इंदौर में डॉ. सुरेश रामासुब्बन ने बताया, ICU में होने वाले इन्फेक्शन को रोकने के लिए इस्तेमाल हो रहा सिल्वर कोटेड पाइप

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Rahul Garhwal
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इंदौर में डॉ. सुरेश रामासुब्बन ने बताया, ICU में होने वाले इन्फेक्शन को रोकने के लिए इस्तेमाल हो रहा सिल्वर कोटेड पाइप

योगेश राठौर, INDORE. आईसीयू में एडमिट रहने वाले पेशेंट को इलाज के दौरान मॉनिटरिंग के लिए कई तरह के पाइप, ट्यूब और डिवाइस बॉडी से कनेक्ट किए जाते हैं, जिनकी वजह से इन्फेक्शन का चांस बढ़ जाता है। इस तरह के इन्फेक्शन को नोसोकोमियल इन्फेक्शन कहते हैं, जो वेंटिलेटर से नहीं बल्कि उसमें लगने वाली पाइप से होता है। अब ऐसे पाइप आ रहे हैं जो सिल्वर कोटेड होते हैं, जिससे इन्फेक्शन की आशंका पहले की तुलना में कम हो गई है। ये कहना है डॉ. सुरेश रामासुब्बन का जो इंडियन सोसाइटी ऑफ क्रिटिकल केयर मेडिसिन (आइएससीसीएम) कॉन्फ्रेंस क्रिटिकेयर 2023 के अंतिम दिन संबोधित कर रहे थे।



इन्फेक्शन रोकने के तरीके



डॉ. डॉ. सुरेश रामासुब्बन ने कहा कि आईसीयू के इन्फेक्शन को हैंड वॉशिंग और एंटीबायोटिक के सही इस्तेमाल से काफी हद तक कंट्रोल किया जा सकता है। जब जरूरत नहीं हो तब एंटीबायोटिक्स देना बंद कर देना चाहिए। सिर्फ हाथ धोने के प्रैक्टिस से इन्फेक्शन को कम कर सकते हैं पर एक आईसीयू पेशेंट की केयर के दौरान 1 घंटे में उसे 50 बार उसे छूना पड़ता है। ऐसे में हर बार हाथ धोना संभव नहीं होता है। हैंड वॉश और सैनेटाइजिंग को लेकर लेकर डब्लूएचओ के 7 स्टेप और 5 मोमेंट्स बताए गए हैं, जिसको अपनाकर इन्फेक्शन को कम कर सकते हैं।



ईको और टेक्नो फ्रेंडली कॉन्फ्रेंस



ऑर्गनाइजिंग चेयरमैन और आइएससीसीएम के अध्यक्ष डॉ. राजेश मिश्रा ने बताया कि हमने इस कॉन्फ्रेंस को ईको और टेक्नो फ्रेंडली बनाने का प्रयास किया था। इस पूरी कॉन्फ्रेंस के दौरान ना तो कोई शेड्यूल प्रिंट किया गया और ना ही कोई ब्रॉशर प्रिंट किया। यहां तक कि पानी भी बॉटल में सर्व नहीं किया। हम दुनियाभर से आए डेलीगेट्स को स्वच्छता और पर्यावरण को लेकर जो अवेयरनेस का लेवल है वो दिखाना चाहते थे। बाहर से आए डेलीगेट्स को हमारा ये प्रयास बेहद पसंद आया और सभी ने इसकी सराहना की। वहीं विदेशों से आए डॉक्टर ने कहा कि इंदौर शहर में सफाई को लेकर जो जुनून और मैनेजमेंट है, वो हमारे देश के कई शहरों में देखने को नहीं मिलता है।



