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BHOPAL. जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आ रहे हैं वैसे ही मध्यप्रदेश में चुनावी चकल्लस तेज होती जा रही है। कर्नाटक चुनाव का प्रभाव प्रदेश में कांग्रेस पर कुछ ज्यादा नजर आ रहा है। कांग्रेस नेताओं ने कर्नाटक से प्रभावित होकर एक ऐसा ही चुनावी मुद्दा उठाया है। कर्नाटक में कांग्रेस ने अपने मेनीफेस्टो में बजरंग दल पर पाबंदी लगाने की बात शामिल की थी। इसी तरह मध्यप्रदेश के कुछ कांग्रेस नेताओं ने अपने वचन पत्र में भी एक हिंदू संगठन पर बैन लगाने की मांग की है। वचन पत्र समिति के सदस्यों को इस संबंध में पत्र भी लिखा गया है। लेकिन सवाल है कि क्या कांग्रेस अपने वचन पत्र में किसी हिंदूवादी संगठन को बैन की बात शामिल करने का साहस जुटा पाएगी। क्योंकि यदि ऐसा हुआ तो प्रदेश में सियासी भूचाल आ सकता है।
अजय सिंह को सौंपे पत्र में मांग
प्रदेश में सॉफ्ट हिंदुत्व का चोला ओढ़ने वाली कांग्रेस क्या एक साहसी कदम उठा सकती है। ये सवाल कांग्रेस के एक प्रवक्ता ने ही खड़ा किया है। कांग्रेस के प्रदेश प्रवक्ता सिद्धार्थ राजावत ने अन्य नेताओं के साथ ये मांग की है कि जिस तरह कर्नाटक में कांग्रेस पार्टी के मेनीफेस्टो में बजरंग दल पर पाबंदी लगाने की बात की गई थी, उसी तरह मध्यप्रदेश में भी हिंदू महासभा को बैन करने का मुद्दा वचन पत्र में शामिल किया जाए। राजावत ने ग्वालियर के प्रभारी और वचन पत्र समिति के सदस्य अजय सिंह को एक पत्र सौंपा है जिसमें ये मांग की गई है।
ये मांग क्यों उठ रही है?
ये मांग इसलिए उठी क्योंकि हाल ही में ग्वालियर में एक बार फिर महात्मा गांधी की हत्या करने वाले नाथूराम गोड़से का जन्मदिन मनाया गया। हिंदू महासभा ने ये आयोजन किया। कांग्रेस नेता का कहना है कि ग्वालियर-चंबल अंचल की धरती पर राष्ट्रपिता के हत्यारे का महिमामंडन होता है। देश का सबसे पहला आतंकी नाथूराम गोड़से है। गोड़से का जन्मदिन और पुण्यतिथि ग्वालियर-चंबल में धूमधाम से मनाई जाती है जो गलत है। इसलिए इस संगठन पर बैन लगना चाहिए। कर्नाटक में कांग्रेस को जिस तरह समर्थन मिला है उसी तरह मध्यप्रदेश में भी इस कदम पर लोगों का साथ मिलेगा।
पाबंदी के मुद्दे से पैदा होगा टकराव
मध्यप्रदेश में ये मुद्दा कांग्रेस के लिए बर्र के छत्ते में हाथ डालने जैसा हो सकता है। कांग्रेस ने 2018 में भी इस तरह की कोशिश की थी। वचन पत्र के पेज नंबर 106 पर 47.62 नंबर पर लिखा था कि शासकीय परिसरों में आरएसएस की शाखाएं लगाने पर प्रतिबंध लगाएंगे और शासकीय अधिकारी और कर्मचारियों को शाखाओं में छूट संबंधी आदेश को निरस्त करेंगे। वचन पत्र जारी होने के बाद इस मुद्दे पर प्रदेश में जमकर बवाल मचा था। पूरे देश में बीजेपी ने इसका विरोध किया था। नतीजा ये निकला कि कांग्रेस की कमलनाथ सरकार 15 महीने रहने के बाद भी इस पर कोई आदेश नहीं निकाल पाई थी। हिंदू महासभा का राजनीतिक वजूद जो भी हो, लेकिन इस पर पाबंदी का मुद्दा फिर से टकराव पैदा कर सकता है। यही कारण है कि वचन पत्र समिति के सदस्य हिंदू महासभा का विरोध तो करते हैं, लेकिन वचन पत्र में शामिल करने की बात को टाल जाते हैं।
इस मुद्दे पर प्रतिक्रिया देने से बच रहे बीजेपी नेता
ये मुद्दा इतना संवेदनशील है कि बीजेपी के नेता इस पर प्रतिक्रिया देने से बच रहे हैं। बीजेपी सार्वजनिक तौर पर गोड़से का विरोध करती रही है। महात्मा गांधी राष्ट्रपिता के रूप में पूरा देश मानता है और राजनीतिक दल इससे अलग नहीं हैं। सभी दल महात्मा गांधी के सिद्धांतों के आधार पर राजनीति करते हैं। यही कारण है कि बीजेपी इस पर अभी कुछ भी नहीं बोल रही है, लेकिन हिंदू महासभा ने इस पर आवाज उठानी शुरू भी कर दी है।
कमलनाथ ने नेताओं को दी हिदायत
वहीं कांग्रेस के लिए भी ये मुद्दा जोखिम भरा हो सकता है। इसलिए कांग्रेस के वचन पत्र में इसको जगह मिल पाएगी, इसकी संभावना कम ही नजर आती है, लेकिन इस मुद्दे ने कांग्रेस की राजनीति जरूर गरमा दी है। सूत्रों की मानें तो पीसीसी चीफ कमलनाथ ने ऐसे नेताओं को हिदायत दी है कि वे इस तरह के संवेदनशील मुद्दों पर बयानबाजी ना करें। ये विधानसभा चुनाव बीजेपी और कांग्रेस दोनों के लिए आर-पार की लड़ाई जैसा है, इसलिए दोनों ही दल एक-एक कदम फूंक-फूंककर रख रहे हैं।