एसआर रावत. जुन्नारदेव के जंगल में एक ठेकेदार अर्जुन भाई से भेंट हुई। ठेकेदार ने बातचीत में कहा कि फॉरेस्ट महकमा का चीफ कंजरवेटर तो हमारे साथ ही जंगल में रहता है। उसकी बात सुनकर मुझे कुछ समझ में नहीं आया। हमारे चीफ कंजरवेटर तो एक ही थे और उनका हेड क्वार्टर रीवा में था। ठेकेदार की बात कुछ दिन सोचता रहा और अपने दैनिक कामों में व्यस्त हो गया। फॉरेस्ट महकमे द्वारा कूपों का नीलाम किया जाता था, जिसमें हैमर से जड़ के पास और छाती गुलाई पर मार्क किए गए पेड़ों को ही काटने की अनुमति ठेकेदार को होती थी। पेड़ काटने के उपरांत उसके टुकड़े लट्ठे के रूप में बनाए जाते थे। वैध रूप से काटे गए लट्ठों के दोनों सिरों पर पॉसिंग हैमर का निशान कूप गार्ड द्वारा लगाकर उनकी पॉसिंग की जाती थी। कूप गार्ड को कूप हैमर डीएफओ ऑफिस से जारी किया जाता था। जब लट्ठे कूप से बाहर निकाले जाते थे तो हैमर का निशान लगे हुए लट्ठों को वैध माना जाता था। यदि ठेकेदार अवैध रूप से कोई पेड़ काटकर उनके लट्ठे बना लेता था तो उन्हें जब्त कर नियमानुसार कार्रवाई की जाती थी। कूप गार्ड इस तरह के अवैध रूप से काटे गए लट्ठों के ऊपर भी पॉसिंग हैमर के निशान लगा देता तो वे लट्ठे वैध माने जाते थे। इस तरह के लट्ठे ठेकेदार द्वारा आसानी से निकाल लिए जाते थे।
कूप गार्ड को ही स्पाॅट पर निर्णय लेने का अधिकार
इस तरह के अवैध कामों के लिए ठेकेदार की दृष्टि में कूप गार्ड से बढ़कर फॉरेस्ट महकमे में कोई व्यक्ति नहीं हो सकता था। पेड़ों की लकड़ियों को लट्ठों के रूप में अवैध रूप से ले जाने पर जब मेरी नज़र पड़ी तब मुझे तुरंत समझ में आया कि अर्जुन ठेकेदार ने मुझसे क्यों कहा था कि चीफ कंजरवेटर तो उनके साथ जंगल में रहता है। कूप गार्ड को ही स्पॉट पर निर्णय लेने का अधिकार था। उसके पास ही सबसे बड़ी शक्ति कूप हैमर हुआ करती थी। यह मेरे लिए चौंका देने वाली जानकारी थी। ठेकेदार की बातचीत से ही स्पष्ट हुआ कि कूप गार्ड फॉरेस्ट महकमे की निचली पायदान का सबसे छोटा कर्मचारी था, लेकिन उसका विशेष महत्व था।
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कार मैकेनिक बनाम शिकारी
वर्ष 1934 मॉडल की मेरी फोर्ड कार पुरानी तो थी ही, इसलिए उसमें कुछ न कुछ काम करवाना ही पड़ता था। कार ठीक करवाने के मन्नू गैरेज जाता रहता था। गैरेज के हेड मैकेनिक मन्नू अपने काम में होशियार तो थे ही, वे अंग्रेजी फटाफट बोलते थे। उनके सहायक के रूप में उनके तीन भाई गैरेज में काम करते थे। मैं जब भी कार को ठीक करवाने गैरेज में जाता तो मुझे जानकारी मिलती कि मन्नू कहीं काम से बाहर गए हुए हैं। ज्यादा पूछताछ करने पर जानकारी मिलती कि वे शिकार पर गए हैं। बार-बार यह उत्तर मिलता रहा। मन्नू के इतने ज्यादा शिकार करने की खोजबीन में लग गया। जानकारी मिली कि नागपुर में एल्विन कूपर नाम से एक कंपनी संचालित थी जो विदेश से शिकार के शौकीन व्यक्तियों को आमंत्रित कर उनसे मोटी रकम वसूल कर उनके ठहरने व खाने-पीने और शिकार करवाने की व्यवस्था करती थी।
विदेशी शौकीन पर्यटकों की शिकार से लेकर खाने-पीने तक की व्यवस्था
हेड मेकेनिक मन्नू इस कंपनी की ओर से विदेश से आने वाले शिकार के शौकीन पर्यटकों को जंगल में ले जाकर उनके ठहरने व खाने-पीने की व्यवस्था कर उन्हें शिकार करवाते थे। इस सब काम के लिए मन्नू को अच्छा पैसा मिलता था। वह ऐसा समय था जब शिकार पर कोई प्रतिबंध नहीं था। प्रत्येक फॉरेस्ट डिवीजन में डीएफओ को गेम परमिट जारी करने का अधिकार प्राप्त था। गेम परमिट में मारे जाने वाले वन्य जानवरों की संख्या दर्शाई जाती थाी। एक गेम परमिट पर एक टाइगर, एक तेंदुआ, एक सांभर व दो हिरण के शिकार की अनुमति दी जाती थी। जितने जानवर मारे जाते थे, उनकी रॉयल्टी आवेदक से वसूल की जाती थी। फॉरेस्ट महकमे के गजेटेड ऑफिसर को ड्यूटी पर रहते समय शिकार करने की अनुमति थी, जिसके लिए उन्हें कोई परमिट लेने की ज़रूरत नहीं थी, परन्तु शिकार किए गए जानवर की रॉयल्टी उन्हें जमा करनी होती थी।