सुपर स्पेशलिस्टी के बाद ही बनते हैं क्रिटिकल केयर एक्सपर्ट



आईसीयू में क्रिटिकल केयर ट्रीटमेंट देने वाले डॉक्टर्स को एमबीबीएस और एमडी के बाद सुपर स्पेशलाइजेशन करना अनिवार्य होता है। यानी कम से कम 10 साल के अनुभव के बाद ही कोई डॉक्टर क्रिटिकल केयर में एक्सपर्ट बनता है। ये कहना है सीनियर क्रिटिकल केयर एक्सपर्ट डॉ. जीसी खिलनानी का। वे कहते हैं कि एक समय खुद डॉक्टर्स भी मानते थे कि वेंटिलेटर पर जाने के बाद मरीज का बचाना मुश्किल है पर आज मेडिकल साइंस की उन्नति के कारण वेंटिलेटर पर जाने वाले 70 फीसदी से ज्यादा मरीजों की जान बचा ली जाती है।



गब्बर, शाकाल और शक्तिमान के गेटअप में आए डॉक्टर



को-आर्गनाइजिंग चेयरमैन डॉ. संजय धानुका ने अपने लैक्चर में बताया पेट में इन्फेक्शन और आंत या अल्सर का फटने जैसी इमरजेंसी की स्थिति में आईसीयू में आने वाले मरीजों को यदि सर्जरी की जरूरत है तो इसमें निर्णय लेने में देरी नहीं करनी चाहिए। सर्जरी में देरी से मरीज की जान भी जा सकती है। कई बार मरीज को बीपी या किडनी से जुड़ी दिक्कत भी होती है, जिसमें डॉक्टर को ज्यादा सावधानी बरतने की जरूरत होती है। एब्स्ट्रेक्ट कमेटी के को-चेयरमैन डॉ. आनंद सांघी ने बताया कि इस कार्यक्रम में डॉक्टर बैक्टीरिया और एंटीबायोटिक बनकर अपने कैरेक्टर के जरिए एंटीबायोटिक के ठीक तरह से इस्तेमाल करने की सलाह दी ताकि हमारे शरीर में एंटीबायोटिक रेजिस्टेंस ना डेवलप हो सके और जरूरत के समय पर एंटीबायोटिक खाने पर वे हमें राहत दे सकें। अंतिम दिन ये बेहद दिलचस्प नजारा देखने को मिला मानो स्कूल के फैंसी ड्रेस का कॉम्पिटिशन चल रहा हो जिसमें देश के अलग-अलग हिस्सों से डॉक्टर्स गब्बर सिंह, शाकाल, शक्तिमान, बैटमैन, मोगैंबो आदि फिल्मी गेटअप में नजर आए।



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मेडिकल कॉन्फ्रेंस में पहली बार मानवीय संवेदनाओं पर हुई बात



ऑर्गनाइजिंग सेक्रेटरी डॉ. राजेश पांडे ने इस कॉन्फ्रेंस और वर्कशॉप में शामिल होने आए सभी डेलिगेट्स और एक्सपर्टस के प्रति आभार प्रदर्शित किया। उन्होंने कहा कि कोई भी आयोजन सिर्फ कुछ लोगों की वजह से सफल नहीं होता बल्कि उस आयोजन में शामिल हर व्यक्ति के सहयोग से ही सफलता प्राप्त की जा सकती है। जॉइंट ऑर्गेनाइजिंग सेक्रेटरी डॉ. विवेक जोशी ने कहा कि अभी तक जो भी कॉन्फ्रेंस होती थी उसमें कई स्पीकर्स और डेलिगेट्स ऑनलाइन भी शामिल होते थे। इस साल हमने इस कॉन्फ्रेंस को पूरी तरह से ऑफलाइन ही रखा जिससे कॉन्फ्रेंस में आने वाले डॉक्टर्स की संख्या में काफी इजाफा हुआ। साइंटिफिक कमेटी के को-चेयरमैन डॉ. निखलेश जैन कहते हैं कि आमतौर पर मेडिकल कॉन्फ्रेंस बहुत ज्यादा टेक्निकल होती है जिससे आम जनता जुड़ाव महसूस नहीं करती है पर इस साल हमने कॉन्फ्रेंस में मानवीय संवेदनाओं को ज्यादा महत्व देते हुए आम लोगों को भी इससे जोड़ने का प्रयास किया।


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