नहीं मिली। बाबू दादा के नाम से पूरी पार्टी में पहचान रखते हैं।
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मुकेश राजावात- युवा मोर्चा में नगराध्यक्ष रहे, इंदौर नगर का महामंत्री भी। पार्टी के लगातार काम कर रहे हैं, लेकिन अभी तक तो कोई बड़ा पद नहीं मिला।
जयदीप जैन- नगर उपाध्यक्ष भी रहे हैं, नगर की टीम में काम संभाला, एक बार पार्षद रहे, लेकिन इससे ज्यादा कुछ नहीं मिला।
राधेश्याम यादव- महू में पुराने बीजेपी नेता है, एक लंबा समय पार्टी और संघ में हो गया लेकिन कोई पद व टिकट नहीं मिला। महू में तीन बार से इंदौर शहर के नेताओं (दो बार कैलाश विजयवर्गीय और एक बार उषा ठाकुर) को वहां से टिकट दिया गया।
इकबाल सिंह गांधी- सांवेर के नेता रहे हैं, काफी काम किया, लेकिन पार्टी ने उन्हें सांवेर से कुछ नहीं दिया। सांवेर से कई चुनाव संभाले, लेकिन जब सांवेर से कुछ नहीं मिला तो अब उज्जैन शिफ्ट हो गए और वहां की राजनीति कर रहे हैं।
अंजू माखीजा- पूर्व स्पीकर सुमित्रा महाजन के खास, लेकिन लंबे समय तक पार्टी में काम करने के बाद भी कोई पद नहीं मिला।
दिनेश शुक्ला- विधानसभा एक के पुराने कार्यकर्ता, एक बार पत्नी को पार्षद का टिकट मिला, चुनाव का संचालन कई बार किया, लेकिन कोई बड़ा पद नहीं ले पाए।
ईश्वर बाहेती- उद्योगपति के साथ ही पार्टी के लिए सालों से काम करते हैं। मुख्य तौर पर विधानसभा तीन में सक्रिय लेकिन पार्टी से कभी कोई बड़ा पद नहीं मिला है।