ग्रीनबेल्ट पर अतिक्रमण मामले में CS को 28 तक देना है एनजीटी में जवाब, इधर जेके हास्पिटल के सामने कलियासोत नदी को ही पूर दिया

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Rahul Sharma
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ग्रीनबेल्ट पर अतिक्रमण  मामले में CS को 28 तक देना है एनजीटी में जवाब, इधर जेके हास्पिटल के सामने कलियासोत नदी को ही पूर दिया

Bhopal. राजधानी भोपाल की इकलौती नदी कलियासोत का रसूखदार गला घोटने में लगे हुए हैं। 36 किमी लंबी इस नदी पर 500 से ज्यादा अतिक्रमण (Encroachment) इसका अस्तित्व मिटाने पर तुले हैं। ये अतिक्रमण नदी के ग्रीन बेल्ट पर हुए हैं, जबकि नदी के एफटीएल यानी फुल टेंक लेवल से दोनो ओर 33—33 मीटर एरिया ग्रीनरी के लिए आरक्षित है। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल यानी एनजीटी ने 2014 में ही नदी के अतिक्रमण को हटाने का आदेश दिया, पर इसका पालन कभी हुआ ही नहीं। एनजीटी में नॉन कम्प्लायंस याचिका पर सुनवाई चल ही रही है, शासन को जवाब देना है कि ग्रीन बेल्ट से अतिक्रमण क्यों नहीं हटे, 28 अप्रैल को प्रदेश के चीफ सेकेटरी यानी सीएस को इस मामले में जवाब पेश करना है। ये मामला वैसे ही शासन के पसीने छुड़ा रहा है और इधर जेके हॉस्पिटल के सामने कलियासोत नदी की ही पूर दिया गया, मतलब नदी के उपर ही अतिक्रमण कर दिया। इसे सिस्टम पर जोरदार तमाचा न कहें तो फिर क्या कहें। एनजीटी का आर्डर है अतिक्रमण हटाओ, नॉन कम्प्लायंस याचिका पर सुनवाई हो रही है, ये मामला नदी के ग्रीन बेल्ट का है और इधर जेके हॉस्पिटल के सामने अब ग्रीन बेल्ट की बात तो छोड़ ही दीजिए पूरी नदी को ही खत्म करने का काम शुरू कर दिया है। 



नदी को मिट्टी रेत से पूरा, रिटेनिंग वॉल बना रहे



सबसे पहले अब हम आपको यह बता दें कि जेके हॉस्पिटल के सामने कलियासोत नदी पर आखिर चल क्या रहा है। दरअसल जेके हॉस्पिटल से लगकर नदी पर अतिक्रमण कर एक रिटेनिंग वॉल बनाई जा रही है। इसके लिए हॉस्पिटल परिसर के अंदर से ही नदी में जाने के लिए एक चौड़ा लेकिन कच्चा रास्ता बनाया गया। हॉस्पिटल के सामने वाले इलाके में पूरी नदी को रेत, मिट्टी, मुरम से पूर दिया गया और उसे फिर समतल कर दिया गया। कलियासोत नदी में जो थोड़ा बहुत पानी है उसे निकलने के लिए सिर्फ 2 से 3 फीट का एक छोटा सा नाला रहने दिया गया। पर्यावरणविद् डॉ. सुभाष सी पांडे का कहना है कि जिस तरह से नदी को खत्म किया जा रहा है इससे तो यही लगता है कि अधिकारियों से मिलीभगत है। इन्हें न एनजीटी का कोई डर है और न ही हाईकोर्ट के आर्डर की कोई चिंता, ये पूरी तरह से बेखौफ हैं। 



कलियासोत में भूतों की एंट्री!



कलियासोत मामले में अब भूतों की एंट्री भी हो चुकी है। हम ऐसा इसलिए कह रहे हैं क्योंकि नदी को पूरकर वहां रिटेनिंग वॉल तो बनाई जा रही है, लेकिन इसे कोई भी एजेंसी या संस्था नहीं बना रही, मतलब संभवत: भूत ही इस दीवार का निर्माण करा रहे हैं। कलियासोत नदी के अंदर जाने के लिए रास्ता जेके हॉस्पिटल के मरच्यूरी कमरे के पास से गुजरा है, रिटेनिंग वॉल भी हॉस्पिटल की ओर ही बनाई जा रही है, इसलिए द सूत्र ने सबसे पहले एलएनसीटी ग्रुप (जेके हॉस्पिटल एलएनसीटी ग्रुप के अंतर्गत ही आता है) के सेकेटरी अनुपम चौकसे से बात की तो उन्होंने जेके हॉस्पिटल द्वारा इस तरह के निर्माण करने से साफ मना कर दिया, हालांकि नदी की ओर जाने के लिए रास्ता दिए जाने की बात पर कहा कि गवर्मेंट रास्ता मांगेगी तो हमें देना होगा, हालांकि वे ये नहीं बता पाए कि सरकार का कौन सा विभाग यह सब काम कर रहा है। कलियासोत पर एक दूसरे इलाके में रिटेनिंग वॉल के लिए करीब डेढ़ साल पहले भोपाल नगर निगम ने भी टेंडर बुलाए थे, हो सकता है ये काम नगर निगम का हो, इसलिए द सूत्र ने नगर निगम के अस्सिटेंट इंजीनियर मनीष सिंह से बात की तो उन्होंने भी जेके हॉस्पिटल के सामने नदी में रिटेनिंग वॉल बनाने से मना कर दिया। कुल मिलाकर जेके हॉस्पिटल और नगर निगम दोनो ही ये वॉल नहीं बना रहा तो ये माना जाए कि इसका निर्माण भूतों द्वारा किया जा रहा है।  



