BHOPAL. मध्यप्रदेश के एजी-8 वेंचर्स लिमिटेड ग्रुप जिसे राजधानी भोपाल में आकृति बिल्डर के नाम से भी जाना जाता है, उसने हजारों लोगों के सपनों के साथ खिलवाड़ किया। एक तरह से धोखाधड़ी की। पिछले साल आकृति बिल्डर को दिवालिया घोषित किया गया, लेकिन NCLAT यानी नेशनल कंपनी लॉ अपीलेट ट्रिब्यूनल की दिल्ली स्थित प्रिंसिपल बैंच ने दिवालिया घोषित होने की प्रक्रिया पर ही स्टे लगा दिया। ये सबकुछ हुआ तो कुछ सवाल उठे। सवाल ये कि क्या आकृति बिल्डर जो दिवालिया हुआ उसके कर्ताधर्ता हेमंत सोनी की कोई सोची-समझी साजिश थी? क्या आकृति बिल्डर दिवालिया इसलिए हुआ ताकि नेशनल कंज्यूमर डिस्प्यूट रिड्रेसल कमीशन यानी NCDRC दिल्ली के उस आदेश के पालन से बचा जा सके जिसमें ग्राहक या कंज्यूमर या कस्टमर को पूरा पैसा लौटाने की बात कही गई थी? क्या आकृति बिल्डर के हेमंत सोनी और राजीव सोनी को पर्दे के पीछे से किसी ने मदद की, जिसकी वजह से लोगों को आज तक उनका हक नहीं मिल पाया? ये वो तमाम सवाल है जिनका जवाब द सूत्र ने तलाशने की कोशिश की है। इस तहकीकात के दौरान एक बड़े मीडिया समूह का नाम भी सामने आया, जो बेहद चौंकाता है। इन सभी सवालों के जवाब हमारी इस पड़ताल में आपको मिलेंगे।
लोन और पुरानी प्रॉपर्टी बेचकर घर खरीदने के लिए जुटाया था पैसा
आकृति बिल्डर के अलग-अलग प्रोजेक्ट्स में लंबे समय से लोगों का पैसा फंसा हुआ है। होम बायर्स को हर बार सिर्फ पैसा लौटाने या प्रोजेक्ट कम्प्लीट कर घर देने का भरोसा ही दिया गया, लेकिन आकृति बिल्डर्स ने पीड़ितों को कुछ नहीं दिया। जितने भी पीड़ित है उनमें से हर एक की एक कहानी है। जैसे किसी ने बैंक से लोन लेकर पैसों का जुगाड़ किया। किसी ने अपनी पुरानी प्रॉपर्टी बेचकर आकृति बिल्डर्स की प्रॉपर्टी में इन्वेस्ट किया। किसी ने गहने बेचकर पैसा जुटाया था, द सूत्र ऐसे दो लोगों की कहानी लेकर आया है, जो बिल्डर की धोखाधड़ी का शिकार हुए।
प्रयागराज के मलय ने 2013 में बुक किया था मकान
पहली कहानी है मलय श्रीवास्तव की। मलय श्रीवास्तव प्रयागराज (यूपी) में रहते हैं और मलय उन लोगों में से है, जिन्होंने सबसे पहले आकृति एक्वा सिटी में डुप्लेक्स की बुकिंग की थी। साल 2013 में मलय ने सपना देखा था कि आकृति एक्वा सिटी में उनका खुद का अपना मकान होगा। प्रोसेस आगे बढ़ती गई 2014 में रजिस्ट्री भी हो गई और 2017 में मकान का पजेशन देने का आकृति बिल्डर्स ने वादा भी किया था, लेकिन 6 साल हो गए आज तक मकान का अता-पता नहीं है। मलय श्रीवास्तव अब तक 31 लाख रुपए दे चुके हैं और ये पैसा भी उन्हें वापस नहीं मिला है। अब उनके पास इतने पैसे नहीं है कि दूसरी प्रॉपर्टी खरीद सके। मॉनिटरिंग के लिए तमाम एजेंसियां होने के बाद भी आकृति बिल्डर कैसे ये सब कर पाया, इस प्रश्न के जवाब में मलय कहते हैं कि इसके लिए शासन और मॉनिटरिंग करने वाली एजेंसियां पूरी तरह से जिम्मेदार हैं।
