सिंधिया ने अंबेडकर की पढ़ाई का खर्च उठाने वाले अपने ससुराल पक्ष का जिक्र किया, जानें बाबा साहब के मददगार और कहां ब्याहे ''महाराज''

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Atul Tiwari
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सिंधिया ने अंबेडकर की पढ़ाई का खर्च उठाने वाले अपने ससुराल पक्ष का जिक्र किया, जानें बाबा साहब के मददगार और कहां ब्याहे ''महाराज''

GWALIOR. मध्य प्रदेश में चुनावी मौसम चल रहा है। इस साल आखिर में प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने हैं। इस बीच 16 अप्रैल को ग्वालियर में अंबेडकर महाकुंभ का आयोजन हुआ। इसमें मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया भी शामिल हुए थे। इसमें सिंधिया ने कहा कि मेरे ससुराल पक्ष यानी गायकवाड़ राजवंश ने बाबा साहब अंबेडकर को पढ़ने लिए विदेश भेजा था। मराठा होने के नाते मैं बाबा साहब का बहुत सम्मान करता हूं। कांग्रेस ने बाबा साहब के खिलाफ ना सिर्फ प्रत्याशी उतारा था, बल्कि जवाहर लाल नेहरू खुद उनके खिलाफ प्रचार करने गए थे। ज्योतिरादित्य सिंधिया की पत्नी प्रियदर्शनी गायकवाड़ राजघराने से ही हैं। जानिए, किस गायकवाड़ शासक ने अंबेडकर को स्कॉलरशिप दी और विदेश भेजा...



बड़ौदा के गायकवाड़ महाराज ने की थी अंबेडकर की मदद



भीमराव अंबेडकर का जन्म 14 अप्रैल 1891 को मध्य प्रदेश के महू में हुआ था। उनका ताल्लुक महार जाति से था। बचपन से ही आर्थिक और सामाजिक भेदभाव देखने वाले अंबेडकर ने कठिन परिस्थितियों में पढ़ाई की। उन्हें स्कूल में काफी भेदभाव झेलना पड़ा था। युवा अंबेडकर उच्च शिक्षा के लिए विदेश जाना चाहते थे। वे हायर एजुकेशन के लिए कोलंबिया जाना चाहते थे। बता दें कि युवा भीमराव आंबेडकर अपनी स्नातकोत्तर पढ़ाई कोलंबिया यूनिवर्सिटी से करना चाहते थे। उनके विदेश में पढ़ने के सपने को साकार करने के लिए बड़ौदा के एक महाराजा ने मदद की थी।



1913 में अंबेडकर ने कोलंबिया यूनिवर्सिटी में पढ़ाई के लिए बड़ौदा महाराजा के यहां आर्थिक मदद के लिए आवेदन दिया। बड़ौदा के तत्कालीन महाराजा सयाजीराव गायकवाड़ तृतीय के पास जब अंबेडकर का आवेदन पहुंचा तो उन्होंने इसे मंजूर कर सालाना स्कॉलरशिप देना शुरू किया। इस स्कॉलरशिप की मदद से अंबेडकर का विदेश जाकर पढ़ाई करना आसान हो गया।



बड़ौदा रियासत में ही लेजिस्लेटिव असेंबली के सदस्य बनाए गए थे अंबेडकर



अंबेडकर जब विदेश से पढ़ाई कर वापस लौटे, तो उन्हें बड़ौदा राज्य के लेजिस्लेटिव असेंबली का सदस्य बनाया गया। इसके साथ ही राज्य में एक कानून बनाया गया कि राज्य में अनुसूचित जाति (एसटी) के लोग भी चुनाव लड़ सकें। माना जाता है कि पिछड़े वर्ग, महिलाओं के साथ आर्थिक तौर पर कमजोर लोगों के लिए बड़ौदा राज्य में चलाई जा रही योजनाओं का अंबेडकर पर भी असर पड़ा, जो संविधान निर्माण के दौरान नजर आया।



कौन थे सयाजीराव गायकवाड़ तृतीय?