अतिक्रमण पूरे सिस्टम को खुला चैलेंज



राजधानी भोपाल में सरकार और तमाम आला अधिकारियों की नाक के नीचे खुलेआम नदी को खत्म करना किसी ऐरे गैरे के बस की बात नहीं। कलियासोत नदी के अंदर ही जिस बेखौफ तरीके से जेके हॉस्पिटल के सामने यह काम चल रहा है उसे देखकर तो यही लगता ​है कि ये पूरे सिस्टम को ही खुला चैलेंज है कि आप तो बात सिर्फ ग्रीन बेल्ट की ही कर रहे थे हम तो नदी के अंदर तो घुस गए। दीवार का निर्माण हो रहा है, नदी को पूरी तरह से इस इलाके में खत्म कर दिया है, लेकिन जिम्मेदार एजेंसी पूरे मामले में चुप बैठी है। न कोई मॉनीटरिंग और न ही कहीं कोई कार्रवाई। 



अब बात नियम कायदे की



टीएंडसीपी के मास्टर प्लान के अनुसार कलियासोत नदी के दोनो ओर एफटीएल से 33 मीटर का दायरा ग्रीन बेल्ट के लिए आरक्षित है, मतलब यहां सिर्फ ग्रीनरी डेवलप हो सकती है। इस दायरे के अंदर के तमाम निर्माण अवैध कहलाएंगे, भले ही वह सरकारी एजेंसी करे या कोई प्राइवेट निर्माण हो। यह एनजीटी के 2010 में दिए गए आदेश का सीधा उल्लंघन है वहीं नदी के प्रवाह को इस तरह से डिस्टर्ब करना वॉटर एक्ट 1974 का भी खुला उल्लंघन है। बता दें कि पर्यावरणविद डॉ सुभाष सी पांडे ने साल 2012 में कलियासोत को बचाने के लिए एनजीटी में याचिका लगाई थी। जिसके बाद एनजीटी ने 20 अगस्त 2014 को कलियासोत नदी के संरक्षण के लिए ऐतिहासिक फैसला सुनाया था। पर इसका शत-प्रतिशत पालन कभी हुआ ही नहीं।  



मंडीदीप हादसे से भी नहीं लिया सबक



बीते साल 2022 में अतिवृष्टि के कारण जब कलियासोत डेम के सभी गेट को खोला गया तो मंडीदीप में बना कलियासोत ब्रिज का पूरा एक पोर्च ही बह गया जो अब तक नहीं बन पाया है। उस दौरान कोई जानमाल की हानि तो नहीं हुई, लेकिन शासन ने इस हादसे से भी कोई सबक नहीं लिया। जानकार बताते हैं कि कलियासोत डेम के गेट खोलने के बाद जब नदी में पानी बढ़ा तो नदी के मुहाने पर हुए अतिक्रमण के कारण ही अचानक फोर्स बढ़ गया जिसे ब्रिज सहन नहीं कर पाया और पूरा एप्रोच ही बह गया, जबकि इस पुल का निर्माण ही 2020—21 में हुआ था। पर्यावरणविद् डॉ. सुभाष सी पांडे का कहना है कि इस तरह की रिटेनिंग वॉल बनाकर यदि नदी को छोटा कर देंगे तो यह एक बड़े विध्वंस को जन्म देगा। आने वाले समय में इतना बड़ा डिजास्टर इन अतिक्रमण के कारण होगा जिसकी किसी ने कल्पना तक नहीं की होगी। 



एक रिटेनिंग वॉल का कलियासोत नदी 3 साल पहले ही कर चुकी है इंसाफ



इंसान की एक सोच है, उसे लगता है कि वह प्रकृति के साथ खिलवाड़ करेगा और बेजान प्रकृति इसका विरोध नहीं कर पाएगी, लेकिन ऐसा नहीं है, जब प्रकृति अपने पर आती है तो उसके इंसाफ के आगे सब बेबस हो जाते हैं। जेके हॉस्पिटल के पास ही सागर प्रीमियम प्लाजा सोसायटी इसका उदाहरण है। यह रहवासी सोसायटी सेज ग्रुप ने बनाई। कलियासोत नदी पर अतिक्रमण कर बनाई और जेके हॉस्पिटल की तरह ही नदी पर एक रिटेनिंग वॉल बना दी थी। वर्ष 2020 में जब अच्छी बारिश हुई तो कलियासोत डेम के 13 गेट खुल गए और जब पानी अपनी रफ्तार से आया तो ग्रीन बेल्ट में बने सागर प्रीमियम प्लाजा की इस रिटेनिंग वॉल के साथ एक हिस्सा अपने साथ बहाकर ले गया। यहां के लोगों को तब पता चला कि बिल्डर ने उनके साथ धोखाधड़ी की। अब कुछ इसी तरह का काम जेके हॉस्पिटल के सामने हो रहा है।  



