जबलपुर के गढ़ा रामलीला के सोंटा वाले हनुमान, इनके दरबार में जिसने की राजनीति, उसकी गद्दी भी गई और करियर भी हुआ नाश

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Rajeev Upadhyay
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जबलपुर के गढ़ा रामलीला के सोंटा वाले हनुमान, इनके दरबार में जिसने की राजनीति, उसकी गद्दी भी गई और करियर भी हुआ नाश

Jabalpur, Chandresh Sharma. जबलपुर के गढ़ा रामलीला मैदान में पीपल के वृक्ष के नीचे विराजे हुए हैं, सोंटा वाले हनुमान। जबलपुर (त्रिपुरी) की प्राचीन बस्ती गढ़ा में सदियों से सोंटा वाले हनुमान का वास रहा। समय-समय पर इनके दरबार का जीर्णोद्धार कराया जाता रहा। क्षेत्रीय लोगों के मन में इनके प्रति गजब की आस्था देखने को मिलती है। लेकिन एक किंवदंती के चलते राजनेता यहां आने से कतराते ही कतराते हैं। वह किंवदंती यह है कि सोंटा वाले हनुमान को अपने मैदान में राजनीति बिल्कुल पसंद नहीं है। जिसने भी इनके दरबार के सामने राजनीति की उसके साथ बुरा ही हुआ। 




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    सोंटा वाले हनुमान के भक्त और गढ़ा की धनुष यज्ञ रामलीला समिति के अध्यक्ष अशोक मनोध्या बताते हैं कि सोंटा वाले हनुमान का क्षेत्र में बड़ा प्रताप है। इन्होंने अनेक दीन और असहाय लोगों की मुरादें पूरी की हैं। जब अशोक मनोध्या से उस किंवदंती के बारे में पूछा गया तो उन्होंने पहले तो ऐसे किसी भी संयोग से इनकार किया,  लेकिन जब उनसे पूछा गया कि कौन-कौन से मुख्यमंत्रियों ने यहां आमसभाएं लीं थीं, तो वे बड़ी रोचकता से बताने लगे कि यहां प्रकाशचंद्र सेठी, सुंदरलाल पटवा और उमा भारती आमसभाएं ले चुकी हैं। 



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    इत्तेफाक की बात यह है कि जब प्रकाशचंद्र सेठी ने गढ़ा के रामलीला मैदान में आमसभा ली तो उनकी मुख्यमंत्री की कुर्सी जाती रही। सुंदरलाल पटवा सीएम तो बने लेकिन बाबरी विध्वंस के बाद उनकी कुर्सी धारा 356 का भाजन बन गई और रही बात उमा भारती की, तो वे भी आम सभा लेने के बाद मुख्यमंत्री तो बनीं लेकिन तिरंगा यात्रा के मामले में उन्हें अपना पद छोड़ना पड़ गया था। 



    एक विधायक की भी गई विधायकी



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    बात साल 2012 की है, पश्चिम विधानसभा क्षेत्र से तत्कालीन महापौर और वर्तमान बीजेपी नगर अध्यक्ष प्रभात साहू दावेदारी ठोंक रहे थे। जो बात तत्कालीन विधायक हरेंद्रजीत सिंह बब्बू को पसंद नहीं आ रही थी। इस बीच गढ़ा रामलीला मैदान में एक राजनैतिक कार्यक्रम का आयोजन हुआ। जिसमें महापौर होने के नाते प्रभात साहू अगुवाई कर रहे थे। उस दौरान विधायक बब्बू और महापौर प्रभात साहू के बीच दबे स्वर में ही सही राजनैतिक छींटाकशी होने लगी। फिर क्या था, स्थानीय लोग कहते हैं कि सोंटा वाले हनुमान को यह बात खल गई और अगले ही विधानसभा चुनाव 2013 में हरेंद्रजीत सिंह बब्बू की विधायकी जाती रही। खास बात यह भी थी कि बब्बू मात्र 933 वोट से हारे थे और करीब हजार वोटों का गड्ढ़ा उन्हीं बूथों में हुआ था जो कि गढ़ा रामलीला मैदान से सटे हुए बूथ थे। 





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