MP में क्या सरकार भ्रष्ट अफसरों पर मेहरबान! 24 विभागों के 90 कर्मचारियों के खिलाफ EOW में FIR, लेकिन नहीं दी कोर्ट केस की मंजूरी

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Arun Dixit
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MP में क्या सरकार भ्रष्ट अफसरों पर मेहरबान! 24 विभागों के 90 कर्मचारियों के खिलाफ EOW में FIR, लेकिन नहीं दी कोर्ट केस की मंजूरी

BHOPAL. मध्यप्रदेश में सरकार क्या भ्रष्ट अफसरों पर मेहरबान है? ये सवाल इसलिए उठ रहा है क्योंकि 24 विभागों के 90 कर्मचारियों के खिलाफ ईओडब्ल्यू में एफआईआर दर्ज है, लेकिन सरकार ने इन अफसरों के खिलाफ पिछले कई सालों से अभियोजन की मंजूरी ही नहीं दी है। इनमें से कुछ तो ऐसे हैं जिनके खिलाफ 2017 में मामला दर्ज हुआ, मध्यप्रदेश में 2 बार सरकार बदल गई, लेकिन इन अफसरों का कुछ नहीं बिगड़ा। हम आपको बता रहे हैं कि सरकार किस विभाग के कितने अफसरों पर मेहरबान है और ये मेहरबानी जिले के अधिकारियों पर भी है।



साल खत्म होने के साथ सीएम शिवराज का एक्शन खत्म



पिछले साल सीएम शिवराज सिंह चौहान अचानक एक्शन में आ गए थे। औचक निरीक्षण करने लगे थे, मैसेज ये दिया था कि भ्रष्टाचार और लापरवाही बर्दाश्त नहीं की जाएगी। साल 2022 खत्म हुआ तो ये एक्शन भी खत्म हो गया। साल 2023 के 4 महीने बीत चुके हैं, शिवराज ने न तो औचक निरीक्षण किया और ना ही किसी को मंच से सस्पेंड किया। हालांकि मंच से ये जरूर कहते नजर आते हैं कि जो भी गड़बड़ी करें उस पर कार्रवाई करें।



ठोस कार्रवाई क्यों नहीं?



सीएम शिवराज की मंशा पर कोई सवाल नहीं, सवाल केवल इतना है कि मंशा यदि अच्छी है तो फिर ठोस कार्रवाई क्यों नहीं? जबकि खुद सीएम ने 2018 में जीरो टॉलरेंस की नीति पर जोर दिया था। कहा था कि जो कर्मचारी अधिकारी भ्रष्टाचार में शामिल हैं, उनके खिलाफ इओडब्ल्यू में एफआईआर दर्ज करवाई जाए, तत्काल अभियोजन की भी मंजूरी दी जाए और जिन अफसरों के खिलाफ पहले से भ्रष्टचार के मामले चल रहे हैं, उनके खिलाफ भी तत्काल कार्रवाई की जाए। जीरो टॉलरेंस की इस नीति में हुआ केवल इतना कि इओडब्ल्यू में मामला दर्ज हो गया। पिछले 5 सालों में 24 विभागों के 90 कर्मचारी-अधिकारियों के खिलाफ ईओडब्ल्यू में मामले दर्ज हुए मगर कोर्ट में केस चलाने की मंजूरी नहीं दी गई। इन 90 में से कुछ प्रमुख नाम इस तरह हैं जो भ्रष्टाचार के मामले में फंस चुके हैं।



इनके खिलाफ EOW में FIR, कोर्ट में केस की मंजूरी नहीं




  • अंजू सिंह, तत्कालीन कलेक्टर, कटनी


  • योगेंद्र शर्मा, तत्कालीन कलेक्टर, विदिशा

  • ललित दाहिमा, तत्कालीन उप सचिव, खाद्य 

  • जयंतीलाल, पूर्व मेयर, नगर निगम रतलाम

  • ओएन पांडे, एसडीएम, द्वितीय श्रेणी, मऊगंज

  • केएस सेन, तत्कालीन तहसीलदार, बुदनी

  • एमडी शर्मा, तत्कालीन तहसीलदार, बुदनी

  • एके बड़कुर, तत्कालीन तहसीलदार, बुदनी

  • पवन जैन, तत्कालीन एसडीएम, इंदौर

  • कौशल बंसल, तत्कालीन एसडीएम, इंदौर



  • ये लिस्ट काफी लंबी है। इनके खिलाफ अभियोजन की स्वीकृति ही नहीं दी गई। अब विभागवार देखें तो कई विभागों में तो 2017 से अभियोजन की स्वीकृति नहीं मिली है।



    किस विभाग के कितने मामले ?