परायों को तो छोड़िए, अपनों तक को नहीं छोड़ा
एजी-8 वेंचर्स यानी आकृति बिल्डर के हेमंत सोनी ने परायों को छोड़ो, अपनों तक को नहीं छोड़ा। हेमंत सोनी ने उस ममेरे भाई को भी नहीं बख्शा, जिसके साथ वो बचपन में लंबे समय तक रहा। कोलार में कावेरी सोसाइटी में रहने वाले महेंद्र सोनी आकृति बिल्डर हेमंत सोनी और राजीव सोनी के मामा के लड़के हैं। महेंद्र पहले हेमंत की कंपनी में ही जॉब करते थे। इसी दौरान हेमंत की बातों में आकर उन्होंने आकृति के एक्वासिटी प्रोजेक्ट में फ्लैट बुक कर दिया। हेमंत ने एसबीआई से लोन करा दिया। ताज्जुब की बात ये रही कि 2016 में जिस प्रोजेक्ट में एक ईंट तक नहीं रखी थी, उस प्रोजेक्ट के लिए बैंक ने एकमुश्त 8 लाख लोन की राशि बिल्डर के खाते में डाल दी, जबकि बैंक काम के हिसाब से किश्तों में बिल्डर को पेमेंट करती है। महेंद्र ने जब इस फर्जीवाड़े का विरोध किया तो सबसे पहले उसे जॉब से निकाला गया और फिर 1-2 महीने में पूरा पैसा रिफंड करने की बात की। हालांकि 7 सालों में अब तक किश्तों के रूप में हेमंत सोनी ने अपने ममेरे भाई को सिर्फ साढ़े 3 लाख रुपए ही दिए हैं। महेंद्र को अब तक फ्लैट नहीं मिला और ना ही दूर-दूर तक इसके मिलने की कोई उम्मीद है, लेकिन महेंद्र को बैंक का ब्याज देना पड़ रहा है और 5.50 लाख से ज्यादा की रिकवरी के लिए बैंक लगातार महेंद्र को नोटिस भेज रहा है।
पत्नी के ऊपर पूरे घर की जिम्मेदारी, सिलाई से हो रहा गुजर-बसर
हेमंत सोनी ने जिस ममेरे भाई महेंद्र सोनी के साथ धोखा किया, उसके परिवार की माली हालत बिल्कुल ठीक नहीं है। महेंद्र अपने परिवार के साथ किराए के मकान में रहते हैं। जमीन जायदाद कुछ नहीं। 2 साल से बीमार होने के कारण महेंद्र बेड रेस्ट पर ही हैं। महेंद्र सोनी बताते हैं कि उनका एक बेटा है जो इंजीनियरिंग कर रहा है, उसकी पढ़ाई और घर का खर्च पत्नी कांति सोनी सिलाई का काम करके चलाती हैं। उनके पास इतने पैसे भी नहीं कि वे हेमंत के खिलाफ कोर्ट में जाकर अलग से अपनी लड़ाई लड़ सकें। कांति सोनी ने कहा कि उन्हें बिल्कुल अंदाजा नहीं था कि उनका रिश्तेदार ही उनके साथ ऐसा कुछ करेगा। जब उनके पति बीमार हुए तो उन्होंने सबसे पहले हेमंत सोनी से पैसे की मांग की, हेमंत ने कुछ घंटों में ही पैसा देने का आश्वासन दिया। उसके बाद जब वे पैसा मांगने दोबारा गए तो गार्ड्स ने मिलने नहीं दिया और अब तो मोबाइल ही बंद आता है।
होम बायर्स के 700 करोड़ दांव पर
