इंदौर के सिविल सर्जन डॉ. गोयल मुश्किल में, 181 दिन की छुट्‌टी को लेकर जांच रिपोर्ट कार्रवाई के लिए फिर गई भोपाल

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इंदौर के सिविल सर्जन डॉ. गोयल मुश्किल में, 181 दिन की छुट्‌टी को लेकर जांच रिपोर्ट कार्रवाई के लिए फिर गई भोपाल

संजय गुप्ता, INDORE. इंदौर के सिविल सर्जन डॉ. प्रदीप गोयल एक बार फिर मुश्किल में हैं। साल 2017 से ही उनके खिलाफ एक शिकायत पर कार्रवाई की मांग चली आ रही है। इस मामले में अब इंदौर संभागायुक्त कार्यालय की ओर से मप्र संचालनालय स्वास्थ्य सेवा को पत्र गया है और साथ ही उनके खिलाफ आई जांच रिपोर्ट भी संलग्न की गई है। साथ ही कहा गया है कि साल 2017 में ही मामले में जांच कराकर प्रतिवेदन अपर संचालक (शिकायत) संचालनालय स्वास्थय सेवाएं, भोपाल को भेजा जा चुका है। सभी पत्रों के साथ एक बार फिर यह रिपोर्ट सात दिन पहले संभागायुक्त दफ्तर से भोपाल कार्रवाई के लिए भेजी गई है। 



यह है जांच रिपोर्ट में



डॉ. गोयल का 13 जुलाई 2012 को अंधत्व निवारण कार्यक्रम से जिला चिकित्सालय धार में ट्रांसफर हो गया था, लेकिन उन्होंने ज्वाइन करने की जगह अगस्त में छुट्‌टी का आवेदन दे दिया। छह सितंबर 2012 से 15 मार्च 2013 तक कुल 181 दिन तक वह अवकाश पर रहे। यह अवकाश अवैतनिक था। मप्र शासन ने छह जून 2013 को उनका अवैतनिक अवकाश मंजूर कर लिया। क्योंकि ट्रांसफर के नियम के अनुसार ट्रांसफर अवधि में अवकाश स्वीकार नहीं है, यदि अपहिरार्य कारण से लेते हैं भी हैं तो केवल चिकित्सा कारण से ही अवकाश मान्य है और इसके लिए भी संभागीय मेडिकल बोर्ड का सर्टिफिकेट लगेगा। डॉ. गोयल ने इस दौरान जिला मेडिकल बोर्ड का सर्टिफिकेट लगाय था। बाद में डॉ. गोयल ने लगातार भोपाल स्तर पर संपर्क किया, चिट्‌ठी लिखी, इसके बाद तत्कालीन क्षेत्रीय संचालक डॉ. एसएल पोरवाल ने मार्च 2017 में जाकर उनके अवैतनिक (यानि बिना वेतन वाले) अवकाश को वैतनिक अवकाश में बदल दिया। साथ ही छह जून 2013 को उनके अवैतनिक अवकाश मंजूरी के आदेश को रद्द कर दिया। 



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जांच रिपोर्ट में अवकाश वैतनिक करना गलत पाया गया



इसके बाद इस मामले में मप्र स्वास्थ्य कर्मचारी संघ द्वारा व अन्य शिकायतकर्ताओं द्वारा इसे लेकर शिकायतें की गई। इसके बाद संयुक्त संचालक डॉ. जेएस अवास्या की अध्यक्षता में जांच कमेटी बनाई गई। इस कमेटी ने सभी के बयान और दस्तावेजों के आधार पर पाया कि डॉ. पोरवाल द्वारा डॉ. गोयल के अवकाश को वैतनिक में बदलना गलत था, उन्होंने संचालनालय के आदेश की अवहेलना कर गलत आदेश जारी किया और अवैतनिक अवकाश मंजूरी आदेश रद्द करना गलत था। जांच रिपोर्ट के बाद यह पत्र भोपाल आगे कार्रवाई के लिए भेज दिया गया। हैरत की बात है कि छह साल से यह मामला भोपाल स्तर पर लंबित है। अब फिर शिकायतें होने और सूचना का अधिकार लगने पर यह बात सामने आई कि जांच रिपोर्ट व सभी पत्रों को फिर भोपाल भेजा गया है।

 


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