योगेश राठौर, INDORE. उत्तर प्रदेश के सीएम योगी आदित्यनाथ ने हाल ही में आह्वान किया है कि निजी स्वार्थ को छोड़कर सनातन धर्म को चुनो, इसी से जुड़कर देश का विकास होगा, यही देश का राष्ट्रीय धर्म है, अब रविवार (29 जनवरी) को इंदौर में भी स्वीकार किया गया। सिंधी समाज की हुई धर्म संसद में सभी संतों ने प्रस्ताव पास किया है कि हम सभी सिंधी सनातनी है और सनातनी ही रहेंगे। महामंडलेश्वर सांई महाराज ने सभी से संकल्प दिलवाया कि जो माई का बच्चा है वो संकल्प लेगा कि मैं सनातनी हूं, सनातन का पालन करूंगा। उनके आह्वान पर सभी ने एकसुर में सनातनी होने का संकल्प लिया। वहीं सिख समाज को संदेश दिया कि वो अपने दरबार में केवल गुरू ग्रंथ साहिब रखने की मांग और निहंगों की चेतावनी को स्वीकार नहीं करेंगे। हम गुरू ग्रंथ साहिब को भी मानते हैं तो श्रीराम को भी पूजते हैं, श्रीकृष्ण को भी और भागवद गीता को भी। हम सनातनी है और सभी की पूजा करते हैं।
ग्रुरू ग्रंथ साहिब सिखों का है यह कहां लिखा है- महामंडलेश्वर
महामंडलेश्वर सांई महाराज बोले कि- श्रीगुरू ग्रंथ साहिब सिखों का है क्या? कहां लिखा हुआ है, यह संत, ग्रंथ और नेता किसी का नहीं होता, यह देश की धरोहर है। संस्कृतियों के लिए प्रधानमंत्री चिंतित है, इस तरह वो खत्म हो जाएगी। हमने कहा उनसे कहा कि एक दिल, एक संस्कृति खत्म हो जाएगी, सिंधी संस्कृति, हमने आहवान किया है कि बचाओ हमारी संस्कृति को, यह गलत बयानबाजी हो रही है, उन नेताओं से भी पूछो जब वह बडे बड़े आह्वान कर देते हैं।
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यह विवाद बेवजह का
महामंडलेश्वर सांई महाराज ने द सूत्र से चर्चा में कहा कि यह विवाद बेवजह का है हम तो 12 जनवरी को अखिल भारतीय सिंध समाज ने सभी ग्रुरू ग्रंथ साहिब ससम्मान लौटाने का फैसला ले चुके हैं, क्योंकि हम सभी सनातनी है। हम गुरुद्वारे में यह दे रहे हैं। अकाल तख्ता का भी जत्था आ रहा है, उनसे और बात होगी। सिंधी केवल सिख नहीं है, वह सनातनी है। यही अजर है यही सत्य है। यह सनातन धर्म सभा थी, हम सभी के हैं और सभी हमारे हैं। इस देश में संत नहीं बोलेगा तो कौन बोलेगा, मैं किसी के खिलाफ नहीं हूं।
आयोजक बोले विवाद में सिख भाईयों की गलती थी
आयोजक रवि भाटिया ने कहा कि गुरू ग्रंथ साहिब के विषय में जो बातें आई थी, उस पर भी चर्चा हुई है। यही कहा कि गुरू ग्रंथ साहिब जो हमने वापस किए हैं, उसमें कुछ सिख भाईयों की गलती थी, तलवार खोलकर जिस तरह से सिंध मंदिर में जाकर इस तरह बातचीत की वह रवैया गलत था, हम अनादि काल से ग्रुरू ग्रंथ साहिब की पूजा करते हैं, लेकिन हम साथ ही भगवान राम-कृष्ण की पूजा करते हैं और भगवान झूलेलाल को भी पूजते हैं। निहंग भाईयों का यह कहना कि जहां गुरू ग्रंथ साहिब विराजित है, वहां अन्य मूर्ति या ग्रंथ नही रख सकते तो इस पर सांई महाराज का कहना था कि हम सनातनी है, तो हम सभी को मानते हैं और सालों से दरबार, मंदिरों में सभी की पूजा करते आए हैं।
यह है सनातन धर्म
वैदिक काल में भारतीय उपमहाद्वीप के धर्म के लिए 'सनातन धर्म' नाम मिलता है। 'सनातन' का अर्थ है- शाश्वत या 'सदा बना रहने वाला', अर्थात जिसका ना आदि है ना अन्त। यह मूल रूप से भारतीय धर्म है, जो किसी समय पूरे बृहत्तर भारत (भारतीय उपमहाद्वीप) तक व्याप्त रहा है। इसका 6000 साल का इतिहास हैं। भारत (और आधुनिक पाकिस्तानी क्षेत्र) की सिन्धु घाटी सभ्यता में हिन्दू धर्म के कई चिह्न मिलते हैं। एकता बनाए रखने के उद्देश्य से धर्मगुरुओं ने लोगों को यह शिक्षा देना आरंभ किया कि सभी देवता समान हैं, विष्णु, शिव और शक्ति आदि देवी-देवता परस्पर एक दूसरे के भी भक्त हैं। उनकी इन शिक्षाओं से सभी सम्प्रदायों में मेल हुआ और सनातन धर्म की उत्पत्ति हुई। सनातन धर्म में विष्णु, शिव और शक्ति को समान माना गया और तीनों ही सम्प्रदाय के समर्थक इस धर्म को मानने लगे। सनातन धर्म का सारा साहित्य वेद, पुराण, श्रुति, स्मृतियाँ, उपनिषद्, रामायण, महाभारत, गीता आदि संस्कृत भाषा में रचा गया है।
धर्म संसद में सभी संत नहीं पहुंचे, ना समाज की भीड़ जुटी
उधर धर्मसंसद को लेकर देखने में आया कि कई संतों ने इससे दूरी बनाए रखी। विवादों के बीच शांति से गुरू ग्रंथ साहिब दरबारों से ससम्मान गुरु सिंघ सभा को वापस लौटाने में भूमिका निभाने वाले समाजसेवी प्रकाश राजदेव को भी इससे दूर रखा गया, इससे भी समाज में नारजगी है। समाजसेवी किशोर कोडवानी की भी पांचों मांगों को लेकर कोई खास प्रस्ताव पास नहीं हुए।
'धर्मसंसद में हजारों लोग भी नहीं जुटे'
समाज में भी जिस तरह से प्रचारित किया जा रहा था कि इसमें हजारों लोग जुटेंगे, वैसा नजर नहीं आ रहा है। समाज के विविध सोशल ग्रुप को लेकर लगातार आलोचना हो रही है। विविध ग्रुप पर चल रहा है कि एक हजार समाजजन भी जमा नहीं हुए, केवल नौ राष्ट्रीय पधारे, ब्राह्मण नहीं पहुंचे सनातन धर्म सभा में। भगवान झूलेलाल का चित्र, अलख ज्योत जल कलश भी स्थापित नहीं किया गया। एक संदेश यह भी चला कि सिंधी पंचायत व्यवस्था का महामंडलेश्वर हंसराम जी महाराज ने अपमान किया है और इनके मुखियों को नामर्द तक कहा।