प्रमोशन के साथ मिली विभागीय जांच की जिम्मेदारी
मैं जब तामिया के दौरे पर था और भांडी होते हुए झौत गांव के स्कूल में कैम्प कर जंगल के निरीक्षण में व्यस्त था, उसी समय जानकारी मिली कि मुझे डीएफओ के पद पर पदोन्नत कर बिलासपुर पदस्थ किया गया है। बिलासपुर में मुझे नार्थ डिवीजन के साथ बिलासपुर फॉरेस्ट डिविजन का डबल चार्ज दिया गया। चार्ज लेने के पूर्व बिलासपुर फॉरेस्ट डिवीजन के जंगलों में बड़े पैमाने में पेड़ों की अवैध कटाई कर निकासी की गई थी। इस मामले में एक फॉरेस्ट रेंजर, चार-पांच फॉरेस्ट गार्ड व फॉरेस्टर पर प्रकरण दर्ज कर विभागीय जांच व अन्य कार्रवाई की जानी थी। विभागीय जांच व अन्य कार्रवाई मुझ से चार्ज लेने वाले डीएफओ द्वारा की जानी थी। यह डीएफओ महोदय और उस समय के तत्कालीन चीफ फॉरेस्ट कंजरवेटर मध्य भारत प्रांत के अधिकारी थे, जो नए मध्यप्रदेश के गठन के बाद मध्यप्रदेश में पदस्थ हुए थे। पूर्व में दोनों एक साथ कार्यरत रहे थे, इस नाते उनके बीच घनिष्ठता व लगाव स्वाभाविक ही था। उस समय मध्यप्रदेश में केवल एक चीफ फॉरेस्ट कंजरवेटर हुआ करते थे, जो पूरे प्रदेश के फॉरेस्ट महकमे के मुखिया होने के नाते नियंत्रण रखते थे। आयु कम होने के कारण वे मध्यप्रदेश के चीफ फारेस्ट कंजरवेटर लगभग तेरह वर्ष तक रहे। डीएफओ साहब ने चीफ कंजरवेटर साहब के बिलासपुर दौरे के समय स्वयं को जिम्मेदारी से बचाते हुए अवैध कटाई मामले की विभागीय जांच का दायित्व मुझ पर डाल कर जांच अधिकारी नियुक्ति संबंधी आदेश जारी करवा दिया। गंभीरता के साथ विभागीय जांच करने का परिणाम यह निकला कि सभी कर्मचारी अवैध कटाई में दोषी पाए गए।
चट्टानों में ब्लॉस्ट से पलायन को मजबूर हुआ टाइगर
बिलासपुर फॉरेस्ट डिवीजन में स्थित रेलवे स्टेशन खुडरी और खोंगसरा के बीच दोहरी रेलवे पांतें बिछाने का काम किया जा रहा था। पहाड़ी क्षेत्र होने के कारण वहां बारूद लगाकर चट्टानों को तोड़ा जाता था। धमाकों की आवाज़ से आसपास के फॉरेस्ट एरिए के जंगली जानवर वह स्थान छोड़कर सुरक्षित स्थानों की खोज में इधर-उधर भटकने लगे। कुछ जंगली जानवर पलायन करने के लिए विवश हो गए। टाइगर व तेंदुआ को अपना स्वाभाविक भोजन जैसे छोटे जानवर हिरण आदि आसानी से उपलब्ध नहीं हो पा रहे थे। इसका दुष्परिणाम यह हुआ कि टाइगर ने गांव के लोगों को अपना शिकार बनाना शुरू कर दिया। हम लोग जब गांव पहुंचे तो जानकारी मिली कि रात के अंधेरे में एक महिला जब घर से बाहर निकल रही थी तब एक टाइगर उसको उठा कर जंगल की ओर ले गया। गांव वालों को सुबह उस महिला के कपड़े व अवशेष ही देखने को मिले।
धूर्त साधू महाराज ने भोले भाले आदिवासियों को बांटे ज़मीन के पट्टे
पेंड्रा रेंज में पकरिया फॉर्म के पास एक साधु महाराज रहते थे। उन्होंने आसपास के गांव के भोले भाले आदिवासियों को बुलाकर खेती करने हेतु वन भूमि के पट्टे वितरण करने शुरू कर दिए। साधू द्वारा जो कागज उन ग्रामीण आदिवासियों को दिया जाता था, उसमें आवंटित की गई वन भूमि का क्षेत्रफल दर्शाया जाता और साथ ही लिखा जाता कि कलेक्टर के आदेशानुसार उन्हें वन भूमि आवंटित की जाती है। इस तरह की कई पर्चियां रेंज ऑफिसर ने इकट्ठी कर के फॉरेस्ट महकमे के वरिष्ठ अधिकारियों तक पहुंचाई गईं। डीएफओ होने के नाते मैंने बिलासपुर के कलेक्टर एलबी सरजे को इस संबंध में शिकायत की। पत्र मिलते ही साधू महाराज के खिलाफ तुरंत प्रशासनिक कार्रवाई की गई। साधू महाराज को फर्जी काम करने के लिए पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया और उनके विरूद्ध नियामानुसार कार्रवाई की गई। (लेखक मध्यप्रदेश के प्रधान मुख्य वन संरक्षक रहे हैं)