मध्यप्रदेश में मिशन-2023 के लिए कमलनाथ ने बनाया बड़ा प्लान, क्या बीजेपी की रणनीति से कांग्रेस को मिलेगी जीत !

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Harish Divekar
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मध्यप्रदेश में मिशन-2023 के लिए कमलनाथ ने बनाया बड़ा प्लान, क्या बीजेपी की रणनीति से कांग्रेस को मिलेगी जीत !

BHOPAL. 2023 में बीजेपी का मुकाबला पुरानी नहीं नई कांग्रेस से होगा। मध्यप्रदेश में अब दिखाई देने वाली कांग्रेस, कमलनाथ की कांग्रेस है। 15 साल तक बीजेपी जिस कांग्रेस से मुकाबला करती रही बीसवें साल में वही कांग्रेस नए अंदाज में बीजेपी से टकराने के लिए तैयार है।





कमलनाथ के कमान संभालने के बाद बदली कांग्रेस





कमलनाथ के कांग्रेस की कमान संभालने के बाद से कांग्रेस बदली-बदली है। गुटों में बंटी कांग्रेस अब एक कांग्रेस ही नजर आती है। कमलनाथ ने हर अंचल हर क्षत्रप की लगाम कसी। कुछ सख्त फैसले लिए और कुछ कांग्रेस का कलेवर चेंज किया। आने वाले चुनाव में बीजेपी में चेहरे का संकट हो सकता है लेकिन कांग्रेस एकदम क्लीयर है। अगला चुनाव भी कमलनाथ की सरपरस्ती में होगा। इसमें कोई दो राय नहीं, ना ही अब तक कोई विरोध है। 2018 में सरकार बनाने वाले कमलनाथ सरकार गिरने के बाद और भी ज्यादा पावरफुल हुए हैं। उनके पास अहम फैसले लेने का फ्री हैंड है। तो इस बात से भी वो अनजान नहीं कि अगला चुनाव कांग्रेस के लिए बहुत आसान होने वाला नहीं है। कार्यकर्ताओं को उन्होंने ताकीद कर ही दिया है कि 11 महीने लंबी अग्नि परीक्षा है जिसे पार करने की रणनीति पर काम करना उन्होंने शुरू कर ही दिया है।





कमलनाथ ही कांग्रेस का चेहरा





15 साल बाद कांग्रेस का सूखा खत्म हुआ और सत्ता में वापसी हुई। क्रेडिट मिला कमलनाथ को। जिस वक्त सरकार बनी उस वक्त तक कांग्रेस की स्थिति काफी अलग थी। दिग्विजय सिंह ने वक्त के साथ ये कबूल कर लिया था कि कमलनाथ ही कांग्रेस का चेहरा हैं लेकिन ज्योतिरादित्य सिंधिया ने पार्टी से बगावत कर दल बदल लिया। नतीजा ये हुआ कि कांग्रेस नीत कमलनाथ सरकार धराशायी हुई। उस वक्त लगा कि कमलनाथ की उल्टी गिनती शुरू हो चुकी है और कभी भी दिल्ली वापसी हो सकती है लेकिन कमलनाथ ज्यादा पावरफुल होकर दोबारा उभरे और एक नई कांग्रेस खड़ी करने में कामयाब रहे। कांग्रेस  की जितनी खामियां थी उन्हें काफी हद तक दूर भी किया। पहले कांग्रेस नेताओं में बंटी थी। सिंधिया ने दल बदल लिया और दिग्विजय सिंह ने कमनलाथ के अम्ब्रेला के नीचे आना स्वीकार किया। अब कांग्रेस में गुट कम नजर आते हैं।





कमलनाथ की सख्ती ने चौंकाया





दल बदलने वालों की तरफ भी कमलनाथ की सख्ती चौंकाने वाली रही। जिस दल-बदल की वजह से उनकी सरकार गिरी। कमलनाथ ने उस राजनीतिक फिनोमिना के आगे कभी घुटने नहीं टेके। जरूरत पड़ने पर सख्ती से कह दिया जिसे जाना है वो खुद उसे अपनी कार में बिठाकर छोड़कर आएंगे। बात सिर्फ सख्ती की नहीं थी। मैसेज बिलकुल लाउड एंड क्लीयर है कि किसी भी नेता के गुस्से या असंतोष से वो दबाव में आने वाले नहीं है।





बीजेपी की हर रणनीति का जवाब कमलनाथ





बीजेपी की भी हर रणनीति का जवाब हैं कमलनाथ। जो हार्ड हिंदुत्व के जवाब में सॉफ्ट हिंदुत्व के अगुवा बने। उनके राज में कांग्रेस में हनुमान चालीसा का पाठ भी हुआ। जिस महाकाल लोक के नाम पर बीजेपी धर्म का डंका बजा रही है। उस लोक की परिकल्पना भी कमलनाथ सरकार की ही थी। कांग्रेस पर धर्म को लेकर लाख आरोप लगते रहे लेकिन कमलनाथ के हिंदुत्व को चैलेंज करने का साहस फिलहाल बीजेपी में भी नहीं है। यही वजह है कि बीजेपी यहां हिंदुत्व के एजेंडे को उतनी मजबूती से नहीं उठा पाती जितनी आसानी से दूसरे प्रदेशों में इस मुद्दे पर बात करती है।





