BHOPAL. मध्यप्रदेश में चुनावी साल में कांग्रेस बीजेपी का ही हथकंडा अपनाकर बीजेपी को मात देने की तैयारी कर रही है। अबकी बार 200 पार की तैयारी सिर्फ बीजेपी की ही नहीं कांग्रेस की भी है। कांग्रेस के पास कम समय और कमजोर संगठन है। उसके बावजूद कमलनाथ ने बीजेपी की तर्ज पर बूथ मजबूत करने का बड़ा प्लान बनाया है जिसके लिए लाख दो लाख नहीं करोड़ों कार्यकर्ताओं की जरूरत होगी।
बीजेपी का गणित लगाने की तैयारी में कांग्रेस
बूथ मैनेजमेंट में बीजेपी कितनी माहिर है ये अब किसी को बताने की जरूरत नहीं। बीजेपी की संगठन की ताकत और बूथ तक मजबूत पकड़ को कांग्रेस भी मानती है। अब बात सिर्फ मानने तक सीमित नहीं। कांग्रेस अब खुद उसे आजमाने की तैयारी में है। बीजेपी का गणित लगाकर कांग्रेस मध्यप्रदेश में जीत की पहेली बूझना चाहती है लेकिन क्या ये इतना आसान है।
प्रदेश में पन्ना प्रभारी तैनात करने जा रही कांग्रेस
बीजेपी की नकल कर कांग्रेस प्रदेश में पन्ना प्रभारी तैनात करने जा रही है। इसके लिए कांग्रेस को करोड़ों कार्यकर्ताओं की जरूरत है। यानी वोटर लिस्ट के हर पन्ने के लिए ये डेडिकेटेड कार्यकर्ता तैनात करने जा रहे हैं कमलनाथ। इसके लिए बूथ लेवल पर एक दो नहीं बल्कि वोटर लिस्ट के जितने पन्ने होंगे उतने कार्यकर्ताओं की जरूरत होगी। मोटे तौर पर देखें तो अभी प्रदेश की ओवरऑल वोटर लिस्ट में 18 लाख पन्ने हैं, जो चुनाव तक 20 लाख होने की उम्मीद है। इस लिहाज से कांग्रेस को हर पन्ना प्रभारी सहित दूसरे काम संभालने के लिए एक करोड़ से ज्यादा कार्यकर्ताओं की जरूरत होगी। उसके बाद ही हर पन्ने पर एक समिति तैयार हो सकेगी। इसके लिए कांग्रेस के पास समय बहुत कम बचा है। इस मामले में बीजेपी कांग्रेस से कितनी आगे ये जानने के लिए पहले ये समझना जरूरी है कि पन्ना प्रभारी क्यों जरूरी हैं।
क्यों जरूरी ‘पन्ना प्रभारी’ ?
- हर पन्ना प्रभारी के पास वोटर लिस्ट के एक पन्ने की जिम्मेदारी होती है।
इस तर्ज पर कांग्रेस आगे बढ़ती है तो एक तगड़ा वोट बैंक तैयार कर सकती है। पन्ना प्रभारियों का चयन, ट्रेनिंग और तैनाती गंभीरता से हुई तो संभव है कि कांग्रेस 2018 के चुनाव से भी बेहतर प्रदर्शन करे।
पन्ना प्रभारी से कांग्रेस को कितना फायदा ?
