इंदौर के चित्रकार दीनानाथ भार्गव ने संविधान का पहला पेज बनाने में दिया था योगदान, अब ननि चौराहे पर किताब के साथ लगाएगा उनकी फोटो

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Vijay Choudhary
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इंदौर के चित्रकार दीनानाथ भार्गव ने संविधान का पहला पेज बनाने में दिया था योगदान, अब ननि चौराहे पर किताब के साथ लगाएगा उनकी फोटो

संजय गुप्ता, INDORE. आज ही के दिन 26 जनवरी 1950 को हमारे देश का संविधान लागू हुआ था। संविधान बनाने में जहां महू में जन्मे डॉक्टर भीमराव आंबेडकर का सबसे ज्यादा योगदान था तो इसका पहला पन्ना बनाने में इंदौर के चित्रकार दीनानाथ भार्गव का भी योगदान था। उनका निधन साल 2016 में होने के बाद अब सात साल बाद नगर निगम को उनके कामों की याद आई है, तय किया गया है कि मूसाखेड़ी चौराहे पर एक आईलैंड गार्डन पर अशोक स्तंभ, संविधान की किताब के साथ उनका भी फोटो लगाएंगे। 



पहले पन्ने पर गिर गई थी स्याही, वह परिवार के पास



संविधान के पहले पेज की डिजाइन के लिए भार्गव को 1949 में 12 हजार रुपए मिले थे। संविधान के कवर के लिए जो पहला पेज लेदर पेपर पर तैयार किया जा रहा था, तब स्याही का ब्रश उस पर गिर गया था। इस वजह से उसकी जगह भार्गव ने दूसरा पेज तैयार किया था, जो संविधान की किताब में लगाया गया। पहले पेज पर बने अशोक स्तंभ को तैयार करने के लिए सोने के वर्क की स्याही का इस्तेमाल किया गया था। ऐसे में जिस पेज पर ब्रश की स्याही गिर गई थी उसे दीनानाथ भार्गव ने संभालकर रखा था। आज भी ये पेज इंदौर में भार्गव के परिवार ने सहेजकर रखा है।



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12 होनहार छात्रों में से एक थे भार्गव



1949 में दीनानाथ भार्गव शांति निकेतन में ललित कला के छात्र थे, तब उन्हें संविधान का प्रथम पेज और पन्नों की आउटलाइन तैयार करने वाले दल में शामिल किया गया था। तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने संविधान की मूल प्रति को चित्रों से सजाने का जिम्मा शांति निकेतन को दिया था। तब वहां के कला भवन के प्राचार्य नंदलाल बोस ने संविधान के सभी पन्नों पर आउटलाइन और मेन पेज तैयार करने के लिए 12 होनहार छात्रों को चुना था। उनमें से भार्गव भी एक थे। बोस ने उन्हें राष्ट्रीय प्रतीक चिह्न बनाने की जिम्मेदारी सौंपी थी। 



परिवार ने कहा लंबे समय से हम कर रहे थे मांग



मेयर इन कौंसिल की बैठक में नामकरण के लिए स्वीकृति मिल चुकी है। दीनानाथ भार्गव के बेटे सौमित्र भार्गव ने कहा कि हम लंबे समय से जिला प्रशासन और नगर निगम से मांग कर रहे थे कि हमारे पिताजी के विशेष योगदान को लेकर शहर मे किसी यूनिवर्सिटी, मार्ग का नाम या उद्यान का नामकरण करें। महापौर पुष्यमित्र भार्गव से भी इस संबंध में मुलाकात हुई थी और उन्होंने इस दिशा में कदम उठाया।


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