    पंचायत और ग्रामीण विकास विभाग




    • FIR दर्ज- 12 अधिकारी


  • अभियोजन की स्वीकृति- 2018 से लंबित



  •  सामान्य प्रशासन विभाग




    • FIR दर्ज- 12 अधिकारी


  • अभियोजन की स्वीकृति- 2017 से लंबित



  • नगरीय विकास एवं आवास




    • FIR दर्ज- 15 अधिकारी


  • अभियोजन की स्वीकृति- 2020 से लंबित



  • राजस्व विभाग




    • FIR दर्ज- 8 अधिकारी


  • अभियोजन की स्वीकृति- 2019 से लंबित



  • जल संसाधन विभाग




    • FIR दर्ज- 1 अधिकारी


  • अभियोजन की स्वीकृति- 8 नवंबर 2020 से लंबित



  • चिकित्सा शिक्षा विभाग




    • FIR दर्ज- 5 अधिकारी


  • अभियोजन की स्वीकृति 5 जून 2020 से लंबित



  • लोक निर्माण विभाग




    • FIR दर्ज- 4 अधिकारी


  • अभियोजन की स्वीकृति- 2020 से लंबित



  • वाणिज्यिक कर विभाग




    • FIR दर्ज- 1 अधिकारी


  • अभियोजन की स्वीकृति- 17 मई 2022 से लंबित



  • आदिम जाति कल्याण विभाग




    • FIR दर्ज- 2 अधिकारी


  • अभियोजन की स्वीकृति 14 अक्टूबर 2022 से लंबित है



  • उद्योग विभाग




    • FIR दर्ज- 1 अधिकारी


  • अभियोजन की स्वीकृति 16 दिसंबर 2022 से लंबित



  • सहकारिता विभाग




    • FIR दर्ज-1 अधिकारी


  • अभियोजन की स्वीकृति 6 सितंबर 2022 से लंबित



  • इसी तरह जिलों की बात करें तो जिलों में 3 दर्जन अधिकारी ऐसे हैं जिनके खिलाफ एफआईआर तो दर्ज हुई है, लेकिन अभियोजन की स्वीकृति 2021 से लंबित है। इसलिए कांग्रेस सरकार की व्यवस्था पर सवाल उठाती है और बीजेपी इसे अपने तरीके से परिभाषित करती है। लेकिन सवाल है कि यदि जीरो टॉलरेंस की नीति है तो फिर भ्रष्टाचार के मामलों में फंसे अधिकारियों को उनके अंजाम तक क्यों नहीं पहुंचाया जा रहा है।



    एक भी भ्रष्टाचारी सलाखों के पीछे नहीं पहुंचा



    अंजाम का मतलब है सजा। जब तक गुनाह की सजा नहीं मिलती तब तक वो इंसाफ नहीं कहलाता। यदि इन सभी अधिकारियों के खिलाफ कोर्ट केस की इजाजत सरकार देती तो ये मामले अंजाम तक पहुंचते, मगर ऐसा हुआ नहीं। आपको ये भी जानकर बड़ी हैरानी होगी कि मध्यप्रदेश में साल 2021 में सरकारी अधिकारी और कर्मचारियों के भ्रष्टाचार में पकड़े जाने के मामले साल 2020 के मुकाबले 65 फीसदी तक बढ़ गए, लेकिन पूरे साल एक भी भ्रष्टाचारी सलाखों के पीछे नहीं पहुंचा जबकि इनमें से 200 सरकारी अधिकारी और कर्मचारी तो रिश्वत लेते पकड़े गए थे। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो यानी NCRB के आंकड़े भ्रष्टाचारियों पर मेहरबानी की ऐसी ही एक और कहानी बयां करते हैं।



    भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988



    ये वो कानून है जिसकी अलग-अलग धाराओं के तहत भ्रष्टाचारियों पर FIR दर्ज की जाती है। चाहे वो सीबीआई हो या फिर प्रदेशों में लोकायुक्त और एंटी करप्शन ब्यूरो। यानी भ्रष्टाचारियों पर कार्रवाई के लिए पूरे देश में एक कानून है। इस कानून की धाराओं में मामला दर्ज होने के बाद होता क्या है? उदाहरण के तौर पर सीबीआई को लिया जाए तो...