सयाजीराव गायकवाड़ 1875 से लेकर 1939 तक बड़ौदा रियासत के महाराजा रहे। उन्होंने अपने शासनकाल में महिलाओं की शिक्षा के कई कदम उठाए। उनके समय लड़कियों के लिए प्राइमरी एजुकेशन फ्री थी और उन्होंने लड़कियों के लिए कई स्कूलों का निर्माण करवाया। 1939 में उनका निधन हो गया। सयाजीराव तृतीय अपने राज्य में शिक्षा, कला, नृत्य आदि क्षेत्रों से जुड़ी बड़ी हस्तियों को संरक्षण देने में भी आगे रहते थे। ज्योतिबा फुले, दादाभाई नौरोजी, लोकमान्य तिलक, महर्षि अरविंद समेत कई हस्तियों की भी महाराजा सयाजीराव ने आर्थिक मदद दी थी।




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बाएं से- महर्षि अरबिंदो, बड़ौदा के महाराज सयाजीराव गायकवाड़ तृतीय और भीमराव अंबेडकर।




यहां फैली थी मराठा सल्तनत



शिवाजी ने शासन चलाने के लिए अष्ट प्रधान (मोटे रूप में 8 मंत्री) का गठन किया था। इसमें सबसे प्रमुख पेशवा थे। शिवाजी के निधन के बाद पेशवा प्रमुख हो गए। बाद में मराठा साम्राज्य इन 5 शाखाओं में विभक्त हो गया- पुणे में पेशवा, बड़ौदा के गायकवाड़, इंदौर के होल्कर, नागपुर के भोंसले और ग्वालियर के सिंधिया।



गुजरात के गायकवाड़ राजवंश की हैं ज्योतिरादित्य की पत्नी



ज्योतिरादित्य सिंधिया की पत्नी प्रियदर्शिनी बड़ौदा के गायकवाड़ राजघराने से आती हैं। उनके पिता संग्राम सिंह थे, जो बड़ौदा के आखिरी महाराजा रहे प्रताप सिंह के तीसरे बेटे थे। प्रियदर्शिनी की मां नेपाल की राजकुमारी हैं। ज्योतिरादित्य और प्रियदर्शिनी की 1991 में पहली बार मुलाकात हुई थी और तभी सिंधिया ने शादी करना तय कर लिया था। 1994 में दोनों की शादी हो गई। उस समय प्रियदर्शिनी की उम्र 19 साल थी। ज्योतिरादित्य ने एक इंटरव्यू में बताया था कि प्रियदर्शिनी को देखते ही मुझे लगा था कि वो मेरे लिए ही बनी हैं। 




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ज्योतिरादित्य सिंधिया (एकदम दाएं), पत्नी प्रियरदर्शिनी (बाएं से दूसरी), बेटा महानआर्यमन और बेटी अनन्या।




समझें, ग्वालियर-चंबल की सीटों का गणित



ग्वालियर-चंबल में कुल 34 विधानसभा सीटें आती हैं। इसमें से 7 सीटें आरक्षित यानी एससी-एसटी के लिए हैं। इसके अलावा कई सीटों पर एससी-एसटी निर्णायक भूमिका में माने जाते हैं। यह भी माना जाता है कि 2018 चुनाव में ग्वालियर-चंबल से ही बीजेपी को पटखनी मिली थी। अब सिंधिया एससी-एसटी वर्ग को बीजेपी के पक्ष में करने की कवायद कर रहे हैं।



सिंधिया के बयान का एनालिसिस



वरिष्ठ पत्रकार जयराम शुक्ल का कहना है- चुनाव के समय सभी नेता अपने रिश्ते-नाते गाढ़े करने लगते हैं। बीजेपी में आने के बाद सिंधिया को असुरक्षा बोध है, जिसे वे लगातार दूर करने में लगे रहते हैं। अंबेडकर पर बयान देना उनका उसी कवायद का हिस्सा है। सिंधिया बताना चाह रहे हैं कि आप (अंबेडकर-दलित समर्थक पार्टियां) जो अंबेडकर की पूजा कर रहे हो, स्मारक बनवा रहे हो, उनसे हमारा (बीजेपी) नाता गहरा है। बीते दिनों राहुल गांधी पर जो सिंधिया की बयानबाजी आई, वो भी इसी असुरक्षा के भाव से थी कि हम हर हाल में बीजेपी के हैं। अब तक जो भी रिपोर्ट्स आ रही हैं, उनके मुताबिक ग्वालियर-चंबल में असल बीजेपी और सिंधिया बीजेपी को लेकर लड़ाई दिखती है। बीजेपी के केपी यादव ने सिंधिया को हराया था, वे खुद अनकंफर्ट दिख रहे हैं और हर मंच से कोई ना कोई कमेंट कर देते हैं। पिछले चुनाव में जिस ग्वालियर चंबल में बीजेपी की जमीन खिसक गई थी, वहां परिस्थितियां बदली हुई हैं। लेकिन इस बार भी बीजेपी को लेकर जो डाइलेमा, भ्रम पिछले था, वैसा ही दिख रहा है।


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