जबलपुर हाईकोर्ट ने जबलपुर आईजी को हलफनामा पेश करने कहा, 1 ही आरोप में 3 पुलिसकर्मियों को दी गई थी डिफरेंट सजा

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Rajeev Upadhyay
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जबलपुर हाईकोर्ट ने जबलपुर आईजी को हलफनामा पेश करने कहा, 1 ही आरोप में 3 पुलिसकर्मियों को दी गई थी डिफरेंट सजा

Jabalpur. मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने जबलपुर के पुलिस महानिरीक्षक को नोटिस जारी कर यह सवाल पूछा है कि एक ही आरोप के लिए 3 पुलिस कर्मियों को दी जाने वाली सजा में आखिर भेदभाव क्यों किया गया। जस्टिस विवेक अग्रवाल की एकलपीठ ने आईजी को अगली सुनवाई के पूर्व इस संबंध में व्यक्तिगत हलफनामा पेश करने के निर्देश दिए हैं। अदालत ने यह भी कहा है कि यदि ऐसा नहीं हुआ तो अगली सुनवाई में आईजी स्वयं अदालत में हाजिर रहें। मामले में अगली सुनवाई 21 जून को नियत की गई है। 







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  • यह है मामला





    दरअसल यह याचिका जबलपुर निवासी जोगेंद्र सिंह ने साल 2014 में दायर की थी, उसकी मृत्यु हो जाने के बाद अब उनकी पत्नी सरोज राठौर केस लड़ रही हैं। याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता प्रमोद सिंह तोमर और संजीव तुली ने बताया कि याचिकाकर्ता पुलिस विभाग में आरक्षक के पद पर पदस्थ था। 21 जनवरी 2009 को याचिकाकर्ता जोगेंद्र, उजियार सिंह और राजकुमार तिवारी एक आरोपी सोनू दिवाकर को पेशी पर लेकर जा रहे थे। आरोपी उनकी कस्टडी से भाग निकला था। इस मामले में चार्जशीट और विभागीय जांच के बाद एसपी ने 11 जनवरी 2010 को तीनों पुलिसकर्मियों को सेवा से बर्खास्त कर दिया। अदालत को बताया गया कि उजियार सिंह को बाद में अनिवार्य सेवानिवृत्ति दे दी गई पर आईजी के आदेश पर राजकुमार को वापस सेवा में ले लिया गया। 





    अदालत ने सुनवाई के दौरान इस बात पर आश्चर्य जताया कि एक ही आरोप में सजा पाए पुलिस कर्मियों के साथ अलग-अलग व्यवहार क्यों किया गया। कोर्ट ने आईजी को निर्देश दिए कि वे हलफनामे के साथ याचिकाकर्ता और राजकुमार तिवारी से जुड़े सभी दस्तावेज भी पेश करें। 





    संशोधित आदेश से वकीलों-पक्षकारों की समस्या का समाधान





    हाईकोर्ट ने राज्य की अधीनस्थ अदालतों में लंबित पुराने 25 प्रकरण 3 माह की समय सीमा में निराकृत करने संबंधी अपने आदेश में संशोधन कर दिया है। इससे वकीलों और पक्षकारों को राहत मिली है। राज्य अधिवक्ता परिषद ने इस संबंध में मुख्य न्यायाधीश रवि मलिमठ को चिट्ठी भेजकर आभार जताया है। बता दें कि इस आदेश के बाद वकीलों ने हड़ताल शुरू कर दी थी जिससे कई दिन तक न्यायालयीन कार्य एक प्रकार से ठप हो गया था। 



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