    सीबीआई और दूसरे राज्य क्या करते हैं




    • सीबीआई आरोपी को गिरफ्तार करती है।


  • आरोपी को कोर्ट में पेश किया जाता है।

  • ऐसा ही दूसरे राज्यों में होता है।

  • राजस्थान में एंटी करप्शन ब्यूरो विशेष कोर्ट में आरोपी को पेश करती है।

  • महाराष्ट्र, दिल्ली, उत्तर प्रदेश और बाकी राज्यों में यही प्रोसिजर फॉलो होता है।



  • इसके इतर मध्यप्रदेश में क्या होता है




    • मध्यप्रदेश में लोकायुक्त और इओडब्ल्यू FIR दर्ज करते हैं।


  • आरोपी को नोटिस थमाकर छोड़ देते हैं।



  • मध्यप्रदेश में ऐसा क्यों होता है?



    साल 2003 में यानी 20 साल पहले मध्यप्रदेश में वाणिज्यकर अधिकारी ऋषभ कुमार जैन की मौत लोकायुक्त पुलिस की हिरासत में हो गई थी। इस मामले में तत्कालीन डीएसपी मोहकम सिंह मैन और अन्य 3 पुलिसकर्मियों को सजा हुई थी। इस मौत के बाद एक आदेश जारी हुआ। इस आदेश के बाद से गिरफ्तारी बंद हो गई, हालांकि ये आदेश अस्थाई था। मगर इसे स्थाई बना दिया गया है। नतीजा ये कि मध्यप्रदेश में भ्रष्टाचारियों के हौसले बुलंद हैं और वो जेल नहीं जाते। हालांकि गिरफ्तारी ना करने के पीछे लोकायुक्त और इओडब्ल्यू के अधिकारी सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देश का हवाला देते हैं कि 7 साल से कम सजा वाले प्रावधान में आरोपी को नोटिस देकर छोड़ा जा सकता है।



    उदाहरण से समझिए



    पिछले साल सीबीआई ने ग्वालियर में मिलिट्री इंजीनियरिंग सर्विसेज के कर्मचारी को 50 हजार रुपए की रिश्वत लेते हुए पकड़ा था, उसे भोपाल की विशेष कोर्ट में पेश किया और जेल भेज दिया गया। जबकि ग्वालियर में ही साल 2020 में नगर निगम के तत्कालीन सिटी प्लानर को 5 लाख रुपए की घूस लेते इओडब्ल्यू ने पकड़ा और उसे छोड़ दिया गया।



    मध्यप्रदेश में जिस तरीके से भ्रष्टाचारियों पर कोई कार्रवाई नहीं हो रही उसे नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों से भी समझ सकते हैं।



    एनसीआरबी के आंकड़ों के मुताबिक



    एमपी में भ्रष्टाचार के मामले




    • साल 2019 में 318 मामले दर्ज हुए


  • साल 2020 में 151 मामले दर्ज हुए

  • साल 2021 में 250 मामले दर्ज हुए

  • साल 2019 की तुलना में 2020 में भ्रष्टाचार के मामले कम हुए

  • लेकिन 2020 की तुलना में 2021 में इसमें 65 फीसदी की बढ़ोतरी हो गई



  • आंकड़े ये भी बताते हैं कि भ्रष्टाचार के मामले में मध्यप्रदेश का देश में 6वां नंबर है।



    भ्रष्टाचार के राज्यवार मामले ( NCRB 2021)




    • महाराष्ट्र में 773 केस दर्ज हुए


  • राजस्थान में 501

  • तमिलनाडु में 423

  • कर्नाटक में 360

  • ओडिशा में 265

  • मध्यप्रदेश में 250 केस दर्ज हुए



  • एनसीआरबी के ही आंकड़ें देखे तो हर राज्य में भ्रष्टाचारियों पर कार्रवाई हुई है, लेकिन मध्यप्रदेश में नहीं हुई।



    भ्रष्टाचारियों पर कार्रवाई (NCRB 2021)




    • महाराष्ट्र में 1080 आरोपियों पर कार्रवाई हुई


  • राजस्थान में 557

  • गुजरात में 445

  • उत्तरप्रदेश में 41

  • दिल्ली में 282

  • मध्यप्रदेश में 0



  • मध्यप्रदेश में भ्रष्टाचार बना शिष्टाचार



    एनसीआरबी की 2021 की रिपोर्ट बताती है कि मध्यप्रदेश में भ्रष्टाचार के 584 मामलों की जांच की जा रही है और 803 मामले अभी कोर्ट की सुनवाई में हैं। कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि मध्यप्रदेश में भ्रष्टाचारियों पर सरकार मेहरबान है और इस ढील का नतीजा है कि मध्यप्रदेश में अब भ्रष्टाचार शिष्टाचार में बदल चुका है। भले ही मंच पर खड़े होकर कितने ही मौखिक निर्देश-आदेश दे दिए जाएं, कागजों में कहानी कुछ और ही है।


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