ये तो केवल दो कहानियां है, लेकिन ऐसी हजारों कहानियां और इन दोनों से मिलती-जुलती हैं, जिन्होंने आकृति बिल्डर में मकान का सपना देखा था उनके 700 करोड़ रुपए और बैंकों के 100 करोड़ रुपए दांव पर हैं। आकृति बिल्डर्स के जितने प्रोजेक्ट्स हैं, उनका काम रुका हुआ है। लोगों को अभी तक ना तो पैसा वापस मिला, ना ही मकान का पजेशन। इसके बाद पीड़ितों ने कानूनी रास्ता अख्तियार किया और इसी बीच रेरा के पास भी लोगों ने शिकायतें की। रेरा ने आकृति बिल्डर का रजिस्ट्रेशन रद्द करते हुए अकाउंट फ्रीज कर दिए और यही थी आकृति बिल्डर के दिवालिया होने की शुरुआत और यहीं पर एंट्री हुई एक मीडिया समूह की।
ऐसे हुई कानूनी लड़ाई की शुरुआत
2019 में एक्वासिटी कंज्यूमर सोशल एंड वेलफेयर सोसाइटी के लोगों ने आकृति बिल्डर के खिलाफ नेशनल कंज्यूमर डिस्प्यूट रिड्रेसल कमीशन यानी NCDRC दिल्ली में एक याचिका दायर की। NCDRC ने एक्वासिटी कंज्यूमर सोसाइटी के पक्ष में 27 अक्टूबर 2021 को फैसला दिया। फैसले में NCDRC ने कहा कि कंज्यूमर को फुल रिटर्न यानी पूरा पैसा वापस दिया जाए। इसके बाद शुरू हुई कानूनी लड़ाई। NCDRC के इस फैसले को एजी-8 ग्रुप यानी आकृति बिल्डर्स ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी।
दैनिक भास्कर की मामले में ऐसे होती है एंट्री
सुप्रीम कोर्ट में केस की सुनवाई शुरू हुई। इसी बीच इस पूरी कहानी में एक नया ट्विस्ट आता है और यहां एंट्री होती है बड़े मीडिया समूह डीबी कॉर्प लिमिटेड यानी दैनिक भास्कर समूह की। फरवरी 2022 में डीपी कॉर्प लिमिटेड यानी दैनिक भास्कर समूह ने इंदौर के नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल यानी NCLT में एजी-8 ग्रुप के खिलाफ एक केस दायर किया।
करोड़ों के विज्ञापन के बदले पैसा नहीं, प्रॉपर्टी की होती है डील
भोपाल और उसके आसपास एजी-8 वेंचर्स के आकृति के नाम से रियल एस्टेट के कई प्रोजेक्ट हैं। आकृति बिल्डर्स और दैनिक भास्कर के बीच प्रोफेशनल रिलेशन एडवरटाइजमेंट यानी विज्ञापन के जरिए बने। आकृति अपने प्रोजेक्ट की प्रॉपर्टी को बेचने के लिए दैनिक भास्कर में विज्ञापन देता था। जाहिर तौर पर जब कोई अखबार में विज्ञापन देता है तो उसके एवज में उसे कीमत चुकानी पड़ती है। मगर यहां कुछ दूसरे तरह की डील हुई। इसे बार्टर डील कहते हैं, जिसमें पैसों का नहीं बल्कि सेवाओं का आदान-प्रदान होता है। आकृति बिल्डर ने विज्ञापन का पैसा देने के एवज में प्रॉपर्टी देने का सौदा दैनिक भास्कर से किया। 29 सितंबर 2010 से लेकर 13 अगस्त 2019 तक दैनिक भास्कर में आकृति बिल्डर के अलग-अलग प्रोजेक्ट के विज्ञापन प्रकाशित हुए थे। इन विज्ञापनों की कीमत करीब 11 करोड़ 74 लाख के आसपास थी।
भास्कर को लेनी थी 41 यूनिट, मिली 22 प्रॉपर्टी
