Jabalpur. मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने दोहरे हत्याकांड में निचली अदालत से मिली फांसी की सजा को निरस्त कर दिया। जस्टिस सुजय पॉल और जस्टिस पीसी गुप्ता की खंडपीठ ने साल 2019 में सिंगरौली की अदालत द्वारा दी गई फांसी की सजा को यह कहते हुए निरस्त कर दिया कि अभियोजन यह साबित ही नहीं कर पाया कि हत्या अपीलार्थी ने की है। मामले में सिंगरौली निवासी एक मजदूर रामजग बिंद पर आरोप था कि जमीनी विवाद में साल 2014 में उसने अपने मौसा-मौसी की हत्या की। मृतक दंपती का शव कुएं में उतराता मिला था।
निचली अदालत के फैसले पर मुहर के लिए मामला हाईकोर्ट पहुंचा था। जिस पर फैसला लेने से पहले अदालत ने वरिष्ठ अधिवक्ता मनीष दत्त को कोर्ट मित्र नियुक्त किया था। उनके द्वारा दलील दी गई कि बिना चश्मदीद गवाह के निचली अदालत ने फैसला सुना दिया। जिन 6 लोगों को बतौर गवाह पेश किया गया उनमें से 5 मृतकों के परिजन थे, केवल एक ही बाहरी व्यक्ति गवाह था। दूसरी ओर अपीलार्थी की ओर से अधिवक्ता अरविंद पाठक ने बताया कि पुलिस ने जो हथियार जब्त किया था, उस पर खून के निशान नहीं थे।
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अभियुक्त को पहले भी फांसी की सजा हुई थी
इस मामले में शासन की ओर से यह दलील दी गई कि अपीलार्थी को पहले भी हत्या के मामले में फांसी की सजा हुई थी जिसे हाईकोर्ट ने उम्रकैद में तब्दील कर दिया था। जिस पर अदालत ने कहा कि पूर्व में मिली सजा के आधार पर वर्तमान सजा को सही नहीं ठहराया जा सकता। तमाम दलीलों को सुनने के बाद अदालत ने अपीलार्थी को मिली फांसी की सजा निरस्त कर दी।