Indore. 72 साल, 23 मेयर.. महिलाओं को सिर्फ दो बार मौका मिला, दोनों भाजपा की

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Lalit Upmanyu
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Indore. 72 साल, 23 मेयर..  महिलाओं को सिर्फ दो बार मौका मिला, दोनों भाजपा की



Indore. इंदौर नगर निगम में महापौर व्यवस्था लागू हुए 72 साल हो गए हैं। इन सात दशक में सिर्फ दो बार ऐसा अवसर आया जब शहर का नेतृत्व महिला मेयर ने किया। दोनों ही  भाजपा से रहीं। शेष 21 मौकों पर पुरुष ही मेयर रहे जिनमें से अधिकांश कांग्रेस समर्थित रहे। इस बार इंदौर को चौबीसवां मेयर मिलेगा। 



वैसे इंदौर में पार्षदी की व्यवस्था 1920 से शुरू हो गई थी। तब यह नगर निगम को नगर सेविका कहा जाता था और उस समय केवल 15 पार्षद होते थे। ये सब मनोनीत किए जाते थे। तब शहर काजी भी बतौर पार्षद मनोनीत होते थे। इनके अलाव दो महिलाएं और बारह पुरुषों का मनोनयन होता था। अगली परिषद में पार्षदों की संख्या 22  हो गई।





1950 में नगर पालिका बनी





नगर सेविका की व्यवस्था करीब तीस साल चली फिर इंदौर नगर पालिका का दर्जा मिल गया और पार्षद भी बढ़कर 40 हो गए। यहां से महापौर की व्यवस्था भी शुरू हुई और ईश्वर चंद जैन शहर के पहले महापौर बने। यह पार्षदी व्यवस्था का चौथा कार्यकाल था। पांचवी परिषद तक भी पार्षदों की संख्या चालीस ही रही और हर बार पुरुष मेयर मिलता रहा। शहर के दूसरे मेयर पुरुषोत्तम विजय बने।





पांच-पांच दिन के लिए भी मेयर बने





उस समय एक साल के लिए मेयर बनाए जाते थे लिहाजा कार्यकाल पूरा होते ही नए मेयर के मनोनयन की प्रक्रिया शुरू हो जाती थी। इंदौर नगर पालिका के कार्यकाल में दो मेयर ऐसे भी रहे जिनका कार्यकाल पांच-पांच दिन का रहा। ये मेयर थे प्रभाकर अड़सुले और आर.एन. जुत्शी। 





ये मेयर रहे इंदौर में अभी तक





-ईश्वरचंद जैन





-पुरुषोत्तम विजय





-प्रभाकर अड़सुले



-बालकृष्ण गोहर



-सरदार शेरसिंह



-डॉ. बी.बी. पुरोहित



-आर.एन. जुत्शी



-नारायण प्रसाद शुक्ला



-भंवरसिंह भंडारी



-लक्ष्मणसिंह चौहान



-लक्ष्मीशंकर शुक्ला



-चांदमल गुप्ता ( दो बार)



-सुरेश सेठ



-राजेंद्र धारकर



-श्रीवल्लभ शर्मा



-नारायम धर्म



-लालचंद मित्तल



-मधुकर वर्मा



-कैलाश विजयवर्गीय



-उमाशशि शर्मा



-कृष्णमुरारी मोघे



-मालिनी गौड़





भाजपा ने चार साल में चार मेयर बना दिए





1983 में मेयर का कार्यकाल चार साल का कर दिया गया था। तब निगम में साठ पार्षद होते थे। भाजपा को बहुमत मिला। मेयर का चुनाव तब पार्षद ही करते थे। मेयर गैर पार्षद भी हो सकता था। भाजपा तब नई-नई उभरकर आई थी। युवा नेतृत्व तो था नहीं लेकिन ऐसे नेताओं की भरमार थी जो जनसंघ के जमाने से पार्टी का काम कर रहे थे। सभी की वरिष्ठता तकरीबन समान थी लिहाजा किसी एक नाम पर सहमति नहीं बन पाई तो पार्टी ने नया रास्ता निकाला। चार साल के कार्यकाल को चार हिस्सों में बांट दिया और शहर के चार सबसे वरिष्ठ नेताओं को उसमें समायोजित कर दिया। हर नेता अपने कार्यकाल का एक साल पूरा होते ही इस्तीफा दे देता और उसकी जगह दूसरा मेयर बना जाता। ऐसा चार साल तक चलता रहा। इन चार सालों में राजेंद्र धारकर (पहला साल), श्रीवल्लभ शर्मा (दूसरा साल), नारायम धर्म (तीसरा साल) और  लालचंद मित्तल चौथे साल में मेयर रहे।





2005 में मिली पहली महिला मेयर





नगर सेविका, नगर पालिका से नगर निगम तक के 72 साल के सफर में इंदौर को पहली महिला मेयर 2005 में मिली। तब तक आरक्षण व्यवस्था लागू हो चुकी थी। उस साल इंदौर की सीट सामान्य महिला के लिए आरक्षित हुई थी।  भाजपा ने उमाशशि शर्मा को उम्मीदवार बनाया था, जबकि कांग्रेस ने शोभा ओझा को। शर्मा को जीत मिली थी। दूसरी महिला मेयर भी भाजपा से ही मिली। 2015 में  जब इंदौर मेयर की सीट ओबीसी महिला के लिए आरक्षित हुई। विधायक मालिनी गौड़ को अवसर मिला जो जीतीं और 2020 में  उनका कार्यकाल पूरा हुआ।  







 



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