बीजेपी से टकराने के लिए मजबूत संगठन बनाने की तैयारी





कांग्रेस को बदलने में कमलनाथ ने बड़ी भूमिका अदा की है। उनके तजुर्बे और मैनेजमेंट की कला ने कांग्रेस को साध तो लिया है लेकिन सत्ता में फिर वापसी इतनी आसान नहीं है। ये कमलनाथ खूब जानते हैं। यही वजह है कि अब उनका पूरा फोकस संगठन को मजबूत करने पर है। छोटे से छोटे कार्यकर्ता की अहमियत को समझना और माइक्रोलेवल की प्लानिंग करना अब जरूरी हो गया है। इस बात से वाकिफ कमलनाथ अपनी पार्टी को ताकीद कर ही चुके हैं कि मुकाबला बीजेपी संगठन से है जिससे टकराने के लिए वैसा ही मजबूत संगठन खड़ा करने की तैयारी शुरू हो चुकी है।





कमलनाथ ने संगठन को किया मजबूत





एक दौर की कांग्रेस यूं थी कि जो अपने एरिया के क्षत्रप ने कहा वही पत्थर की लकीर हो गया लेकिन अब कमलनाथ की सरपरस्त कांग्रेस ये जान चुकी है कि सिर्फ नेताओं की सुनने से काम नहीं चलेगा। प्रभारी और सहप्रभारियों तक को तवज्जो देनी होगी। बीजेपी संगठन से मुकाबला करने के लिए कांग्रेस को भी आखिरी कार्यकर्ता को सुनना होगा। इसी सोच के साथ कांग्रेस में मंडलम स्तर तक संगठन को मजबूत किया जा रहा है। एक बार जीत हासिल करने के बाद भी कमलनाथ इत्मीनान से नहीं बैठे हैं। उन्हें अंदाजा है कि दोबारा सत्ता में वापसी के लिए उन्हें छोटे से लेकर बड़े नेता को साथ लेकर चलना है।





संगठन में कसावट लाने के लिए कांग्रेस में बैठकों का दौर





संगठन में कसावट लाने के लिए बैठकों का दौर तेजी से जारी हो चुका है। कुछ ही दिन पहले एक कार्यकर्ता सम्मेलन में कमलनाथ ने कार्यकर्ताओं को कहा कि निकाय चुनाव में मुकाबला बीजेपी के पैसे और पुलिस से था। अगले चुनाव में भी उसी प्रशासनिक तंत्र से मुकाबला करना है। उन्होंने साफ कहा कि 11 महीने की डायरी बनाकर काम शुरू कर दें क्योंकि ये वक्त अग्नि परीक्षा का है। इस अग्नि परीक्षा में पास होने के लिए कमलनाथ एक नहीं कई मुद्दों पर एक साथ काम कर रहे हैं। पार्टी की गुटबाजी को काफी हद तक कंट्रोल कर चुके थे। उनके और दिग्विजय सिंह की बीच की दूरियों को खुद राहुल गांधी अपने सामने मिटाकर गए हैं। आने वाले 11 महीनों के लिए कमलनाथ ने पार्टी की लगाम और कसकर थाम ली है। जरा कोताही होने पर लगाम कसने में वो देर करने वाले नहीं है। इसी अनुशासन और सख्ती के साथ वो बीजेपी का सामना करने के लिए हर दिन एक नई रणनीति तैयार कर रहे हैं।





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माइक्रोलेवल प्लानिंग पर काम शुरू





अपने अपने क्षेत्र के दिग्गज नेताओं को तो कमलनाथ साध ही चुके हैं। क्षत्रपों की राजनीति काफी हद तक कंट्रोल में आ चुकी है। अब जरूरत है माइक्रोलेवल प्लानिंग की। जिस पर काम शुरू हो चुका है।





कमलनाथ इलेक्शन मैनेजमेंट में माहिर





कमलनाथ की प्लानिंग बीजेपी की तरकीब से ही बीजेपी को मात देने की नजर आती है। 40 साल से ज्यादा समय से राजनीति कर रहे कमलनाथ इलेक्शन मैनेजमेंट में माहिर हैं। उसी तजुर्बे का फायदा 2023 में उठाने की तैयारी है। बीजेपी की तर्ज पर मजबूत संगठन बनाने की कवायद तकरीबन पूरी हो चुकी है। अब कोशिश है कि हर जिले के प्रभारी और सहप्रभारी के साथ बैठकर रणनीति तैयार करना। इनकी  रिपोर्ट के आधार पर ही विधायकों का परफॉर्मेंस भी आंका जाएगा। 2023 की जंग जीतने के लिए फिलहाल कुछ और सख्त फैसले लेने पड़ सकते हैं जिसकी झलक टिकट बांटते समय भी नजर आएगी। कमलनाथ ने ठीक ही कहा कि आने वाला चुनाव अग्नि परीक्षा है जिसकी अग्नि धधकना शुरू हो चुकी है। बस  परीक्षा में कूदने की देर है और कमलनाथ इसके लिए तैयार नजर आते हैं।



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