11 करोड़ 74 लाख के विज्ञापन के बदले आकृति बिल्डर्स अपने अलग-अलग प्रोजेक्ट्स में दैनिक भास्कर ग्रुप को 41 यूनिट जिसमें फ्लैट, डुप्लेक्स, बंगले सभी तरह की प्रॉपर्टी शामिल थी, वो देना तय किया था। मगर आकृति बिल्डर ने 41 में से केवल 22 यूनिट ही दी और वो भी समय पर नहीं दी और बाकी बची हुई 19 यूनिट्स आकृति बिल्डर्स ने भास्कर को दी ही नहीं, मतलब दैनिक भास्कर को अब भी आकृति बिल्डर्स के प्रोजेक्ट से 19 यूनिट चाहिए। जिसकी 18 फीसदी ब्याज की दर से कीमत करीब 5 करोड़ 51 लाख 28 हजार रुपए होती है और इन्हीं पैसों को वापस पाने के लिए दैनिक भास्कर ने NCLT इंदौर में फरवरी 2022 में ये याचिका दायर की।
NCDRC के फैसले के 2 महीने बाद भास्कर ने भेजा था लीगल नोटिस
NCLT इंदौर में फरवरी 2022 में याचिका को दायर करने के पहले दैनिक भास्कर समूह ने 30 दिसंबर 2021 को एजी-8 ग्रुप को एक लीगल नोटिस भेजा था। नोटिस में कहा गया था कि जो बची हुई 19 यूनिट्स का करीब सवा 5 करोड़ रुपए बकाया है वो वापस किया जाए। भास्कर की तरफ से ये नोटिस 27 अक्टूबर 2021 को NCDRC के आदेश के दो महीने बाद दिया गया। बता दें कि NCDRC ने आकृति बिल्डर्स के खिलाफ फैसला देते हुए कंज्यूमर्स को पूरा पेमेंट वापस करने का आदेश जारी किया था। मगर दैनिक भास्कर कंज्यूमर तो था नहीं, उसकी आकृति बिल्डर्स से डील अलग तरह से हुई थी। इधर एजी-8 ग्रुप NCDRC के फैसले के खिलाफ नवंबर 2021 में सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटा चुका था। तो क्या दैनिक भास्कर को इस बात का डर था कि आकृति बिल्डर्स के साथ उसकी जो डील हुई थी वो पैसा डूब सकता है और इसलिए NCDRC के फैसले के तुरंत बाद ही भास्कर ने लीगल नोटिस देने की कार्रवाई शुरू की थी?
बहरहाल, भास्कर की NCLT इंदौर में दायर याचिका पर 5 अगस्त 2022 को फैसला आया, जिसमें NCLT ने एजी-8 ग्रुप यानी आकृति बिल्डर्स को दिवालिया घोषित कर दिया।
सुप्रीम कोर्ट का आदेश और उसके बाद क्या खड़े हो रहे सवाल
5 अगस्त 2022 को NCLT का आकृति बिल्डर्स को दिवालिया घोषित करने का फैसला दिया और इसके करीब ढाई महीने बाद 17 अक्टूबर 2022 को एजी-8 ग्रुप की दायर याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया। सुप्रीम कोर्ट ने फैसले में कहा कि NCDRC ने जो फुल रिफंड का आदेश दिया है, वो ही सही है और एजी-8 ग्रुप को पूरा पैसा ग्राहकों को लौटाना चाहिए। मगर आकृति बिल्डर्स को तो दिवालिया घोषित कर दिया गया था। अब यही से सवाल उठ जाता है कि क्या एजी-8 ग्रुप यानी आकृति बिल्डर्स सोची-समझी साजिश के तहत दिवालिया घोषित हुआ? एक्वासिटी कंज्यूमर सोसाइटी के मेंबर्स क्यों आरोप लगा रहे हैं कि एजी-8 ग्रुप और दैनिक भास्कर की मिलीभगत रही है? अपनी याचिका में दैनिक भास्कर को भी पार्टी बनाने के पीछे रेरा ने क्या तर्क दिया? और इन सभी आरोपों पर दैनिक भास्कर का क्या जवाब है? इन सभी सवालों के जवाब आपको मिलेंगे द सूत्र की इस पड़ताल की अगली कड़ी में।