JHABUA. जब किसी बच्चे को सर्दी या जुकाम हो जाता है तो माता-पिता इलाज कराने उसे डॉक्टर के पास लेकर जाते हैं। लेकिन मप्र के झाबुआ में बुखार होने पर शिशुओं को तांत्रिका के यहां ले जाया जाता है, वहीं जब बच्चे की हालत नाजुक हो जाती है तो उसे अस्पताल लेकर आते हैं। ऐसा ही मामला इन दिनों झाबुआ अस्पताल में देखने को मिला है। जहां एक नहीं बल्कि तीन बच्चों के शरीर पर गर्म सिरियों का दाग पाया गया। लेकिन उनके माता-पिता निशान कहां से आए हैं ये बताने राजी नहीं हैं।
सीने व पेट पर गर्म सलाखों के दाग
झाबुआ जिला अस्पताल के पीआईसीयू वार्ड में तीनों बच्चे भर्ती हैं। इनके अलावा दो बच्चे अलग-अलग वार्ड में हैं। इन सभी के सीने और पेट पर गर्म सलाखों से दागने के निशान हैं। आदिवासी बोली में इसे डामना कहा जाता है। ये दर्द इन बच्चों को इनके ही परिवार वालों ने दिलाया। सूत्रों की मानें तों बच्चों को सर्दी, जुकाम और निमोनिया से ग्रसित होने पर घर पर इलाज किया। वहीं, अस्पताल ले जाने की बजाय पैरेंट्स तांत्रिक के पास ले गए। तांत्रिक ने भी गर्म लोहे के सरियों से दाग दिया और लौटा दिया। जब बच्चे मौत के करीब पहुंच गए तो परिवार वाले अस्पताल लेकर आए। अब यहां इनका उपचार किया जा रहा है।
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इन बच्चों के शरीर पर दाग
जिला अस्पताल में भर्ती अजय सिर्फ 7 महीने का है। उसे 20 अप्रैल को ही पीआईसीयू में भर्ती किया गया। इस बच्चे को पीलियाखदान गांव से माता-पिता लेकर आए। शिशु लगभग 20 दिनों से बीमार है। परिवार अब ये बताने को तैयार नहीं है कि ये निशान कहां लगवाए। वहीं, दूसरा बच्चा मेशरा की उम्र महज 2 महीने की है, उसकी हालत देखकर दिल दहल जाता है। इस छोटी सी उम्र में वो ये दर्द कैसे सह रही होगी। पूरे 7 बार उस पर गर्म सरिया दागा गया, वह हड़मतिया गांव की है। 6 माह का कृष्णा समोई गांव से आया है। उसके परिवार ने तांत्रिक से डामना लगवाया। आदिवासी बोली में इस तरह सरियों से दागने को डामना कहते हैं। परिजन का कहना है, तांत्रिक के बारे में नहीं बता सकते। इससे समाज में विवाद होने का डर है।
हर साल आते हैं ऐसे केस
जिला अस्पताल में ऐसे 30 से अधिक केस हर साल आते हैं। खासतौर से सर्दी, जुकाम के सीजन में। ये बच्चे निमोनिया के मरीज होते हैं। एसएनसीयू प्रभारी डॉक्टर आईएस चौहान ने बताया, बच्चों को जब निमोनिया बढ़ जाता है, तब कफ के कारण सांस लेने में दिक्कत होती है। बच्चा हाफने लगता है। इसे गांवों में हाफलिया कहते हैं और इसका उपचार कराने तांत्रिक के पास जाते हैं। जब तक इन बच्चों को जिला अस्पताल लाते हैं, तब तक उनकी स्थिति काफी खराब हो जाती है। सबसे पहले उन्हें ऑक्सीजन की जरूरत होती है। ऑक्सीजन और प्रोटोकाल के मुताबिक उपचार मिलने पर वो ठीक होने लगते हैं।