भोपाल। इंदौर में एक आरटीआई एक्टिविस्ट के खिलाफ डराने-धमकाने और ब्लैकमेलिंग करने के आरोप में एफआईआर दर्ज कराने के निर्देश को लेकर कलेक्टर मनीष सिंह और सूचना आयुक्त राहुल सिंह (Rahul singh) आमने-सामने आ गए हैं। इंदौर जिला प्रशासन के फैसले पर सवाल उठाते हुए राहुल सिंह ने कहा है कि ब्लैकमेल करना आपराधिक कृत्य है। इसके खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए। लेकिन इसके साथ ही सूचना के अधिकार (Right to information) के तहत उस जानकारी को भी प्रशासनिक पारदर्शिता के मापदंड के तहत पब्लिक प्लेटफॉर्म पर सार्वजनिक किया जाना चाहिए। जिसके लिए किसी अधिकारी को ब्लैकमेल किए जाने का आरोप या शिकायत की गई है।
कलेक्टर- मानसिक रूप से प्रताड़ित हो रहे हैं अधिकारीः उल्लेखनीय है कि इंदौर के कलेक्टर मनीष सिंह ने सोमवार, 21 फरवरी को कलेक्ट्रेट में टीएल (टाइम लाइन) की बैठक में शहर के एक आरटीआई कार्यकर्ता संजय मिश्रा के खिलाफ एक्सटॉर्शन की धारा के तहत एफआईआर (Fir on rti activist) दर्ज कराने के निर्देश एडीएम अभय बेडेकर को दिए हैं। बैठक के बाद मीडिया को फैसले की जानकारी देते हुए मनीष सिंह (Indore collector manish singh) ने बताया कि इंदौर के कई अधिकारियों ने आरटीआई एक्टिविस्ट संजय मिश्रा के खिलाफ आरटीआई की आड़ में डराने-धमकाने और ब्लैकमेल करने की शिकायत की है। उनका मानना है कि संजय मिश्रा की वजह से अधिकारी मानसिक रूप से प्रताड़ित हो रहे हैं। इनके खिलाफ पहले भी सूचना के अधिकार के तहत जानकारी मांगने के नाम पर अधिकारी-कर्मचारियों को ब्लैकमेल करने की शिकायतें सामने आ चुकी हैं। संबंधित विभाग के दो अधिकारियों की शिकायतों के आधार पर ही एडीएम को इन मामलों की जांच करने के बाद एफआईआर दर्ज कराने को निर्देशित किया है।
RTI एक्टिविस्ट से क्यों बौखलाए इंदौर के अधिकारी: कलेक्टर के इस फरमान को लेकर सूचना के अधिकार के उपयोग करने वाले कार्यकर्ताओं की तीखी प्रतिक्रिया सामने आई है। वे इसे आरटीआई एक्टिविस्ट की छवि धूमिल करने और धमकाने की कोशिश करार दे रहे हैं। इंदौर के जिस आरटीआई एक्टिविस्ट संजय मिश्रा के खिलाफ जांच और एफआईआर दर्ज कराने के निर्देश दिए गए हैं उनका कहना है कि मैंने सरकार की तबादला नीति के खिलाफ किए गए ट्रांसफर की शिकायत मुख्यमंत्री कार्यालय को की है। इसकी जांच कलेक्टर कार्यालय में लंबित है। लेकिन इस मामले की जांच कर दोषियों के खिलाफ कार्रवाई करने के बजाय उल्टे मेरे खिलाफ बेबुनियाद आरोप लगाकर मुझे बदनाम करने की कोशिश की जा रही है। मैंने जिन विभागों के अधिकारियों की शिकायत कलेक्टर के पास की है वे ही बैखलाकर मेरे खिलाफ दुष्प्रचार कर रहे हैं। ऐसा इसलिए किया जा रहा क्योंकि वे आरटीआई का उपयोग कर अनियमितताओं को उजागर करते हैं और इसकी शिकायत सरकार में वरिष्ठ अधिकारियों और मंत्रियों को करते हैं। यही बात इंदौर जिला प्रशासन के अधिकारियों को नहीं सुहा रही है। मेरे खिलाफ अवैध धन-संपत्ति अर्जित करने के आरोप लगाए जा रहे हैं। यदि प्रशासन को ऐसा लगता है तो वो मेरी प्रॉपर्टी की जांच क्यों नहीं करा लेता।