जेके हॉस्पिटल को गंगा मेली करने से भी परहेज नहीं




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भोपाल : जेके हॉस्पिटल से कलियासोत नदी में मिल रहा गंदा पानी




कलियासोत नदी पर अतिक्रमण करने और उसमें गंदा पानी छोड़ने वाले केवल मध्य प्रदेश की राजधानी की इकलौती नदी को ही गंदा नहीं कर रहे बल्कि गंगा तक को मेला करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ रहे हैं और इस मामले में भी जेके हॉस्पिटल पीछे नहीं है। कलियासोत नदी के अंदर दो प्वाइंट ऐसे मिले जहां जेके हॉस्पिटल से सीवेज का पानी सीधे नदी में मिलाया जा रहा है, जबकि नियमानुसार एसटीपी प्लांट से ट्रिटेड पानी को भी इस तरह से नदी में नहीं मिलाया जा सकता। दरअसल कलियासोत डैम से निकलकर कलियासोत नदी 35 किलोमीटर दूर जाकर भोजपुर के पास बेतवा में मिलती है. बेतवा का पानी यमुना में मिलता है और यमुना गंगा की सहायक नदी है। इसका मतलब यह हुआ कि यदि हम कलियासोत नदी को गंदा करते हैं तो वह अंत में जाकर गंगा को भी प्रदूषित करेगी।



अब समझे ...2014 में NGT का दिया आदेश और हुआ क्या




  •     कालियासोत नदी की किनारे 33 मीटर का सीमांकन, चिन्ह भी लगाए जाएं




हुआ क्या : सीमांकन कर पत्थर लगाए गए थे, पर अब वे पत्थर कई जगह से हट गए हैं, तो कुछ ने उन्हें निकालकर नदी से सटकर लगा दिया ताकि उनकी जगह ग्रीनबेल्ट में न दिखे, विराशा हाइट्स में पत्थर को तोड़ दिया गया.




  •     नदी के दोनों और 33 मीटर पर ग्रीन बेल्ट विकसित किया जाए.




हुआ क्या : नदी के दोनों 33 मीटर ग्रीन बेल्ट विकसित नहीं हुआ लेकिन इसके नाम पर अतिक्रमण जरूर हो गए. विराशा हाइट्स के पास नदी के मुहाने पर एक निजी फार्म हाउस बन गया, तो वही आकृति हाईराइज सोसाइटी में पार्क बना दिया गया, उत्तर अमरनाथ कॉलोनी में गौशाला चल रही है.




  •     इस नदी में केवल ट्रीटेड पानी ही आए, आसपास की कालोनियों से इसमें गंदगी ना मिले.




हुआ क्या : कलियासोत नदी में उत्तर अमरनाथ कॉलोनी, सर्व धर्म, मंदाकिनी कॉलोनी समेत कई जगह सीधे अनट्रीटेड पानी नदी में मिल रहा है, इससे नदी के आसपास का भोजन बुरी तरह प्रदूषित हो चुका है.




  •     ग्रीन बेल्ट के दायरे में नए निर्माण ना हो, 33 मीटर के दायरे में आए निर्माण को तोड़ा जाए.




हुआ क्या : मन्दाकिनी कॉलोनी से होते हुई सलैया की ओर कई नए अतिक्रमण हुए हैं. सागर प्रीमियम प्लाजा में कई फ्लेट इसकी जद में हैं, यहां से कई लोग फ्लेट छोड़कर जा चुके हैं तो कई अपने साथ हुई धोखाधड़ी को लेकर बिल्डर की शिकायत कर लड़ाई लड़ रहे हैं. 



कलियासोत को बचाने द सूत्र उठाता रहा है आवाज



नवंबर 2021 में द सूत्र ने अपनी सामाजिक जिम्मेदारी समझते हुए राजधानी भोपाल की एकमात्र नदी कलियासोत को लेकर 13 दिनों तक लगातार न केवल पूरे खुलासे किए बल्कि कलियासोत को बचाने और लोगों को जागरूक करने के लिए आम नागरिकों के बीच जाकर मुहिम भी चलाई. द सूत्र नदी के महत्व को समझता है और इसलिए लगातार कलियासोत के मामले को पुरजोर तरीके से समय—समय पर उठाता रहा है। किसी भी मीडिया संस्थान की अपनी मजबूरी हो सकती है, कोई खुद अतिक्रमण करके बैठा है तो किसी को अतिक्रमणकारियों ने विज्ञापन लेना है, लेकिन द सूत्र यहां स्पष्ट कर देना चाहता है कि राजधानी भोपाल की इकलौती नदी को बचाने द सूत्र हर संभव प्रयास हमेशा करता रहेगा।


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