जबलपुर हाईकोर्ट ने डॉक्टरों की हड़ताल को अवैध करार दिया, तत्काल काम पर लैाटने के निर्देश दिए

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Rajeev Upadhyay
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जबलपुर हाईकोर्ट ने डॉक्टरों की हड़ताल को अवैध करार दिया, तत्काल काम पर लैाटने के निर्देश दिए

Jabalpur. मध्यप्रदेश में जारी डॉक्टरों की हड़ताल  को लेकर मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने बड़ा फैसला लिया है। अदालत ने तत्काल हड़ताल खत्म करने का निर्देश दिया है। हाईकोर्ट ने सुनवाई करते हुए डॉक्टरों की हड़ताल को अवैध बताया, इंद्रजीत कुंवर पाल सिंह ने डॉक्टरों की इस हड़ताल को लेकर याचिका लगाई थी। जिसमें हड़ताल को अवैध करार देने की मांग की गई थी। इस मामले में जस्टिस रवि मलिमठ और जस्टिस विशाल मिश्रा की बेंच में सुनवाई हुई। संजय अग्रवाल, राहुल गुप्ता और नीरजा अग्रवाल ने पैरवी की।




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  • बता दें कि प्रदेशभर में 15 हजार से अधिक सरकारी डॉक्टर बुधवार से अनिश्चितकालीन हड़ताल पर हैं। 1 मई को भी डॉक्टरों ने बांह पर काली पट्टी बांधकर विरोध जाहिर किया था। 2 मई को डॉक्टरों ने सुबह 11 से 1 बजे तक दो घंटे की समयावधि में काम बंद रखा था। सरकारी डॉक्टरों ने आज अपने आंदोलन के तीसरे दिन पूर्ण रूप से हड़ताल शुरू कर दी है। जिसके बाद हाईकोर्ट से यह फैसला आया है। 



    प्रतीकात्मक हड़ताल को भी बताया अवैध



    हाईकोर्ट ने कहा कि हड़ताल पर बैठे सभी डॉक्टर तुरंत काम पर लौटें और अस्पताल में मौजूद अंतिम मरीज का भी इलाज करें। हाईकोर्ट ने ये भी कहा कि डॉक्टर्स आगे से बिना अनुमति हड़ताल नहीं करें। हाईकोर्ट ने भविष्य में टोकन (प्रतीकात्मक) स्ट्राइक को भी अवैध बताया। याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने हड़ताल पर सख्ती दिखाई। हाईकोर्ट के आदेश पर मध्य प्रदेश स्वशासी शासकीय चिकित्सक महासंघ के मुख्य संयोजक राकेश मालवीय ने कहा कि हाईकोर्ट के निर्देश के संबंध में संगठन पदाधिकारियों की मीटिंग बुलाई गई है।



    मध्यप्रदेश में डॉक्टर्स की हड़ताल से स्वास्थ्य सेवाएं पूरी तरह चरमरा गई हैं। बुधवार, 3 मई को प्रदेशभर के 15 हजार से ज्यादा सरकारी डॉक्टर्स हड़ताल पर चले गए। जिससे प्रदेश के 12 मेडिकल कॉलेजों में भर्ती 228 मरीजों के ऑपरेशन नहीं हो सके। हड़ताल से सबसे ज्यादा परेशान गंभीर रूप से बीमार लोग रहे। उन्हें मजबूरन प्राइवेट अस्पतालों का रुख करना पड़ा। हड़ताल का असर प्रदेश के सभी 13 सरकारी मेडिकल कॉलेजों, जिला अस्पतालों, सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों पर दिखाई दिया। यहां अधिकतर मरीज पेरशान होते रहे। हालांकि प्रशासन ने विकल्प के रूप में संविदा और आयुष डॉक्टर्स की सेवाएं लीं, लेकिन उससे की हालात कोई खास असर नहीं पड़ा।




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