भोपाल. डॉ. योगेंद्र कुमार सक्सेना (पर्यावरण वैज्ञानिक) ने देश का पहला सिंगल यूज प्लास्टिक फ्री सैनिटरी नैपकिन बनाया है। पहले भी डॉ. सक्सेना गो काष्ठ, गोबर के दीये और पीओपी की प्रतिमाओं को अमोनियम बाई कार्बोनेट में विसर्जन कर खाद बनाने जैसे नए आविष्कार कर चुके हैं। डॉ सक्सेना सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड भोपाल के साइंटिस्ट भी हैं।
भारत सरकार की वेबसाइट ने की सराहना
उन्होंने बायोडिग्रेडेबल स्टार्च शीट, नॉनवोवेव कपड़ा, वूड पल्प शीट, सेप शीट और बैक साइड रिलीज पेपर टेप की मदद से ये नैपकिन तैयार किया गया है। विराग बोहरे की राग इनोवेशन पैड फैक्ट्री में ये आविष्कार किया गया। विराग बोहरे डॉ. योगेंद्र कुमार सक्सेना के दोस्त हैं। सक्सेना की भारत सरकार की वेबसाइट www.mygov.in पर सराहना की गई। उन्हें इसका पेटेंट कराने के साथ ही कमर्शियल उत्पादन करने की सलाह दी गई। दूसरे सैनिटरी नैपकिन में 90% सिंगल यूज प्लास्टिक का उपयोग होता है।
पर्यावरण के लिए उतना नुकसानदायक नहीं ये नैपकिन
सक्सेना ने बताया कि उनके सेनिटरी नैपकिन को भी यूज के बाद बायो मेडिकल वेस्ट की तरह डिकम्पोज किया जा सकेगा। लेकिन एक बड़ा अंतर ये रहेगा कि खुले में फेंकने, दफन करने या जला देने पर ये पर्यावरण के लिए वैसा नुकसान नहीं करेगा, जैसा मौजूदा नैपकिन करते हैं।
देश में 70% शहरी और 48% ग्रामीण महिलाएं सैनिटरी नैपकिन का यूज करती हैं। इसमें से 24 % नैपकिन ही वैज्ञानिक रूप से निष्पादन के लिए इंसीनरेटर में जाता है। बाकी 76 % में से 28 % सामान्य कचरे में जाता है। 33 % पैड को जमीन में दफन कर दिया जाता है और 15% को खुले में जला दिया जाता है।