BHOPAL. मामा इस बार खतरनाक मूड में है। शिवराज सिंह चौहान ने कुछ समय पहले ये जुमला उछाला था। वो खतरनाक मूड में हों न हों, लेकिन अब कमलनाथ वाकई खतरनाक मूड में हैं और इस मूड में हैं कि एक बार अगर कमिटमेंट कर दी तो फिर वो न अपने आप की और न पार्टी के किसी दिग्गज नेता की सुनने वाले हैं। ये मूड और कमिटमेंट बीजेपी के लिए तो बाद में मुश्किल खड़ी करेगा, उससे पहले कांग्रेस नेता ही इस मूड का शिकार हो जाएंगे। जिनकी इस बार चुनाव से पहले एक नहीं चलने वाली। इस बार कमलनाथ का हर फैसला सिर्फ एक चीज पर डिपेंड करेगा। न दिग्विजय सिंह, न अजय सिंह, न सज्जन सिंह वर्मा न कोई उस फैसले को बदलवा सकेगा।
सत्ता में वापसी के लिए बेताब कमलनाथ
महाभारत का महायुद्ध जीतने वाले अर्जुन को सिर्फ अपना लक्ष्य ही नजर आता था। मध्यप्रदेश की सत्ता में वापसी के लिए बेताब कमलनाथ का हाल भी कुछ अर्जुन जैसा ही है। जिन्हें साल 2023 के चुनाव में सिर्फ जीत ही चाहिए और उसी लक्ष्य तक बढ़ने की पूरी कोशिश है। हाल ही में दिल्ली में हाई लेवल की मीटिंग हुई है। मीटिंग के बाद सीएम फेस पर राहुल गांधी ने रणनीति पर पत्ते नहीं खोले, लेकिन ये दावा कर दिया कि इस बार वो 150 सीटों से कम में रुकने वाले नहीं है। जाहिर ये कॉन्फिडेंस राहुल गांधी का नहीं बल्कि कमलनाथ का ही होगा। जिनके कंधों पर जीत का पूरा दारोमदार है। कमलनाथ के पास मध्यप्रदेश में फैसले लेने के लिए फ्री हैंड ये बात अब किसी से छिपी नहीं है, लेकिन इस बार बात सिर्फ फ्री हैंड की नहीं है। उन्होंने सारे नेताओं को भी काम से फ्री कर दिया है। अब तक पार्टी के जिन नेताओं की राय को वो तवज्जो देते रहे। इस बार उन नेताओं की भी दाल ज्यादा गलने वाली नहीं है। सुना तो ये भी जा रहा है कि दिग्विजय सिंह, अजय सिंह, अरूण यादव, कांतिलाल भूरिया, गोविंद सिंह, विवेक तनखा जैसे दिग्गज भी इस बार कमलनाथ को अपनी राय मानने पर मजबूर नहीं कर पाएंगे।
बीजेपी को उसके ही मोड में टक्कर देंगे कमलनाथ
इस बार कमलनाथ बीजेपी को बीजेपी के मोड में ही जाकर टक्कर देने वाले हैं। कांग्रेस हमेशा से पट्ठावाद के लिए मशहूर रही है, लेकिन 2023 से पहले न गुरुओं की चलेगी न उनके पट्ठों की। वैसे तो कमलनाथ कांग्रेस की ही परंपरा के रचे-बसे नेता हैं, लेकिन प्रदेश की राजनीति में कभी नहीं रहे। पर, एक बार विधानसभा चुनाव के मैदान में उतरे तो 5 साल में हर दांव-पेंच और अपनी ही पार्टी के लूप होल्स को बखूबी समझ चुके हैं। ये समझ उनके एटीट्यूड में साफ नजर आने वाली है। जिस तरह बीजेपी आलाकमान यानी पीएम मोदी, शाह और नड्डा टिकट देते समय कोई समझौता नहीं करते ठीक वैसे ही कमलनाथ सख्त फैसले लेने में हिचकिचाएंगे नहीं। यानी कांग्रेसियों को भी इस बार जब कमलनाथ फैसले लेते दिखेंगे तो उन पर 2018 जैसा कोई दबाव या लगाव नजर नहीं आएगा।
इंटरनल सर्वे के आधार पर फैसला लेंगे कमलनाथ
