इंदौर की 5 हजार करोड़ की संपत्तियों पर जगत सेठ का दावा, मालवा मिल से लेकर स्वदेशी और होप मिल अपनी संपत्ति बताई   

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Pratibha Rana
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इंदौर की 5 हजार करोड़ की संपत्तियों पर जगत सेठ का दावा, मालवा मिल से लेकर स्वदेशी और होप मिल अपनी संपत्ति बताई
  

संजय गुप्ता, INDORE. इंदौर प्रशासन के पास यहां की पांच हजार करोड़ से अधिक मूल्य की संपत्तियों पर एक नया अनूठा दावा सामने आया है। दुनिया के सबसे अमीर और इंग्लैंड की सभी बैंको से भी ज्यादा संपत्ति में मालिक के रूप में प्रसिद्ध रहे जगत सेठ के प्रबंधकों की ओर से कलेक्टर इंदौर और उज्जैन दोनों क पत्र लिखकर कई संपत्तियों पर अपना दावा जताया है। यह दावा जगत सेठ की ओर से नेशल जस्टिस काउंसिल दिल्ली एनजीओ के चेयरमैन उमेश वीर विक्रम सिंह ने भेजा है। 



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पत्र में यह कहा गया 



वीर विक्रम सिंह द्वारा लिखे पत्र में है कि- लक्ष्मी इम्पीयिरल ऑफ जगत इंडस्ट्रीज (जगत सेठ) की पूरे भारत में 12004 संपत्तियां और अन्य 26 देशों में 2303 संपत्तियां उनके अथवा प्रबंधकों के नाम पर है, इसमें इंदौर में भी 61 संपत्तियां है। जिनमें मालवा यूनाइटेड मिल, हुकुम चंद मिल, राजकुमार मिल, स्वदेशी मिल, लह्मी होम पिल आदि भी है। यह संपत्तियां 1952 से लावारिस थी। यह हमारे पूर्वजों के चलते हमारे पिता के पास आई। लेकिन इसकी जानकारी हमे नहीं थी। 2010 में जब सीबीआई सर्च हुई तब संपत्तियों के दस्तावेज मिले। इन संपत्तियों को पीएम ऑफिस, केंद्रीय गृह मंत्रालय, सभी राज्यों के मुख्य सचिव और अन्य अधिकारियों के साथ सूचना साझा कर संपत्तियों को डीड्स के अनुसार मिलान कर सूचीबद्ध किया जा रहा है।



कलेक्टोरेट से रिकार्ड दिखाने के लिए अधिवक्ता नियुक्त



पत्र में यह भी है कि अजय मिश्रा उज्जैन निवासी को इंदौर और उज्जैन के राजस्व रिकार्ड को व्यवस्थित देखने के लिए नॉमिनी बनाया गया है। यह कलेक्टर इंदौर और उज्जैन के अधीन आने वाले दस्तावेजों को देख सकें। इसके लिए अधिकारियों को निर्देशित करने का कष्ट करें। 



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अब समझते हैं जगत सेठ के मायने क्या हैं



जगत सेठ एक टाइटल है जो फतेह चंद को मुग़ल बादशाह मुहम्मद शाह ने 1723 में दिया था। इसके बाद इस पूरे परिवार को जगत सेठ के नाम से जाने जाने लगा। इस घराने का संस्‍थापक सेठ मानिक चंद को माना जाता है। बताया जाता है कि जगत सेठ महताब राय के पूर्वज मारवाड़ के रहने वाले थे। माणिक चन्द ही थे जिन्होंने बंगाल के जगत सेठ परिवार की बुनियाद रखी थी। माणिक चंद न सिर्फ नवाब मुर्शिद कुली के खजांची थे बल्कि सूबे का लगान भी उनके पास जमा होता था। इन्होंने औरंगजेब को एक करोड़ तीस लाख की जगह पर दो करोड़ लगान भेजा था। 1715 में मुगल सम्राट फर्रुखसियर ने माणिक चंद को सेठ की उपाधि दी थी। इसके लिए एक बड़े से पन्ने पर जगत सेठ खुदवा कर सील बनवाई गयी थी, जो दूसरे दुर्लभ उपहारों के साथ शाही दरबार में फतेह चंद को पेश की गई। इसके बाद ये परिवार जगत सेठ के नाम से जाना जाने लगा। माणिकचंद के बाद परिवार की बागड़ोर फतेह चंद के हाथ में आई जिनके समय में ये परिवार बुलंदियों पर पहुंचा। ढाका, पटना, दिल्ली सहित बंगाल और उत्तरी भारत के महत्वपूर्ण शहरों में इस घराने की शाखाएं थीं। इसका मुख्यालय मुर्शिदाबाद में था। इसका ईस्ट इंडिया कंपनी के साथ लोन, लोन की अदायगी, सर्राफा की खरीद-बिक्री आदि का लेनदेन था। 



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जगत सेठ के पास इंग्लैंड के सभी बैंकों से अधिक धन था



इस घराने की तुलना बैंक ऑफ इंग्लैंड से की गई है। आंकड़ों के मुताबिक 1718 से 1757 तक ईस्ट इंडिया कंपनी जगत सेठ की फर्म से सालाना 4 लाख कर्ज लेती थी। डच और फ्रेंच कंपनियों के साथ भारत के कई राजा-महाराज को भी यह फर्म कर्ज देती थी। जगत सेठ घराने की संपत्‍ती की अगर बात करें तो कहा जाता था कि यह परिवार चाहे तो सोने और चांदी की दीवार बनाकर गंगा की धारा को रोक सकता है। इस घराने ने सबसे अधिक संपत्ती फतेहचंद के दौर में अर्जित की। उस समय उनकी संपत्ती करीब 10,000,000 पाउंड की थी, जो आज के हिसाब से करीब 1000 बिलियन पाउंड के करीब होगी। ब्रिटिश सरकार के दस्तावेजों के अनुसार उनके पास इंग्लैंड के सभी बैंकों की तुलना में अधिक पैसा था, कुछ रिपोर्टो का ये भी अनुमान है कि 1720 के दशक में ब्रिटिश अर्थव्यवस्था जगत सेठों की संपत्ति से छोटी थी। संपत्ती की रखवाली के लिए यह परिवार 2000 से 3000 सैनिकों की अपनी सेना रखता था। आप इनकी दौलत को ऐसे भी आंक सकते हैं कि अविभाजित बंगाल की पूरी जमीन में लगभग आधा हिस्सा उनका था, यानी अभी के असम, बांग्लादेश और पश्चिम बंगाल को मिला लें तो उनमें से आधे का स्वामित्व उनके पास था।



अब कहां है परिवार



जगत सेठ ने प्लासी की लड़ाई से पहले और बाद में काफी रुपए-पैसों से अंग्रेजों को कर्ज के रूप में बड़ी मदद की। बाद में अंग्रेजों नें ईस्ट इंडिया कंपनी के ऊपर जगत सेठ का कोई कर्ज होने से इंकार कर दिया। अंग्रेजों के द्वारा धोखा देने पर जगत सेठ पगला गया। इसके कुछ समय बाद ही जगत सेठ घराने की अवनति शुरू हो गई, फिर भी 1912 ई. तक इस घराने के किसी ना किसी व्यक्ति को जगत सेठ की उपाधि और थोड़ी-बहुत पेंशन अंग्रेज़ों की तरफ़ से मिलती रही। 1912 ई. के बाद यह पेंशन भी बंद हो गई। इस तरह एक सेठ का नाम लुप्त हो गया, अब इस परिवार के बारे में अधिकृत अधिकारी जानकारी नहीं है।

 


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