- कांग्रेस वोटर लिस्ट के हर पन्ने पर एक प्रभारी तैनात करना चाहती है।
कांग्रेस ने बीजेपी की राह पकड़ने में कर दी देर
संघ कार्यकर्ताओं की लाइन पर कांग्रेस चल तो पड़ी है, पर इतने कम समय में कितना आगे जा पाएगी। बीजेपी इस तर्ज पर पहले से ही काम कर रही है। सिर्फ पन्ना प्रभारी ही नहीं बीजेपी डिजिटली अपने कार्यकर्ताओं को जोड़ने में भी पीछे नहीं है। कांग्रेस ने बीजेपी की राह तो पकड़ी है लेकिन देर बहुत कर दी। बीजेपी में पन्ना प्रभारी की तवज्जो इतनी है कि खुद अमित शाह पन्ना प्रभारी रह चुके हैं। मध्यप्रदेश में भी बीजेपी 4 लाख से ज्यादा पन्ना प्रभारी तैयार कर चुकी है यानी एक चौथाई रास्ता वो तय कर चुकी है जबकि कांग्रेस अभी पहले माइल स्टोन के पास ही खड़ी है। रेस जीतने में उसे चौगुनी ताकत लगानी है।
हर बूथ पर मजबूत नेटवर्क तैयार करने की कोशिश
पन्ना प्रभारियों के भरोसे कांग्रेस सत्ता में वापसी तो करना ही चाहती है। कोशिश मत प्रतिशत बढ़ाने की भी है। बीजेपी ने 51 फीसदी वोट के साथ 200 सीटें जीतने का लक्ष्य रखा है। कांग्रेस भी इसी टारगेट को अचीव करना चाहती है। पिछले चुनाव में कांग्रेस को 40.89 और बीजेपी को 41.02 प्रतिशत वोट मिले थे। सिर्फ एक प्रतिशत वोट इधर-उधर खिसकने से फर्क पड़ सकता है। कमलनाथ की कोशिश भी यही है। इस कवायद में जुटे कमलनाथ बूथ प्रभारी तैनात करने के अलावा घर-घर संवाद के साथ हाथ से हाथ जोड़े अभियान शुरू करने जा रहे हैं जिसके जरिए हर बूथ पर एक मजबूत नेटवर्क तैयार करने की कोशिश है।
64 हजार 100 बूथ पर बीजेपी पूरी तरह डिजिटल
इस तैयारी में कमलनाथ को ये जरूर सोचना होगा कि वो जिस दांव को आजमाने जा रहे हैं बीजेपी उसमें पहले से माहिर हैं। प्रदेश में 64 हजार 100 बूथ पर बीजेपी पूरी तरह डिजिटल हो चुकी है। करीब 13 लाख बूथ स्तर के कार्यकर्ताओं को संगठन एप से जोड़ा भी चुकी है। बूथ पर बीजेपी ने एक बूथ अध्यक्ष, महामंत्री और बीएलए की नियुक्ति की है। इसके साथ ही पन्ना प्रमुख और पन्ना समिति भी बनाई लेकिन उनकी संख्या कम है। बीजेपी अब तक 4 लाख पन्ना प्रमुख बना चुकी है जिनकी संख्या बढ़ाने का काम जारी है। अब इस काम में जुटने वाली कांग्रेस कितनी तेजी से काम कर पाएगी।
प्लानिंग पर तेजी से आगे बढ़ चुके कमलनाथ
कामयाबी मिलेगी या नहीं। ये कहना मुश्किल है लेकिन कमलनाथ इस प्लानिंग पर तेजी से आगे बढ़ चुके हैं। पन्ना प्रभारियों के अलावा बूथ प्रभारी भी तैयार किए जाने हैं यानी कमलनाथ को बीजेपी के मुकाबले बीजेपी जितनी ही बड़ी और मजबूत सेना तैयार करनी है।
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नकल में भी अकल लगाने से मिलती है कामयाबी
कमलनाथ, उस रेस में उतरने की तैयारी में है जिसमें बीजेपी कम से कम 5 सालों से भाग रही है। बीजेपी ने इस फॉर्मूले को हर प्रदेश में अपनाया है। आलम तो ये है कि बड़े-बड़े नेता भी बीजेपी में बूथ प्रभारी बनकर कार्यकर्ताओं की हौसलाफजाई करते हैं। इतनी जांची-परखी रणनीति को अपनाने में हर्ज कुछ नहीं है पर क्या बीजेपी के दिग्गजों की तरह कांग्रेस के आला नेता इस मंसब को संभालने के लिए तैयार होंगे। कार्यकर्ताओं को एक्टिव करने और रखने के लिए जिस डेडिकेशन की जरूरत है वो कांग्रेस के कितने नेताओं के पास है। इस सवाल का जवाब खुद कमलनाथ को पार्टी में जरूर तलाशना चाहिए क्योंकि नकल में भी अकल लगाकर ही कामयाबी हासिल होती है।