स्कूल शिक्षा विभाग से ये जानकारी मांगी तो मचा बवाल: संजय मिश्रा की जिस आरटीआई को लेकर सवाल खड़े किए जा रहे हैं दरअसल वो स्कूल शिक्षा विभाग से संबंधित है। उन्होंने यह आरटीआई 04 जनवरी 2022 को जिला शिक्षा अधिकारी इंदौर कार्यालय में दाखिल की है। इसमें उन्होंने प्रदेश सरकार की तबादला नीति 2021-22 के पालन में इंदौर के प्रभारी मंत्री से अनुमोदित तबादला सूची के आधार पर डीईओ कार्यालय द्वारा किए गए स्थानांतरण या संशोधन करने के संबंध में की गई संपूर्ण कार्यवाही से संबंधित नोटशीट, आदेश, निर्देश से संबंधित सभी दस्तावेज दिखाने का आवेदन किया है। उन्होंने संबंधित दस्तावेजों के अवलोकन के बाद चाहे गए पेजों की सत्यापित प्रतिलिपि उपलब्ध कराने को लिखा है। इंदौर जिले का प्रभार गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा के पास है।
सूचना आयुक्त- जिस सूचना के लिए ब्लैकमेल किया जा रहे हो उसे भी सार्वजनिक किया जाएः उधर इस मामले में राज्य सूचना आयुक्त राहुल सिंह का कहना है कि किसी को भी ब्लैकमेल करना आपराधिक कृत्य है। यदि कोई ऐसा करता है तो कार्रवाई होनी ही चाहिए। ऐसे मामलों में आरोपी को कड़ी से कड़ी सजी मिलनी चाहिए लेकिन साथ में आरटीआई के तहत मांगी जा रही उस सूचना को भी प्रशासनिक पारदर्शिता के मापदंड के तहत पब्लिक प्लेटफॉर्म पर सार्वजनिक कर दिया जाना चाहिए, जिसके लिए किसी को ब्लैकमेल किया जा रहा हो। यह फैक्ट भी सामने आना चाहिए कि आखिर किस प्रकार की सूचना के लिए किस किस्म के अधिकारी ब्लैकमेल होते हैं।
केंद्र का निर्देश RTI की हर सूचना वेबसाइट पर डाली जाए लेकिन कोई पालन नहीं करता: राहुल सिंह का मानना है कि कुछ चुनिंदा लोग आरटीआई का दुरुपयोग करते हैं। लेकिन हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि सिस्टम में करोड़ों-अरबों रुपयों के घोटालों का खुलासा भी आरटीआई को आधार पर ही हुआ है। आरटीआई देश का ऐसा एकमात्र कानून है जिसके दम पर समाज का अंतिम पंक्ति का व्यक्ति भी बराबरी में बैठकर प्रथम पंक्ति के किसी साहेब से अधिकारपूर्वक जानकारी मांगता है। वे स्पष्ट करते हैं कि केंद्र सरकार के कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) का 2016 का एक सर्कुलर है कि सूचना के अधिकार के तहत जो भी जानकारी मांगी जाती है उसे संबंधित विभाग की वेबसाइट पर सार्वजनिक कर दिया जाना चाहिए। लेकिन सरकार को कोई भी विभाग इस निर्देश का पालन नहीं कर रहा है। दरअसल उनकी नजर में सारा झगड़ा जानकारी छुपाने को लेकर है।
(इंदौर से योगेश राठौर की रिपोर्ट।)