कमलनाथ कांग्रेस के शुरूआती दौर के नेताओं में से हैं। यूं कहें कि कांग्रेस और कमलनाथ की उम्र में कुछ खास फर्क नहीं होगा। ये जिक्र सिर्फ ये समझाने के लिए है कि आप समझ सकें कि कमलनाथ का कांग्रेस में क्या दर्जा है। सिर्फ दर्जा ही नहीं तजुर्बा भी है। प्रदेश की नब्ज पकड़ने में उन्हें 2023 में थोड़ी दिक्कत हो सकती है। जब उन्होंने साथियों कांग्रेसियों की राय पर गौर किया, लेकिन इस बार कमलनाथ का मिजाज भी कुछ कुछ मोदी-सा यानी कि बीजेपी जैसा होगा। जिसमें सख्ती होगी और रिजिड डिसिजन होंगे। यानी एक बार जो फैसला हो गया सो हो गया। ये फैसला होगा उन इंटरनल सर्वे के आधार पर जो खुद कमलनाथ ने करवाए हैं।
पिछली बार सर्वे पर नहीं नेताओं पर किया था भरोसा
साल 2018 में भी टिकट देने से पहले सर्वे हुए थे। उस वक्त सिर्फ सर्वे के नतीजों पर भरोसा करने की जगह कमलनाथ ने दिग्विजय सिंह, अजय सिंह, अरुण यादव और गोविंद सिंह जैसे पुराने कांग्रेसियों की राय पर भी गौर किया था। इसका नतीजा ये हुआ कि कुछ गलत फैसले हुए और खामियाजा पार्टी को भुगतना पड़ा। इसका उदाहरण है बुरहानपुर सीट। बताया जाता है कि कमलनाथ के सर्वे में सुरेंद्र सिंह शेरा जीत रहे थे, लेकिन अरुण यादव की गुहार पर उनके पट्ठे रवींद्र महाजन को टिकट दे दिया गया। नतीजे क्या रहे ये किसी से छिपे नहीं हैं। इस तजुर्बे के आधार पर इस बार कमलनाथ सिर्फ अपने कराए सर्वे पर भरोसा करेंगे। जिसके नतीजे ऑफिशियली तो बताए नहीं गए, लेकिन ये जरूर कहा जा रहा है कि कमलनाथ ने 37 विधायकों को चुनाव की तैयारी करने की हरी झंडी दे दी है। यानी वो विधायक कमलनाथ के सर्वे में पास हो चुके हैं। इसके अलावा कुछ पूर्व मंत्री भी सर्वे में पास होने में कामयाब रहे हैं।
सर्वे में पास हो चुके नेता
- डॉ. गोविंद सिंह (लहार)
पूर्व मंत्री और विधायकों को चेतावनी दे चुके हैं कमलनाथ
पहले से पूर्व मंत्री और विधायकों को चेतावनी देकर कमलनाथ ने उन क्षेत्रों में ये साफ कर दिया है कि वहां सीटों के लिए किसी तरह की जोड़तोड़ की जरूरत नहीं है। साथ ही सर्वे में पास उम्मीदवारों के पास अपनी जमीन मजबूत करने का थोड़ा ज्यादा वक्त मिल गया है। पट्ठावाद से इतर अब सिर्फ सर्वे पर भरोसा करना कमलनाथ और कांग्रेस दोनों के लिए फायदे का सौदा माना जा रहा है। इसके अलावा कमलनाथ खुद तो अलग-अलग सीटों पर एक्टिव हैं ही, दिग्विजय सिंह भी माइक्रो लेवल पर जाकर पार्टी को संगठित करने में जुटे हुए हैं।
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कितना सख्त रह सकेंगे कमलनाथ?
कांग्रेस भीतर ही भीतर बहुत से मोर्चों पर सक्रिय है। ज्योतिरादित्य सिंधिया को उन्हीं के गढ़ में घेरने की तैयारी है। बीजेपी से टक्कर लेने के लिए सॉफ्ट हिंदुत्व की छवि को भी ओढ़े रखना है। हिमाचल और कर्नाटक की चुनावी लैब में सफल हो चुके प्रयोग भी मध्यप्रदेश में आजमाने की पूरी तैयारी है। इन सब से पहले जरूरी था कांग्रेस की गुटबाजी और पट्ठावाद से निपटना। गुटबाजी को शांत करने में कमलनाथ काफी हद तक कामयाब रहे हैं। अब पट्ठावाद से निपटने की घड़ी आ चुकी है। देखना ये है कि मोदीफाइड कमलनाथ इस मामले में जितना सख्त रहना चाहते हैं, क्या साथियों को अनसुना कर उतना ही सख्त रह सकेंगे।